Tuesday, January 28, 2025

कोशिका एवं उसकी संरचना

 


            

   कोशिका एवं कोशिका की संरचना

कोशिका (Cell) सजीवों के शरीर की एक रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई है और प्राय: स्वत: जनन में समर्थ है। यह विभिन्न पदार्थों का वह छोटे-से-छोटा संगठित रूप है जिसमें वे सभी क्रियाएँ होती हैं जिन्हें सामूहिक रूप से हम जीवन करते हैं।

कोशिका‘ का अंग्रेजी शब्द सेल (Cell) लैटिन भाषा के ‘शेलुला‘ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ ‘एक छोटा कमरा‘ है। कुछ सजीव जैसे जीवाणुओं के शरीर एक ही कोशिका से बने हुए होते हैं, उन्हें एककोशकीय जीव कहते हैं जबकि कुछ सजीव जैसे मनुष्य का शरीर अनेक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है उन्हें बहुकोशकीय सजीव कहते हैं। कोशिका की खोज रॉबर्ट हूक ने 1665 ई. में किया। 1839 ई. में श्लाइडेन तथा श्वान ने कोशिका सिद्धान्त प्रस्तुत किया जिसके अनुसार सभी सजीवों का शरीर दो या दो से अधिक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है तथा सभी कोशिकाओं की उत्पत्ति पहले से उपस्थित किसी कोशिका से ही होती है।

सजीवों की सभी जैविक क्रियाएँ कोशिकाओं के अंदर होती हैं। कोशिकाओं के भीतर ही आवश्यक आनुवांशिक सूचनाएँ होती हैं जिनसे कोशिका के कार्यों का नियंत्रण होता है तथा सूचनाएँ अगली पीढ़ी की कोशिकाओं में स्थानान्तरित होती हैं।

कोशिकाओं का विधिवत अध्ययन कोशिका विज्ञान (Cytology) या ‘कोशिका जैविकी‘ (Cell Biology) कहलाता है।

     

कोशिका की संरचना –

कोशिका का निर्माण कई घटकों से होता है, जिन्हें कोशिकांग (Cell organelle) कहा जाता हैं। प्रत्येक कोशिकांग एक विशेष कार्य करता है। इन कोशिकांगों के कारण ही कोशिका एक जीवित संरचना है, जो जीवन सम्बंधित सभी कार्य करने में समर्थ होती है। जीवों के सभी प्रकार की कोशिकाओं में एक ही प्रकार के कोशिकांग पाये जाते हैं। अध्ययन की सुगमता की दृष्टि से कोशिका को तीन भागों में बांटा जा सकता है-

  1. कोशिका झिल्ली (Cell membrane)
  2. कोशिका द्रव्य (Cytoplasm)
  3. केन्द्रक (Nucleus)

केन्द्रक (Nucleus) एवं कोशिका द्रव्य (Cytolplasm) को सम्मिलित रूप से जीवद्रव्य या प्रोटोप्लाज्म (Protoplasm) कहा जाता है।

1. कोशिका झिल्ली (Cell membrane): 

प्रत्येक कोशिका के सबसे बाहर चारों ओर एक बहुत पतली, मुलायम और लचीली झिल्ली होती है जिसे कोशिका झिल्ली या प्लाज्मा झिल्ली या प्लाज्मा मेम्ब्रेन (Plasma membrane) कहते हैं। यह झिल्ली जीवित एवं अर्द्ध पारगम्य (semipermeable) होती है। चूँकि इस झिल्ली द्वारा कुछ पदार्थ ही अंदर तथा बाहर आ-जा सकते हैं, सभी पदार्थ नहीं।

अतः इसको चयनात्मक पारगम्य झिल्ली (selectively permeable membrane) भी कहते हैं। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में यह एक दोहरी झिल्ली के रूप में दिखलायी पड़ती है जिसमें बीच-बीच में अनेक छिद्र मौजूद होते हैं। कोशिका झिल्ली लिपिड (Lipid) और प्रोटीन (Protein) की बनी होती है। इसमें दो परत प्रोटीन तथा इनके बीच में एक परत लिपिड का रहता है।

कोशिका झिल्ली एक सीमित झिल्ली का काम करती है। यह कोशिका का एक निश्चित आकार बनाए रखने में सहायता करती है। तथा यह कोशिका को यांत्रिक सहारा (Mechanical support) भी प्रदान कराती है। यह भिन्न-भिन्न प्रकार के अणुओं को अंदर आने एवं बाहर निकलने में नियंत्रण करती है। जन्तु कोशिका में यह सीलिया (Cilia), फ्लैजिला (Flagella), माइक्रोविलाई (Microvilli) आदि के निर्माण में सहायक होता है।

कोशिका भित्ति (Cell wall): 

पादप कोशिकाएँ (Plant Cells) चारों ओर से एक मोटे और कड़े आवरण से घिरी रहती हैं, इसी आवरण को कोशिका भित्ति कहा जाता हैं। कोशिका भित्ति मुख्यतः सेल्यूलोज (Cellulose) की बनी होती है। तथा यह पारगम्य (Permeable) होती है। सेल्यूलोज एक जटिल पदार्थ है जो पादप कोशिकाओं को संरचनात्मक दृढ़ता प्रदान करता है। इसी कारण कोशिका भित्ति कड़ी और निर्जीव होती है।

इसमें विभिन्न प्रकार के स्थूलन (Thickenings) मौजूद होते हैं तथा यह अर्द्धपारगम्य (Semipermeable) नहीं होती है। यह पादप कोशिका को एक निश्चित रूप प्रदान करती है। यह पादप कोशिका की सुरक्षा तथा यांत्रिक सहारा प्रदान करती है। यह कोशिका झिल्ली की रक्षा करती है तथा कोशिका को सूखने से बचाती है। 

2. कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm): 

जीवद्रव्य (Protoplasm) का वह भाग जो केन्द्रक एवं कोशिका भित्ति के बीच होता है, उसे कोशिकाद्रव्य कहा जाता हैं। इसमें अनेक कार्बनिक पदार्थ (कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व वसा), तथा अकार्बनिक पदार्थ (खनिज, लवण एवं जल) होते हैं, जो निर्जीव पदार्थ हैं।

कोशिकाद्रव्य एक बहुत गाढ़ा पारभासी (Translucent) एवं चिपचिपा पदार्थ है। इसमें अनेक रचनाएँ उपस्थित होती हैं जिनके अलग-अलग कार्य होते हैं। इन रचनाओं को कोशिकांग (Cell organelle) कहते हैं। यूकैरियोटिक कोशिकाओं में कोशिकांग झिल्लीयुक्त होते हैं, जबकि प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में ये झिल्लीयुक्त नहीं होते हैं।

कोशिकाद्रव्य कोशिका का एक प्रकार से बड़ा भाग है, जो कोशिका झिल्ली या प्लाज्मा झिल्ली से घिरा एक तरल पदार्थ होता है। अर्थात कोशिका मे कोशिका झिल्ली के अंदर केन्द्रक को आलावा सम्पूर्ण पदार्थों को कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) कहते हैं। इसमें बहुत से कोशिका के घटक होते हैं, जिसे कोशिका अंग कहा जाता हैं, जो कोशिका के लिए विशिष्ट कार्य करते हैं।

कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) सभी कोशिकाओं में पाया जाता है तथा कोशिका झिल्ली के अंदर तथा केन्द्रक झिल्ली के बाहर रहता है। यह रवेदार, जेलीनुमा, अर्धतरल पदार्थ है। यह पारदर्शी एवं चिपचिपा होता है। यह कोशिका के 70% भाग की रचना करता है।

इसकी रचना जल एवं कार्बनिक तथा अकार्बनिक ठोस पदार्थों से हुई है। इसमें अनेक रचनाएँ होती हैं। प्रकाश सूक्ष्मदर्शी में सभी कोशिकांगों (Cell organelles) को स्पष्ट नहीं देखा जा सकता है। इन रचनाओं को स्पष्ट देखने के लिए इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी या किसी अन्य अधिक विभेदन क्षमता वाले सूक्ष्मदर्शी की आवश्यकता पड़ती है

कोशिकाद्रव्य में उपस्थित कोशिकांग-

जन्तु एवं पादप कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में अत्यंत सूक्ष्म, शाखित, झिल्लीदार, अनियमित नलिकाओं का घना जाल होता है। इस जालिका को अन्तःप्रद्रव्यी जालिका कहते हैं। यह लाइपोप्रोटीन की बनी होती है और कोशिकाओं में समानान्तर नलिकाओं के रूप में फैली रहती है। कोशिकाओं में इनका विस्तार कभी-कभी केन्द्रक की बाह्य झिल्ली से प्लाज्मा झिल्ली तक होता है। अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (ER) दो प्रकार की होती है –

चिकनी अन्तः प्रदव्यीजालिका (Smooth endoplasmic reticulum or SER): 

इस प्रकार की अन्तःप्रद्रव्यी जालिका की झिल्ली चिकनी होती है। इसकी सतह पर राइबोसोम नहीं पाये जाते हैं। ये लिपिड स्राव के लिए उत्तरदायी होते हैं।

खुरदरी अन्त: प्रद्रव्यी जालिका (Rough endoplasmic reticulum or RER): 

इस प्रकार की अन्तःप्रद्रव्यी जालिका की बाहरी झिल्ली के ऊपर छोटे-छोटे कण पाये जाते हैं जिन्हें राइबोसोम (Ribosome) कहते हैं। ये प्रोटीन संश्लेषण के लिए उत्तरदायी होते हैं।

अन्तःप्रद्रव्यी जालिका अन्तः कोशिकीय परिवहन तंत्र का निर्माण करती है। चिकनी अन्तः प्रद्रव्यी जालिका वसा एवं कोलेस्ट्रॉल संश्लेषण में भाग लेती है। खुरदरी अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (RER) प्रोटीन संशलेषण में मदद करते हैं। अन्तःप्रद्रव्यी जालिका केन्द्रक से कोशिकाद्रव्य में आनुवंशिक पदार्थों को जाने का पथ बनाती है।

यह कोशिका द्रव्य को यांत्रिक सहारा प्रदान करती है। यह कोशिका विभाजन के समय कोशिका प्लेट (Cell plate) एवं केन्द्रक झिल्ली के निर्माण में भाग लेती है। इसके कारण ही कोशिका का सतही क्षेत्र (surface area) काफी बढ़ जाता है।

राइबोसोम (Ribosome): 

जालिका की झिल्लियों की सतह पर सटे होते हैं या फिर अकेले या गुच्छों में कोशिकाद्रव्य में बिखरे रहते हैं। ऐसे राइबोसोम जो गुच्छों में मिलते हैं, पॉली राइबोसोम (Polyribosome) या पॉलीसोम (Polysome) कहलाते हैं। ये रचनाएँ प्रोटीन और आर.एन.ए. (RNA) की बनी होती हैं। राइबोसोम प्रोटीन संश्लेषण में भाग लेता है। यह एक झिल्ली विहीन कोशिकांग है जो सभी कोशिकाओं (सार्वभौमिक कोशिकांग) में पाया जाता है।

जॉर्ज Palade द्वारा सबसे पहले देखा गया। यह परिपक्व आरबीसी (Mature RBC) में मौजूद नहीं होता हैं तथा यह आकार में सबसे छोटा कोशिकांग है। इसका आकार 15-20nm होता है। रीबोफोरिन प्रोटिन की मदद से RER (खुरदरी अन्तःप्रद्रव्यी जालिका) पर पर उपस्थित होता है। ये कोशिका के न्यूक्लियोलस (केन्द्रिक) में भी पाए जाते है एवं सभी कोशिका के कोशिका द्रव्य में भी पाये हैं।

राइबोसोम की विशेषताए-

  1. झिल्ली विहीन (Membraneless) होते हैं।
  2. गोलाकार (spherical) होते हैं।
  3. सबसे छोटा कोशिकांग है।
  4. इनका व्यास 150- 250 Å होता है
  5. यह राइबोप्रोटीन तथा mRNAके बने होते हैं।
  6. यह कोशिका द्रव्य, माइटोकॉन्ड्रिया, केंद्रक, अन्तः प्रदव्ययी जलिका, हरितलवक में पाए जाते है।
  7. इनके आकार का निर्धारण अवसादन गुणांक (Sedimentation coefficient) के आधार पर किया जाता है।

राइबोसोम के प्रकार –

1. प्रोकेरीयोट (Prokaryotic Ribosome) 

प्रोकेरियोट में राइबोसोम 70s प्रकार के होते है। जो 50s और 30s उपइकाई के बने हुए होते हैं।

2. युकेरीयोट  (Eukaryotic Ribosome)

युकेरियोट में राइबोसोम 80s प्रकार के होते है। 60s और 40s उपइकाई के बने हुए होते हैं।

4. हरितलवक राइबो सोम (Chloroplast Ribosome)

यह 70s प्रकार के जो 50s और 30s उपइकाई के बने हुए होते है।

5. माइटोकांड्रिया राइबो सोम (Mitochondrial Ribosome)

यह 70s प्रकार के जो 50s और 30s उपइकाई के बने हुए होते है।

राइबोसोम की संरचना (Structure of Ribosome)

अवसादन इकाई के अनुसार, राइबोसोमकी दो उपइकाई होती हैं जिसमे इसकी बड़ी उपइकाई का आकर गुंबद के जैसा और छोटी उपइकाई का आकर अंडाकार होता है।

इसकी बड़ी उपइकाई में तीन स्थल (साइट) होते हैं-

  1. ए-स्थल (A-Site): – यह अमीनोएसिल स्थल तथा टी-आरएनए के लिए ग्राही स्थल होता है।
  2. पी-स्थल (P-Site): – यह पेप्टाइडल साइट, पेप्टाइड श्रंखला के दीर्घीकरण के लिए स्थल होता है।
  3. ई-स्थल (E-Site): – यह टी-आरएनए के लिए राइबोसोम से बाहर निकलने के लिए स्थल होता है।

इसकी उपइकाईयाँ राइबोप्रोटीन और आर-आरएनए द्वारा बनी होती है। जो निम्न प्रकार की होती है-

  1. 50s उपइकाई – 34% प्रोटीन + 23 एस और 5 एस आर-आरएनए
  2. 30s उपइकाई – 21% प्रोटीन + 16 एस आर-आरएनए
  3. 60s उपइकाई – 40% प्रोटीन + 28 एस, 5.8 एस और 5 एस आर-आरएनए
  4. 40s उपइकाई 33% प्रोटीन + 18 एस आरआरएनए

Ribosome का निर्माण न्यूक्लियोलस (केन्द्रिक) में 40-60% प्रोटीन और 60-40% आरएनए द्वारा होता है। न्यूक्लियोलस को राइबोसोमल उत्पादक फैक्टरी (Ribosomal Manufactring Factory) माना जाता है।

राइबोसोम के कार्य (Functions of Ribosome)

1. ट्रांसलेशन –

प्रोटीन के निर्माण की प्रक्रिया ट्रांसलेशन या अनुवादन (Translation) कहलाती है। यह प्रोटीन संश्लेषण (Protein Synthesis) में हिस्सा लेता है, इसलिए इसे सेल के इंजन या प्रोटीन फैक्ट्री के रूप में जाना जाता है। इस को कोशिका का प्रोटीन कारखाना (Protein Factory of the Cell) कहा जाता है

2. पॉलीराइबोसोम –

प्रोटीन संश्लेषण (Protein Synthesis)के दौरान कई Ribosome एम-आरएनए से जुड़कर एक सरंचना बनाता है, जिसे पॉलीराइबोसोम या पोलीसीम कहा जाता है।

लाइसोसोम (Lysosome)

Lysosome शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों Lyso तथा Soma से बना है। लाइसो का अर्थ पाचक तथा सोमा का अर्थ काय है यानि Lysosome का अर्थ पाचक काय या लयन काय है। लाइसोसोम की खोज डी डवे (De Duve) ने की थी। एलेक्स नोविकॉफ़ (Alex Novikoff ) ने इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के द्वारा कोशिका में लाइसोसोम को देखा और इसे लाइसोसोम का नाम दिया। यह एकल झिल्ली आबंध कोशिकांग है, जिसमें प्रचुर मात्रा में अम्लीय हाइड्रॉलेज एंजाइम पाए जाते है जो सभी प्रकार के जैविक बहुलक यानी कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड, और न्यूक्लिक अम्लों का पाचन है।

अम्लीय हाइड्रॉलेज एंजाइम को कार्य के लिए अम्लीय वातावरण (pH~5) की जरूरत होती है। जो H+ ATPase द्वारा प्रदान की जाती है। Lysosome में V प्रकार ATPase पंप होते है। यह प्रोकैरियोटिक कोशिका और परिपक्व आरबीसी को छोड़कर सभी कोशिकाओं में पाया जाता है। भक्षकाणु कोशिकाओं में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। उच्च श्रेणी पादपों में यह कम पाया जाता है।

लाइसोसोम का निर्माण (Formation of Lysosome)

  • अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) और गॉल्जी काय (Golgi body) के द्वारा लाइसोसोम का निर्माण होता है।
  • अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) के द्वारा लाइसोसोम के एंजाइमों का निर्माण होता है। तथा चारों ओर की झिल्ली का निर्माण गॉल्जी काय द्वारा होता है।

लाइसोसोम के प्रकार (Types of Lysosome)

  1. प्राथमिक लाइसोसोम (Primary lysosome)
  2. द्वितीयक लाइसोसोम (Secondary Lysosome)
  3. अवशिष्ट काय (Residual body)
  4. ऑटोफैगोसोम (Autophagosomes)

1. प्राथमिक लाइसोसोम (Primary lysosome)

जब लाइसोसोम का बनता है तो इसमें अम्लीय हाइड्रॉलेज निष्क्रिय रूप मे इक्कठा होता है। यह अम्लीय हाइड्रोलेज अम्लीय माध्यम में ही कार्य करता है। इसे भंडारण कणिकाएँ (Storage Granules) भी कहते है।

2. द्वितीयक लाइसोसोम (Secondary Lysosome)

यह प्राथमिक लाइसोसोम और फैगोसोम या रिक्तिका के संलयन द्वारा बनता है। इन्हें पाचक रिक्तिकाएँ (Digestive Vacuoles) और हेटरोफेगोसोम (Heterophagosome) भी कहते है।

3. अवशिष्ट काय (Residual body)

लाइसो सोम में अपचनीय सामग्री या अपशिष्ट सामग्री होती है, जिसे एक्सोसाइटोसिस द्वारा कोशिका से बाहर निकाल दिया जाता है।

लिपोफ्यूसिन कण (Lipofuscin granule)- अवशिष्ट काय को एक्सोसाइटोसिस द्वारा कोशिका से निकाला जाता है या लिपोफ्यूसिन कण के रूप में जीवद्रव्य के अंदर रखा जाता है।

4. ऑटोफैगोसोम (Autophagosomes)

वह Lysosome जिसके द्वारा खुद की कोशिका के कोशिकांगों को अघटित किया जाता है। ऑटोफैगोसोम या साइटोलाइसोसोम कहलाता है।

लाइसोसोम से सम्बंधित रोग (Disease Related to Lysosome)

  1. गुचर रोग (Gaucher’s disease)
  2. टे-सेक रोग (Tay-Sachs disease)
  3. पोम्पेस रोग (Pompe’s disease)

लाइसोसोम के कार्य (Functions of Lysosome)

  1. फागोसाइटोसिस या पिनोसाइटोसिस के माध्यम से कोशिका में प्रवेश करने वाले कणों का पाचन करना। इसे हेटरोफैगी (Heterophagy) कहते है।
  2. कोशिका के आंतरिक पदार्थो का पाचन करने को ऑटोफैगी कहते है।
  3. ऑटोलाइसिस प्रक्रिया से पुरानी कोशिकाओं और संक्रमित कोशिकाओं नष्ट किया जाता हैं। कोशिका के सभी लाइसोसोम फट जाते है जिससे इसके सभी पाचक एंजाइम कोशिकांगों को पचाने लगते हैं। इसलिए इसे कोशिका की आत्मघाती थैली (Suicidal bag of the cell) भी कहा जाता है।

माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria)

इसकी खोज 1890 ई. में अल्टमेन (Altman) नामक वैज्ञानिक ने की थी। यह कोशिकाद्रव्य में पायी जाने वाली बहुत महत्वपूर्ण रचना है जो कोशिकाद्रव्य में बिखरी रहती है। अल्टमेन ने इसे बायोब्लास्ट तथा बेण्डा ने माइटोकॉण्डिया कहा। इसका आकार (size) और आकृति (shape) परविर्तनशील होता है। यह कोशिकाद्रव्य में कणों (Chondriomits), सूत्रों (Filament), छड़ों (Chondriconts) और गोलकों (Chondriospheres) के रूप में बिखरा रहता है। प्रत्येक माइटोकॉण्ड्रिया एक बाहरी झिल्ली एवं एक अन्तः झिल्ली से चारों ओर घिरी रहती है तथा इसके बीच में एक तरलयुक्त गुहा होती है, जिसे माइटोकॉण्ड्रियल गुहा (Mitochondrial cavity) कहते हैं।

माइटोकॉन्ड्रिया की संख्या (Number of Mitochondria)
  • इसकी संख्या भिन्न-भिन्न कोशिकाओं में भिन्न-भिन्न होती है जैसे अधिक चयापचय गतिविधि वाले कोशिकाओं में माइटोकॉन्ड्रिया की अधिक संख्या होती है।
  • आम तौर पर एक कोशिका में इनकी संख्या 1000-1600 होती है।
  • प्रोकैरियोटिक कोशिका, अनऑक्सी श्वसन करने वाली कोशिकाओं और स्तनधारीयों की वृद्ध RBC में इनकी संख्या कम होती है।
  • माइक्रेस्टेरिय्स हरित शैवाल (Micrasterias green algae) और स्पोरोज़ोइट (sporozoite) की कोशिका में एक माइटोकॉन्ड्रिया होता है।
  • काओस काओस अमीबा (Chaos Chaos amoeba) और प्लेमीक्सा (pleomyxa) में 5 लाख माइटोकॉन्ड्रिया होते हैं।
  • जन्तुकोशिकाओं में पादप कोशिकाओं की तुलना में अधिक माइटोकॉन्ड्रिया होते हैं।

माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना (Structure of Mitochondria)

  • आमतौर पर यह सॉसेज के आकार का या बेलनाकार, तंतुमय या छड़जैसा होता है
  • इसका व्यास 0.2-1.0µm और लंबाई 1.0-4.1µm होती है।

माइटोकॉन्ड्रिया एक दोहरी झिल्ली आबंध संरचना है, जिसमें निम्न घटक होते हैं-

बाहरी झिल्ली (Outer membrane)

  • माइटोकॉन्ड्रिया की बाहरी झिल्ली प्रोटीन और फॉस्फोलिपिड की बनी होती है इसमें फॉस्फेटिडिल कोलीन की मात्रा अधिक होती है। इसकी मोटाई 60-70 Å होती है।
  • इसकी बाहरी झिल्ली द्वारा बहुत बड़े अणुओं (6000 kD) का स्थानांतरण हो सकता है।
  • इसमें बड़ी संख्या में धंसे हुए प्रोटीन (integral proteins) होते हैं जिन्हें पोरिन (porins) कहा जाता है।

बाहरी झिल्ली की सतह पर वृंतविहीन कण पाये जाते है, जिनसे पार्सन की उपइकाई (subunits of parson) कहा जाता है।

भीतरी झिल्ली (Inner membrane)

यह माइटोकॉन्ड्रिया की आंतरिक झिल्ली है जिस पर ऑक्सीडेटिव फॉस्फोराइलेशन के एंजाइम पाए जाते है इस झिल्ली पर एटीपी संश्लेषण की प्रक्रिया होती है।

भीतरी झिल्ली (Inner membrane) की बाहरी सतह को सी-फेस (C-Face) तथा आंतरिक सतह को एम-फेस (M – Face) कहा जाता है।

क्रिस्टी (Cristae)

आंतरिक झिल्ली में कई उभार (projection) होते हैं जिन्हें क्रिस्टी (Cristae) कहा जाता है।

क्रिस्टी में टेनिस के रेकेट के समान संरचना होती हैं। जिन्हें F2 कण या ऑक्सीसोम या आंतरिक झिल्लिका उपइकाई (inner membrane subunit) कहा जाता है। ऑक्सीसोम एटीपीस एंजाइम होते हैं जो ऑक्सीडेटिव फास्फोरिलीकरण में भाग लेता हैं।

ऑक्सीसोम का निर्माण दो कारकों F0 तथा F1 के द्वारा होता है। F0 कण ऑक्सीसोम के आधार पर होता है। जो आंतरिक झिल्ली के साथ F1 कण के जुड़ने में मदद करता है और F0 F1 कण  को OSCP (oligomycin sensitivity conferring protein) कहा जाता है। दो ऑक्सीसम के बीच की दूरी 100Å होती  है।

आधात्री (Matrix)

  • आंतरिक झिल्ली से घिरे हुए स्थान में भरे द्रव को मैट्रिक्स के रूप में जाना जाता है।
  • इसमें कुल माइटोकॉन्ड्रियन प्रोटीन का लगभग 2/3 भाग होता है। ये प्रोटीन में क्रेब्स चक्र एंजाइम, श्वसनकारी एंजाइम होते है।
  • विशेष माइटोकॉन्ड्रियल राइबोसोम, टी-आरएनए और माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए जीनोम की कई प्रतियां शामिल हैं।

माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (Mitochondrial DNA)

  • माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए को अर्ध-स्वायत्त कोशिकांग (semi-autonomous orgenelle) कहा जाता है क्योंकि उनमें माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (mt-DNA) उपस्थिति होता है। जिसके कारण यह अपने प्रोटीन एवं एंजाइमों का निर्माण स्वंय कर सकता है।
  • Mitochondrial DNA द्विरज्जुकी (double stranded), नग्न (naked) दानेदार (granular), गोलाकार (circular), उच्च G-C अनुपात (higher G-C ratio) वाला अणु है। माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (mt-DNA) कोशिक के कुल डीएनए का 1% भाग होता है।
  • माइटोकॉन्ड्रिया में जीनोम (mt-DNA) का आकार छोटा होता है। लेकिन जीन की संख्या बहुत अधिक होती है।
  • mt-DNA का आकार जानवरों की तुलना में पौधे में अधिक होता है।
  • mt-DNA में उत्परिवर्तन से लेबर ऑप्टिक न्यूरोपैथी (Labour Optic Neuropathy) विकार उत्पन्न होता है। जिसमें नेत्र की दृक तंत्रिका (Optic Nerve) से जुड़े न्यूरॉन क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
  • mt-डीएनए का उपयोग Phylogenetic संबंधों के अध्ययन के लिए किया जाता है।

माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य

इसमें कोशिकीय श्वसन (Cellular respiration) होता है।

इसमें एटीपी का संश्लेषण (ATP production), एटीपी का भंडारण (ATP storage) और परिवहन (transport) होता है। ये तीनों कार्य माइटोकॉन्ड्रिया में होने के कारण इसको कोशिका का शक्ति गृह  (Power house of the cell) कहा जाता है।

न्यूरॉन्स में पाए जाने वाले माइटोकॉन्ड्रिया न्यूरोहोर्मोन के निर्माण में मदद करते हैं।

विटललोजेनेसिस (Vitellogenesis) के दौरान माइटोकॉन्ड्रिया में mitochondrial kinase एंजाइम पीतक (Yolk) को घना और अघुलनशील बनाता है।

लवक (Plastid): 

यह केवल पादप कोशिकाओं में पाये जाते हैं। ये कोशिकाद्रव्य में चारों ओर बिखरे रहते हैं। ये आकार में मुख्यतः अंडाकार, गोलाकार या तश्तरीनुमा (Dise shaped) होते हैं। इसके अलावा ये भिन्न-भिन्न आकार जैसे- तारानुमा, फीतानुमा, कुण्डलाकार आदि भी हो सकते हैं। ये तीन प्रकार के होते है-

(i) अवर्णीलवक (Leucoplasts): यह पौधों के उन भागों की कोशिकाओं में पाया जाता है, जो सूर्य के प्रकाश से वंचित रहते हैं। जैसे-जड़ एवं भूमिगत तनों में। यह स्टार्च कणिकाओं एवं तेलबिन्दु को बनाने एवं संग्रहीत करने हेतु उत्तरदायी होता है।

(ii) वर्णीलवक (Chromoplast): ये रंगीन लवक होते हैं जो प्रायः लाल, पीले एवं नारंगी रंग के होते हैं। ये पौधों के रंगीन भागों जैसे-पुष्प, फलाभिति, बीज आदि में पाये जाते हैं।

(iii) हरित लवक (Chloroplast): पौधों के लिए हरित लवक बहुत ही महत्वपूर्ण कोशिकीय संरचना है, क्योंकि इसी में मौजूद वर्णकों (Chlorophyll) की सहायता से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया सम्पन्न होती है। इस कारण हरित लवक को कोशिका का रसोई घर कहा जाता है। हरित लवक में पर्णहरित के अलावा कैरोटिन (Carotene) एवं जेन्थोफिल (Xanthophyll) नामक वर्णक भी पाये जाते हैं। पत्तियों का रंग पीला होने के कारण उनमें कैरोटिन का निर्माण होना है। पर्णहरित में मैग्नीशियम (Mg) धातु उपस्थित होता है।

रसधानी (vacuole)

कोशिका की रसधानियाँ (vacuoles) चारों ओर से एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली से घिरी रहती है, जिसे टोनोप्लास्ट (Tonoplast) कहते हैं। रसधानियाँ छोटी अथवा बड़ी हो सकती हैं। इन रसधानियों के अंदर ठोस या तरल पदार्थ भरा रहता है। जन्तु कोशिकाओं में रसधानियाँ छोटी होती हैं जबकि पादप कोशिकाओं में ये बड़ी होती हैं। पादप कोशिकाओं की रसधानियों में कोशिका रस (Cell sap) भरा रहता है जो कि निर्जीव पदार्थ होता है।

जन्तु कोशिका में रसधानियाँ जल संतुलन का कार्य करती हैं। पादप कोशिका में ये स्फीति (Turgidity) तथा कठोरता प्रदान करती है। कुछ एक कोशिकीय जीवों में विशिष्ट रसधानियाँ कुछ अपशिष्ट पदार्थों की शरीर से बाहर निकालने में सहायक होती हैं। इनमें भोज्य पदार्थ संचित रहते हैं। जलीय पौधों की रसधानियाँ गैसयुक्त होकर पौधों को तैरने में मदद करती हैं। पादप कोशिका का यह 90 प्रतिशत स्थान घेरता है।

रिक्तिकाएं कवक एवं पौधों की कोशिकाओं के छोटे पुटिका होते हैं जो पानी शर्करा जैसे विभिन्न पदार्थों के भंडारण की अनुमति देते हैं। कई पुटिकाओं का संलयन रिक्तिका के विकास की अनुमति प्रदान करता है, जिनके समोच्च को प्लाज्मा झिल्ली द्वारा सीमांकित किया जाता है।

तारककाय (Centrosome)

इसकी खोज 1888 ई. में बोवेरी ने की थी। यह केवल जन्तु कोशिका में पाया जाता है। यह एक बेलन जैसी रचना के रूप में दिखती है। यह जन्तु कोशिका के केन्द्रक के पास एक छोटा-सा चमकदार क्षेत्र होता है। इसमें एक या दो सूक्ष्म रचनाएँ होती हैं जिन्हें सेन्ट्रिओल (Centriole) कहते हैं। प्रत्येक सेन्ट्रिओल के चारों ओर धागे की तरह तारक रश्मियाँ (Astral rays) दिखायी पड़ती हैं।

तारककाय जन्तु कोशिका विभाजन में मदद करता है। यह कोशिका में सीलिया (Cilia) एवं फ्लैजिला (Flagella) के बनने में भाग लेता है। यह कोशिका का प्रचलन अंगक (Locomotory organelle) है।

 तारककेन्द्रक (Centriole) युग्म में पाए जाते हैं। यह युग्म ‘डिप्लोसोम’ (Diplosome) या ‘सेन्ट्रोसोम’ (Centro-some) कहलाता हैं। एक स्पष्ट तंतुमय कोशिका द्रव्य तारककेन्द्रकों को घेरता हैं, जिसे सेन्ट्रोस्फीयर (Centro-sphere) कहते हैं। सेन्ट्रोस्फीयर व तारककेन्द्रक को सम्मिलित रूप से तारककाय या डिप्लोसोम (Diplosome) कहते हैं। दो तारककेन्द्रक एक तारककाय में 90 डिग्री के कोण पर स्थित होते हैं। यह झिल्लीरहित संरचनाऐं हैं। ये सूक्ष्मनलिकाऐं उपलब्ध करवाकर, सूद्वमनलिकाओं के तर्कु बनाते हैं।

तारककाय के कार्य –

  • तारककाय सूक्ष्मनलिकाओं के बहुलकीकरण के द्वारा तर्कु तंतुओं व तारक किरणों का निर्माण किया करते हैं। यह समसूत्री व अर्द्धसूत्री विभाजन के लिए आवश्यक कार्य किया करते हैं।
  • तारककाय पक्ष्माभ व कशाभ के संघटन व विकास में सहायक होते हैं।
  • तारककाय कोशिका विभाजन के दौरान ध्रुवों का निर्धारण करता हैं।
  • मनुष्य या अन्य प्राणियों के शुक्राणुओं में पूँछ भाग का निर्माण तारककेन्द्र से होता हैं, जो तारककाय में उपस्थित होते हैं।

नाभिकीय अम्ल (Nucleic acid)

नाभिकीय अम्ल (Nucleic acid) बहुलक मैक्रोअणु (विशाल जैव-अणु) होता है, जो एकलकिक न्यूक्लियोटाइड्स की शृंखलाओं से बना होता है। जैवरासायनिकी के परिप्रेक्ष्य में, ये अणु आनुवांशिक सूचना पहुँचाने का कार्य करते हैं, साथ ही ये कोशिकाओं का ढाँचा भी बनाते हैं। सामान्यतः उपयोग होने वाले नाभिकीय अम्ल हैं डी एन ए या डीऑक्सी राइबो नाभिकीय अम्ल एवं आर एन ए या राइबो नाभिकीय अम्ल। नाभिकीय अम्ल प्राणियों में सदा ही मौजूद होता है, क्योंकि यह सभी कोशिकाओं और यहाँ तक की विषाणुओं में भी होता है। नाभिकीय अम्ल की खोज फ्रेडरिक मिशर ने की थी।

कृत्रिम नाभिकीय अम्ल –

  • पेप्टिक न्यूक्लिक अम्ल (पी एन ए),
  • मॉर्फोलिनो,
  • लॉक्ड न्यूक्लिक अम्ल (एल एन ए),
  • ग्लाइकॉल न्यूक्लिक अम्ल (जी एन ए),
  • थ्रेयोज़ न्यूक्लिक अम्ल (टी एन ए)

नाभिकीय अम्ल के प्रकार-

1. राइबोनाभिकीय अम्ल –

राइबोनाभिकीय अम्ल (आर.एन.ए.) एक नाभिकीय अम्ल का पॉलीमर होता है जिसके मोनोमर न्यूक्लियोटाइड होते हैं। यह जीन द्वारा डी एन ए से प्रोटीन में, अनुवांशिक सूचना की प्रतिलिपि करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह डी.एन.ए एवं प्रोटीन समूह (राइबोसोम) के बीच संदेशवाहक का काम करता है, राइबोसोम का जीवंत भाग बनता है और इसके साथ ही यह प्रोटीन संश्लेषण में उपयोग के लिए अमीनो अम्ल के लिए, आवश्यक वाहक अणु का कार्य भी करता है।

2. निरजारराइबोनाभिकीय (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक) अम्ल

निरजारराइबोनाभिकीय अम्ल एक नाभिकीय अम्ल होता है, जिसमें सभी प्राणियों के विकास एवं प्रकार्य के लिए अनुवांशिक सूचना सुरक्षित रहती है। इस अणु की प्रमुख भूमिका लंबे समय तक अनुवांशिक सूचना का संग्रहण करना है, जो कि नक्शों के ब्लूप्रिंट्स रखने के बराबर है क्योंकि इसमें कोशिका के घटकों के निर्माण के बारे में सूचना लिखी रहती है। डी.एन.ए के वे भाग, जो यह सूचना संग्रहण करते हैं उन्हें जीन कहते हैं। डी.एन.ए शृंखलाओं का संरचनागत उद्देश्य होता है, जो अनुवांशिक सूचना को नियंत्रित करता है।

रासायनिक ढांचा-

नाभिकीय अम्ल टर्म को बायपॉलीमर परिवार, जिसका कोशिका केन्द्रक में खास कार्य है, के सदस्यों के लिए उपयोग किया जाता है। नाभिकीय अम्ल के मोनोमर को न्यूक्लियोटाइड कहते हैं।

प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड में तीन घटक होते हैं:-

  • नाइट्रोजिनस हीट्रोसाय्क्लिक क्षार, जो प्यूरीन या पायरिमिडीन में से एक होता है।
  • एक पेन्टोज़ शर्करा।
  • एक फॉस्फेट समूह।

गॉल्जी काय (Golgi body)

इसको पहली बार तंत्रिका कोशिका में केन्द्रक के पास कैमिलो गॉल्जी (Camillo Golgi) ने देखा। उनके नाम पर इस संरचना को गॉल्जी काय का नाम दिया गया।

गॉल्जीकाय बहुरूपिय होती है, अर्थात अलग-अलग प्रकार की कोशिकाओं में इसकी संरचना भी अलग-अलग होती है। केवल इसी कोशिकांग में निश्चित ध्रुवीयता पायी जाती है।

बेकर द्वारा इसे “सूडान ब्लैक अभिरंजक” से अभिरंजित किया और इसे अनेक स्राव से संबंधित होना बताया। इसलिए इसको बेकर की बॉडी (baker’s body) भी कहते है।

गॉल्जी काय के अन्य नाम गॉल्जी सम्मिश्र (Golgi complex), गॉल्जीओसोम (Golgiosome), गॉल्जी बॉडीज (Golgi bodies), गॉल्जी उपकरण (Golgi apparatus), डाल्टन सम्मिश्र (Dalton complex), लिपोकोन्ड्रिया (Lipochondria), डिक्टायोसोम (Dictyosome), ट्रोफोस्पोन्जियम (Trophospongium), बेकर की बॉडी (baker’s body), इडियोसोम (Idiosome) है।

गॉल्जी काय की संरचना (Structure of Golgi body)

इसकी संरचना में निम्न घटक दिखाई देते हैं-

  1. सिस्टर्नी (Cisternae)
  2. नलिकाएं (Tubules)
  3. पुतिकाएँ (Vesicles)

1. सिस्टर्नी (Cisternae)

ये झिल्लीनुमा घुमावदार चपटी संरचना  होते है ये एक-दूसरे के समानांतर व्यवस्थित होती है। सामान्यतया इनकी संख्या 6-8 होती है। लेकिन गोल्जी काय में इनकी संख्याँ में विभिन्नता पायी जाती है। (कीट में सिस्टर्नी की संख्याँ 30 तक)।

गॉल्जी काय की सिस्टर्नी में चार संरचनात्मक घटक होते हैं-

  • सीस गॉल्जी (Cis Golgi)
  • अन्तः गॉल्जी (Endo Golgi)
  • मध्य गॉल्जी (Medial Golgi)
  • ट्रांस गॉल्जी (Trans Golgi)

2. नलिकाएँ (Tubules)

ये छोटी, शाखित, नलिकाकार संरचना होती है। ये शाखाओं के द्वारा आपस में जुड़ी होती है। ये सिस्टर्न के किनारों पर बनती है।

3. पुटीकाएँ (Vesicles)

ये छोटी तथा थैली जैसी संरचना है इनका निर्माण नलिकाओं द्वारा होता हैं। पुटीकाएँ निम्न प्रकार की होती है : –

(1) संक्रमण पुटीकाएँ (Transitional vesicles)

गॉल्जी काय अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) के साथ मिलकर काम करता है। जब अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) में कोई प्रोटीन बनाया जाता है, तो एक संक्रमण पुटिकाओं का निर्माण होता है। जिसमें प्रोटीन भरा होता है। यह पुटिका या थैली कोशिका द्रव्य के माध्यम से गॉल्जी तंत्र में प्रवेश होती है, तथा अवशोषित हो जाती है।

(2) स्रावी पुटीकाएँ (Secretory vesicles)

गॉल्जी उपकरण में संक्रमण पुटीकाओं के अवशोषित होने केपश्चात, स्रावी पुटिकाएँ बनाई जाती है जिनको कोशिका द्रव्य में छोड़ दिया जाता है। जहाँ से ये पुटिकाएँ कोशिका झिल्ली तक जाती है, और पुटिका या थैली में उपस्थित अणुओं को कोशिका से बाहर निकाल दिए जाते है।

(3) क्लैथ्रिन-लेपित पुटीकाएँ (Clathrin-coated vesicles)

ये पुटीकाएँ कोशिका के अन्दर ही विभिन्न प्रकार के उत्पादों के यातायात में सहायता करता हैं।

गॉल्जीकाय का सिस और ट्रांस भाग (Cis and Trans face of Golgi)

गॉल्जी काय केन्द्रक की ओर का भाग सिस भाग या निर्माण भाग (cis or forming face) कहलाता है कोशिका झिल्ली को ओर का भाग ट्रांस भाग या परिपक्व भाग (trans or maturing face) कहलाता है।

ER से बनने वाले प्रोटीन सिस भाग से गॉल्जी काय में प्रवेश करते है जिनकी पैकेजिंग करके ट्रांस भाग से पुटीकाओं को रूप में निकाला जाता है तथा इस प्रोटीन को आवश्यक भाग में भेजा जाता है

गॉल्जी काय का कार्य (Functions of Golgi Body)

1. स्राव करना (Secretion)

गॉल्जी तंत्र अपने सिस  भाग के माध्यम से एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम से विभिन्न पदार्थ प्राप्त करता है।

इन पदार्थों को रासायनिक रूप से एंजाइम ग्लाइकोसल ट्रांसफ़ेज़ (Glycosyl transferease) द्वारा संशोधित किया जाता है। जिसे प्रोटीन और लिपिड का ग्लाइकोसिलेशन (Glycosylation) कहते है।

2. प्रोटीन की छँटाई करना (Protein sorting)

सभी स्रावी प्रोटीन को सबसे पहले गॉल्जीकाय में ले जाया जाता है। फिर गॉल्जीकाय इनको अपने गंतव्य स्थानों जैसे लाइसोसोम, प्लाज्मा झिल्ली तक भेजता है।

3. लाइसोसोम का निर्माण करना

लाइसोसोम गॉल्जी काय के परिपक्व भाग (maturing face) द्वारा निर्मित होते हैं, जो एसिड फॉस्फेट से भरपूर होता है।

4. O-लिंक्ड ग्लाइकोसिलेशन (O-linked glycosylation)

गॉल्जी कॉम्प्लेक्स प्रोटीन का में ओ-लिंक्ड ग्लाइकोसिलेशन (O-linked glycosylation) होता है। जिसमें आमतौर पर प्रोटीन के थ्रेओनीन और सेरीन एमिनो अम्ल के साथ ग्लूकोज को जोड़ा जाता है।

5. जटिल पॉलीसेकेराइड का संश्लेषण (Synthesis of complex polysaccharide)

पौधों में गॉल्जी काय पौधों की कोशिका भित्ति में काम आने वाले के जटिल पॉलीसेकेराइड को संश्लेषित करता हैं।

6. एक्रॉसोम का निर्माण (Formation of acrosome)

गॉल्जी काय में रूपांतरण से शुक्राणु का एक्रॉसोम बनता है।

7. फ्रेग्मोप्लास्ट का निर्माण (Phragmoplast Formations)

पादप कोशिका विभाजन के दौरान फ्रेग्मोप्लास्ट का गठन गॉल्जी काय की पुटिकाओं के संलयन से होता है।

8. कोर्टिकल कणिकाओं का निर्माण (Formation of cortical granules)

गॉल्जी काय अंडे के कोर्टिकल कणिकाओं के निर्माण में मदद करता है।

9. प्रोटीन यातायात (Protein Trafficing)

गॉल्जी काय  विभिन्न प्रकार के प्रोटीन या अन्य अणुओं को पुटीकाओं के माध्यम से आवश्यक स्थानों तक पहुँचाता है इसलिए इसको कोशिका के अणुओं के यातायात का निर्देशक (director of macromolecular traffic in cell), कोशिका का मध्यवर्ती (middle man of cell) या कोशिका का ट्रैफिक पुलिस (traffic police of cell) कहा जाता है।

गॉल्जी काय के चारों ओर कोशिका द्रव्य के विभिन्न कोशिकांग जैसे राइबोसोम, माइटोकॉन्ड्रिया, क्लोरोप्लास्ट आदि दुर्लभ या अनुपस्थित होते हैं। इसे बहिष्करण का क्षेत्र (Zone of exclusion) कहते है।

माइक्रोट्यूब्यूल्स (Microtubules): 

ये छोटी-छोटी नलिकाकार रचनाएँ होती हैं जो कोशिका द्रव्य में पायी जाती हैं। यह कोशिका विभाजन के समय स्पिडल (spindle) के निर्माण में भाग लेती हैं। यह सेन्ट्रिओल, सीलिया, फ्लैजिला आदि के निर्माण में भी भाग लेती है।

माइक्रोट्यूबुल्स साइटोप्लाज्म में हर जगह पाए जाने वाले ट्यूबिलिन प्रोटीन के पॉलिमर होते हैं। माइक्रोट्यूबुल्स साइटोप्लाज्म के घटकों में से एक हैं। इनका निर्माण डिमर अल्फा और बीटा ट्यूबलिन के पोलीमराइजेशन द्वारा होता हैं। ट्यूबिलिन का बहुलक अत्यधिक गतिशील प्रकृति में 50 माइक्रोमीटर तक बढ़ सकता है। ट्यूब का बाहरी व्यास लगभग 24 एनएम है, और आंतरिक व्यास लगभग 12 एनएम है। माइक्रोट्यूबुल्स यूकेरियोट्स और बैक्टीरिया में पाए जाते हैं।

केन्द्रक (Nucleus)

कोशिका में केन्द्रक की खोज 1831 ई. में रॉबर्ट ब्राउन (Robert Brown) ने की थी। कोशिका द्रव्य के बीच में एक बड़ी, गोल एवं गाढ़ी संरचना पाई जाती है जिसे केन्द्रक कहते हैं। इसके चारों ओर दोहरे परत की एक झिल्ली होती है, जिसे केन्द्रक कला या केन्द्रक झिल्ली (Nuclear membrane) कहते हैं। इसमें अनेक केन्द्रक छिद्र होते हैं जिसके द्वारा केन्द्रक द्रव्य एवं कोशिका द्रव्य के बीच पदार्थों का आदान-प्रदान होता है।

प्रत्येक जीवित कोशिका में प्रायः एक केन्द्रक पाया जाता है, लेकिन कुछ कोशिकाओं में एक से अधिक केन्द्रक पाये जाते हैं। केन्द्रक के अंदर गाढ़ा अर्द्धतरल द्रव्य भरा रहता है, जिसे केन्द्रकद्रव्य (Nucleoplasm) कहते हैं। केन्द्रकद्रव्य में महीन धागों की जाल जैसी रचना पायी जाती है जिसे क्रोमेटिन जालिका (Chromatin network) कहते हैं।

 ये डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल (DNA) एवं प्रोटीन के बने होते हैं। DNA आनुवंशिक लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ले जाते हैं। कोशिका विभाजन (Cell division) के समय क्रोमेटिन जालिका के धागे अलग होकर कई छोटी और मोटी छड़ जैसी रचना में परिवर्तित हो जाते हैं। इसे ही गुणसूत्र (Chromosomes) कहते हैं। DNA अणु में कोशिका के निर्माण एवं संगठन की सभी आवश्यक सूचनाएँ होती हैं। DNA के क्रियात्मक खण्ड को जीन (Gene) कहते हैं। अतः DNA को आनुवंशिक पदार्थ तथा जीन को आनुवंशिक इकाई (Hereditary unit) कहते हैं। केन्द्रक कोशिका की रक्षा करता है और कोशिका विभाजन में भाग लेता है। यह कोशिका के अंदर सम्पन्न होनेवाली सभी उपापचयी (Metabolic) तथा रासायनिक क्रियाओं का नियंत्रण करता है। यह कुछ जीवों में कोशिकीय जनन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह कोशिका के विकास एवं परिपक्वन् को निर्धारित करता है। यह प्रोटीन संश्लेषण हेतु आवश्यक कोशिकीय आर.एन.ए. (RNA) उत्पन्न करता है।

एक सामान्य कोशिका के केन्द्रक में गुणसूत्र (Chromosome) महीन लम्बे तथा अत्यधिक कुण्डलित धागे के रूप में दिखायी देते हैं। कोशिका विभाजन के समय ये स्पष्ट दिखायी देते हैं। सामान्यतः गुणसूत्र बेलनाकार होते हैं। प्रत्येक गुणसूत्र के तीन भाग होते हैं-

(i) पेलिकल (Pellicle): गुणसूत्र का सबसे बाहरी आवरण पेलिकल कहलाता है।

(ii) मैट्रिक्स (Matrix): पेलिकल के द्वारा घिरा हुआ भाग मैट्रिक्स कहलाता है।

(iii) क्रोमैटिड्स (Chromatids): मैट्रिक्स में गुणसूत्र की पूरी लम्बाई में, दो समानान्तर कुण्डलित धागों के समान रचना होती है जिसे क्रोमैटिड्स या अर्द्धगुणसूत्र कहते हैं। प्रत्येक क्रोमैटिड में दो या अधिक अत्यन्त महीन कुण्डलित धागे के सामान रचनाएं पाई जाती हैं जिन्हें क्रोमोनिमटा (Chromonimata) कहते हैं। प्रत्येक क्रोमैटिड के क्रोमोनिमैटा इतनी अधिक घनिष्ठता से एक-दूसरे से सम्बद्ध होते हैं कि वे एक ही दिखाई पड़ते हैं। क्रोमैटिड DNA एवं हिस्टोन (Histone) प्रोटीन का बना होता है। गुण-सूत्र के दोनों क्रोमेटिड एक स्थान पर सेन्ट्रोमीयर (Centromere) के द्वारा एक-दूसरे से संयोजित रहते हैं। सेन्ट्रीमीयर एक महत्वपूर्ण रचना होती है जो गुण सूत्र का आकार निश्चित करता है तथा कोशिका विभाजन के समय तर्कु सूत्र (spindle fibres) से गुणसूत्र को संलग्न करता है। 

सेन्ट्रीमीयर की उपस्थिति के कारण ही गुणसूत्र दो भागों में विभाजित हो जाता है। प्रत्येक भाग बाहु (Arm) कहलाता है। दोनों बाहुओं के संधि स्थल पर एक संकुचन (Constriction) होता है जिसे प्राथमिक संकुचन (Primary constriction) कहते हैं। कभी-कभी गुणसूत्रों की बाहुओं में प्राथमिक संकुचन के अलावे एक अन्य संकुचन भी देखने को मिलता है इसे द्वितीयक संकुचन (Secondary constriction) कहते हैं। गुणसूत्र का शीर्ष भाग टेलोमीयर (Telomere) कहलाता है।

प्रत्येक जीवों की कोशिकाओं के केन्द्रक में पाये जाने वाले गुणसूत्रों की संख्या निश्चित होती है। जैसे मनुष्य के शरीर की कोशिकाओं में 46 गुणसूत्र, ड्रोसोफिला की कोशिकाओं में 8 गुणसूत्र, मक्का के पौधों की कोशिकाओं में 20 गुणसूत्र, टमाटर के पौधों की कोशिकाओं में 24 गुणसूत्र, आलू के पौधों की कोशिकाओं में 48 गुणसूत्र। ये गुणसूत्र सदा जोड़े में रहते हैं। एक जोड़े के दोनों गुणसूत्र सदा एक-दूसरे के समान होते हैं। इस कारण ये दोनों समजात गुणसूत्र (Homologous chromosome) कहलाते हैं। ऐसी कोशका के गुणसूत्र समूह, जिसमें दोनों समजात गुणसूत्र होते हैं, द्विगुणित (Diploid) कहलाते हैं। युग्मकों में गुणसूत्र की संख्या कायिक कोशिका के गुणसूत्र की संख्या की आधी होती है। ऐसे कोशिका के गुणसूत्र समूह अगुणित (Haploid) कहलाते हैं। 



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