भारतीय राजव्यवस्था – भारतीय संविधान का निर्माण व स्रोत
(Indian Polity - Creation and Source of Indian Constitution)
किसी भी देश का संविधान उसकी राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी सांचा-ढांचा निर्धारित करता है, जिसके अंतर्गत उसकी जनता शासित होती है। यह राज्य की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे प्रमुख अंगों की स्थापना करता है, उसकी शक्तियों की व्याख्या करता है, उनके दायित्वों का सीमांकन करता है और उनके पारस्परिक तथा जनता के साथ संबंधों का विनियमन करता है। इस प्रकार किसी देश के संविधान को उसकी ऐसी 'आधार' विधि (कानून) कहा जा सकता है, जो उसकी राजव्यवस्था के मूल सिद्धातों को निर्धारित करती है। वस्तुतः प्रत्येक संविधान उसके संस्थापकों एवं निर्माताओं के आदर्शों, सपनों तथा मूल्यों का दर्पण होता है। वह जनता की विशिष्ट सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रकृति, आस्था एवं आकांक्षाओं पर आधारित होता है।
संविधान का अर्थ
किसी राज्य का संविधान मूल सिद्धांतों या स्थापित परंपराओं का एक मौलिक समूह होता है जिसके आधार पर राज्य के द्वारा शासन का संचालन किया जाता है। यह सरकार की संस्थाओं के संगठन, शक्तियों और सीमाओं के साथ-साथ नागरिकों के अधिकारों एवं कर्तव्यों के मध्य एक संतुलन की तरह कार्य करता है। यह देश के सर्वोच्च कानून के रूप में भूमिका निभाता है, जो सरकार के कामकाज, व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं की सुरक्षा एवं सामाजिक व्यवस्था के रखरखाव के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है।
भारत का संविधान (Constitution of India)
भारत का संविधान भारतीय गणराज्य का सर्वोच्च कानून है। यह देश की राजनीतिक व्यवस्था के लिए रूपरेखा तैयार करता है, सरकार की संस्थाओं की शक्तियों एवं उत्तरदायित्वों को परिभाषित करता है। संविधान के द्वारा मौलिक अधिकारों की रक्षा के साथ- साथ शासन के सिद्धांतों को भी रेखांकित किया जाता है। संविधान में देश के प्रशासन का मार्गदर्शन करने वाले नियमों और विनियमों का एक समूह होता है।
भारतीय संविधान की संरचना (Structure of the Indian Constitution)
भारतीय संविधान विश्व के सबसे लंबे एवं विस्तृत लिखित संविधानों में से एक है। भारतीय संविधान की संरचना के विभिन्न घटकों को इस प्रकार देखा जा सकता है:
- भाग (Parts): संविधान में “भाग” का तात्पर्य समान विषयों या प्रवृत्तियों से संबंधित अनुच्छेदों के समूह से है। भारतीय संविधान विभिन्न भागों में विभाजित है, प्रत्येक भाग देश के कानूनी, प्रशासनिक या सरकारी ढांचे के विशिष्ट पहलू से संबंधित है।
- मूल रूप से, भारतीय संविधान में 22 भाग थे।
- वर्तमान में, भारतीय संविधान में 25 भाग हैं।
- अनुच्छेद (Articles): “अनुच्छेद” संविधान के अंतर्गत एक विशिष्ट प्रावधान या खंड को संदर्भित करता है, जो देश के कानूनी और सरकारी ढांचे के विभिन्न पहलुओं का विवरण प्रदान करता है।
- संविधान के प्रत्येक भाग में क्रमानुसार क्रमांकित कई अनुच्छेद होते हैं।
- मूलत: भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद थे।
- वर्तमान में, भारतीय संविधान में 448 अनुच्छेद हैं।
- अनुसूचियाँ (Schedules) – “अनुसूची” संविधान से सम्बंधित एक सूची या तालिका को संदर्भित करती है जो संवैधानिक प्रावधानों से संबंधित कुछ अतिरिक्त जानकारी या दिशानिर्देशों का विवरण प्रदान करती है।
- अनुसूचियाँ स्पष्टता और पूरक विवरण प्रदान करती हैं, जिससे संविधान अधिक व्यापक और कार्यात्मक बन जाता है।
- मूल रूप से, भारत के संविधान में 8 अनुसूचियाँ थीं। वर्तमान में, भारतीय संविधान में 12 अनुसूचियाँ हैं।
भारतीय संविधान का अधिनियमन और अंगीकरण (Enactment and Adoption of the Indian Constitution)
- भारतीय संविधान का निर्माण 1946 में गठित एक संविधान सभा द्वारा किया गया था। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे।
- 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा में भारत के स्थायी संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए एक प्रारुप समिति के गठन का प्रस्ताव रखा गया था। तदनुसार, डॉ. बी.आर. आंबेडकर की अध्यक्षता में प्रारुप समिति गठित की गई थी।
- प्रारुप समिति के द्वारा संविधान को तैयार करने में 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिनों का कुल समय लगा।
- कई विचार-विमर्श और कुछ संशोधनों के बाद, संविधान के प्रारुप को संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को पारित घोषित किया गया था। इसे भारत के संविधान की “अंगीकृत तिथि” के रूप में जाना जाता है।
- संविधान के कुछ प्रावधान 26 नवंबर 1949 को लागू हो गए थे। हालाँकि, संविधान का अधिकांश भाग 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, जिससे भारत एक संप्रभु गणराज्य बन गया। इस तिथि को भारत के संविधान के “अधिनियमन तिथि” के रूप में जाना जाता है।
भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ (Salient features of the Indian Constitution)
सबसे विस्तृत लिखित संविधान (Most comprehensive written Constitution)
भारतीय संविधान विश्व के सभी लिखित संविधानों में सबसे विस्तृत है। भारतीय संविधान के व्यापक और विस्तृत दस्तावेज होने में योगदान देने वाले कई कारक हैं, जैसे देश की विशाल विविधता को एकता में समायोजित करने की आवश्यकता, केंद्र और राज्यों दोनों के लिए एक ही संविधान, संविधान सभा में कानूनी विशेषज्ञों और जानकारों की उपस्थिति आदि।
विभिन्न स्रोतों से प्रेरित (Inspired by various sources)
भारतीय संविधान के अधिकाँश प्रावधान 1935 के भारत शासन अधिनियम के साथ-साथ विभिन्न अन्य देशों के संविधानों के प्रमुख प्रावधानों संशोधित करके भारतीय परिस्थितियों के अनुरुप अपनाया गया है।
कठोरता और लचीलेपन का मिश्रण (A combination of toughness and flexibility)
संविधानों को वर्गीकृत किया जाता है – कठोर (इसमें संशोधन के लिए एक विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है) और लचीला (इसमें सामान्य बहुमत से संशोधन किया जा सकता है )।
- भारतीय संविधान न तो कठोर है और न ही लचीला, बल्कि दोनों व्यवस्थाओं का एक मिश्रण है।
एकात्मकता के साथ संघीय प्रणाली (Federal system with unitarity)
भारतीय संविधान सरकार की एक संघीय प्रणाली स्थापित करता है और इसमें संघ के सभी सामान्य लक्षण शामिल होते हैं।
- हालाँकि, इसमें बड़ी संख्या में एकात्मक या गैर-संघीय विशेषताएँ भी शामिल हैं।
संसदीय शासन प्रणाली (Parliamentary system of government)
भारतीय संविधान ने ब्रिटिश संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया है। संसदीय प्रणाली विधायी और कार्यकारी अंगों के मध्य सहयोग और समन्वय के सिद्धांत पर आधारित है।
संसदीय संप्रभुता और न्यायिक सर्वोच्चता का समन्वय
(Reconciliation of parliamentary sovereignty and judicial supremacy)
भारत में संसदीय संप्रभुता और न्यायिक सर्वोच्चता के मध्य समन्वय स्थापित किया गया हैं, अर्थात् भारतीय संविधान में विधि के निर्माण के लिए विधायिका के अधिकार और संवैधानिक सिद्धांतों के आलोक में इन विधियों की समीक्षा और व्याख्या करने के लिए न्यायपालिका की शक्ति के मध्य एक संतुलन बनाया गया है।
- हालाँकि विधि बनाने का अंतिम अधिकार संसद को है, न्यायपालिका संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करती है तथा न्यायपालिका द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि संसदीय कार्य संवैधानिक मानदंडों के अनुसार हों तथा मौलिक अधिकारों की रक्षा के अनुरूप हों।
एकीकृत और स्वतंत्र न्यायपालिका (Unified and independent judiciary)
भारतीय संविधान के द्वारा देश में एक एकीकृत और स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली स्थापित की गई है।
- एक एकीकृत न्यायिक प्रणाली का अर्थ है कि न्यायालयों की एक एकल प्रणाली, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालय शामिल हैं, जो केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा निर्मित कानूनों की संविधान की मूल अवसरंचना अनुरूप समीक्षा करती है।
- एक स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली का अर्थ है कि भारतीय न्यायपालिका स्वायत्त रूप से संचालित होती है, जो सरकार की कार्यकारी और विधायी शाखाओं के प्रभाव से स्वतंत्र है।
मौलिक अधिकार (Fundamental rights)
भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को छह मौलिक अधिकारों की गारंटी प्रदान की गईं है, जिससे देश में राजनीतिक लोकतंत्र के विचार को बढ़ावा मिलता है। वे कार्यपालिका और विधायिका के मनमाने कानूनों के लागू होने से प्रतिबंधित करते हैं।
राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy)
भारतीय संविधान में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (DPSP) के रूप में सिद्धांतों का एक समूह शामिल है, जो उन आदर्शों को दर्शाते है जिन्हें राज्य को नीतियाँ और कानून बनाते समय ध्यान में रखना चाहिए।
- नीति-निर्देशक तत्त्व सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के आदर्श को बढ़ावा देकर भारत में एक ‘कल्याणकारी राज्य‘ स्थापित करने का प्रयास करते हैं।
मौलिक कर्तव्य (Fundamental duty)
मौलिक कर्तव्य भारतीय संविधान में उल्लिखित नैतिक और नागरिक दायित्वों का एक समूह है।
- ये कर्तव्य नागरिकों को एक मजबूत और सामंजस्यपूर्ण राष्ट्र बनाने की दिशा में योगदान करने के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं।
धर्मनिरपेक्ष राज्य (Secular state)
भारतीय संविधान किसी विशेष धर्म को भारतीय राज्य के आधिकारिक धर्म के रूप में नहीं मानता है। इसके बजाय, यह अनिवार्य करता है कि राज्य को सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए तथा किसी विशेष धर्म के पक्ष में या उसके विरुद्ध भेदभाव करने से परहेज करना चाहिए।
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (Universal adult franchise)
भारतीय संविधान लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के आधार के रूप में सार्वभौम वयस्क मताधिकार को अपनाता है।
- प्रत्येक नागरिक जो 18 वर्ष से कम आयु का नहीं है,उसे जाति, नस्ल, धर्म, लिंग, साक्षरता, धन आदि के आधार पर किसी भी भेदभाव के बिना वोट देने का अधिकार है।
एकल नागरिकता (Single citizenship)
एकल नागरिकता भारत में एक संवैधानिक सिद्धांत है जिसके तहत सभी नागरिकों को, चाहे वे किसी भी राज्य में पैदा हुए हों या रहते हों, पूरे देश में नागरिकता के समान राजनीतिक और नागरिक अधिकार प्राप्त हैं, और उनके बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाता है।
स्वतंत्र निकाय (Independent body)
भारतीय संविधान ने कुछ स्वतंत्र निकायों की स्थापना की है जिन्हें भारत में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के रक्षक के रूप में परिकल्पित किया गया है।
आपातकालीन प्रावधान (Emergency provisions)
भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को किसी भी असाधारण स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए आपातकालीन प्रावधान मौजूद हैं।
- इन प्रावधानों को शामिल करने का तर्क देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता और सुरक्षा, लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रणाली और संविधान की रक्षा करना है।
त्रि-स्तरीय सरकार (Three-tier government)
त्रि-स्तरीय सरकार का अर्थ है सरकार की शक्तियों और दायित्वों को तीन स्तरों पर विभाजित किया जाता है – केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और स्थानीय सरकारें (पंचायतें और नगरपालिकाएं)।
- इस विकेंद्रीकृत प्रणाली के द्वारा क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दों को ध्यान में रखते हुए योजनाओं का निर्माण किया जाता है, जो भागीदारीपूर्ण लोकतंत्र और जमीनी स्तर के विकास को बढ़ावा देती है।
सहकारी समितियाँ (Co-operative societies)
2011 के 97वें संविधान संशोधन अधिनियम ने सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा और संरक्षण प्रदान किया।
भारतीय संविधान का महत्त्व (Importance of Indian Constitution)
- विधि का शासन: संविधान विधि के शासन पर आधारित प्रशासन के लिए रुपरेखा स्थापित करता है, यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति, सरकारी अधिकारियों सहित, विधि से ऊपर नहीं है।
- अधिकारों की सुरक्षा: यह नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है, जैसे वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता आदि की रक्षा करता है, साथ ही साथ इन अधिकारों के उल्लंघन होने पर कानूनी निवारण के लिए तंत्र भी प्रदान करता है।
- सरकार की संरचना: संविधान सरकार की संरचना को चित्रित करता है, तथा सरकार के कार्यकारी, विधायी और न्यायिक शक्तियों और सीमाओं को परिभाषित करता है। शक्तियों के इस पृथक्करण के सिद्धांत से जांच और संतुलन को बढ़ावा मिलता है।
- लोकतांत्रिक सिद्धांत: सार्वभौम वयस्क मताधिकार जैसे प्रावधानों के माध्यम से संविधान निःशुल्क और निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से शासन में नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करके लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखता है।
- स्थिरता और निरंतरता: संविधान शासन में स्थिरता और निरंतरता प्रदान करता है, जो क्रमिक सरकारों को मार्गदर्शन देने और राजनीतिक व्यवस्था में अचानक परिवर्तन को रोकने के लिए एक ढांचे के रूप में कार्य करता है।
- राष्ट्रीय एकता: भारतीय संविधान लोगों की विविधता को मान्यता प्रदान करता है तथा इस विविधता को ध्यान में रखते हुए विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा प्रोत्साहित किया जाता है, साथ ही राष्ट्र के प्रति सामान्य नागरिकता और निष्ठा की भावना को भी बढ़ावा दिया जाता है।
- कानूनी ढांचा: संविधान कानूनी आधार के रूप में कार्य करता है जिस पर सभी कानून और विनियम आधारित होते हैं, कानूनी प्रणाली में निरंतरता और सुसंगतता प्रदान करते हैं।
- अनुकूलनशीलता (Adaptability): एक स्थिर ढांचा प्रदान करते हुए, संविधान बदलती सामाजिक आवश्यकताओं और मूल्यों को समायोजित करने के लिए आवश्यक संशोधनों की भी अनुमति प्रदान करता है, जो समय के साथ इसकी प्रासंगिकता सुनिश्चित करता है।
भारत के संविधान के स्रोत (sources of the constitution of india)
- 1935 का भारत सरकार अधिनियम – संघीय योजना, राज्यपाल का कार्यालय, न्यायपालिका, लोक सेवा आयोग, आपातकालीन प्रावधान और प्रशासनिक विवरण।
- ब्रिटिश संविधान – सरकार की संसदीय प्रणाली, विधि का शासन, विधायी प्रक्रिया, एकल नागरिकता, कैबिनेट प्रणाली, विशेषाधिकार रिट, संसदीय विशेषाधिकार और द्विसदनीय प्रणाली।
- अमेरिकी संविधान – मौलिक अधिकार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, न्यायिक समीक्षा, राष्ट्रपति पर महाभियोग, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाना और उपराष्ट्रपति का पद।
- आयरिश संविधान – राज्य के नीति निदेशक तत्त्व, राज्यसभा के लिए सदस्यों का मनोनयन और राष्ट्रपति के चुनाव की विधि।
- कनाडाई संविधान – एक मजबूत केंद्र के साथ संघ, केंद्र में अवशिष्ट शक्तियों का निहित होना, केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति और सर्वोच्च न्यायालय का सलाहकार क्षेत्राधिकार।
- ऑस्ट्रेलियाई संविधान – समवर्ती सूची, व्यापार, वाणिज्य और अंतर्व्यापार की स्वतंत्रता, और संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक।
- जर्मनी का वाइमर संविधान – आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन।
- सोवियत संविधान (USSR, वर्तमान में रूस)– प्रस्तावना में मौलिक कर्तव्य और न्याय का आदर्श (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक)।
- फ्रांसीसी संविधान – गणतंत्र और प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के आदर्श।
- दक्षिण अफ़्रीकी संविधान – संविधान में संशोधन और राज्य सभा के सदस्यों के चुनाव की प्रक्रिया।
- जापानी संविधान – विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया।
भारतीय संविधान की विभिन्न अनुसूचियाँ (Various Schedules of the Indian Constitution)
अनुसूची | विषय – वस्तु | विवरण |
---|---|---|
अनुसूची I | राज्यों के नाम और उनका क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार एवं केंद्रशासित प्रदेशों के नाम और उनका विस्तार | – |
अनुसूची II | परिलब्धियाँ, भत्ते, विशेषाधिकार आदि से संबंधित प्रावधान | यह अनुसूची विभिन्न संवैधानिक पदाधिकारियों जैसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल आदि के वेतन का विवरण प्रस्तुत करता है। |
अनुसूची III | शपथ और प्रतिज्ञान के प्रपत्र | यह अनुसूची विभिन्न संवैधानिक गणमान्य व्यक्तियों जैसे सांसदों, विधायकों, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों आदि के लिए शपथ और प्रतिज्ञान के प्रपत्र प्रदान करती है। |
अनुसूची IV | राज्य सभा में सीटों का आवंटन | यह अनुसूची राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में राज्यसभा (राज्यों की परिषद)की सीटों का आवंटन निर्धारित करतीहै। |
अनुसूची V | अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के संबंध में प्रावधान | – |
अनुसूची VI | असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में प्रावधान | – |
अनुसूची VII | संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची के अनुसार संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन। | वर्तमान में, संघ सूची में 100 विषय (मूल रूप से 97), राज्य सूची में 61 विषय (मूल रूप से 66) और समवर्ती सूची में 52 विषय (मूल रूप से 47) शामिल हैं। |
अनुसूची VIII | संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाएँ। | मूल रूप से इसमें 14 भाषाएँ थीं लेकिन वर्तमान में 22 भाषाएँ हैं जैसे असमिया, बंगाली, बोडो, गुजराती, हिंदी आदि। |
अनुसूची IX | संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाएँ। | मूल रूप से इसमें 14 भाषाएँ थीं लेकिन वर्तमान में 22 भाषाएँ हैं जैसे असमिया, बंगाली, बोडो, गुजराती, हिंदी आदि। |
अनुसूची IX | “यह अधिनियम राज्य विधानसभाओं के उन अधिनियमों और विनियमों से संबंधित है जो भूमि सुधार और जमींदारी प्रथा के उन्मूलन से जुड़े हैं, जबकि संसद अन्य मामलों से संबंधित है।” | यह अनुसूची 1951 के प्रथम संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ी गई थी, जो उन कानूनों को सरंक्षण प्रदान करती है जिन्हें मौलिक अधिकारों के उल्लंघनके आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है। |
अनुसूची X | दल-बदल के आधार पर संसद और राज्य विधानमंडलों के सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित प्रावधान। | यह अनुसूची 1985 के 52वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ी गई थी, जिसे दल-बदल विरोधी कानून के रूप में भी जाना जाता है। |
अनुसूची XI | पंचायतों की शक्तियों, प्राधिकार और उत्तरदायित्वों के विषय में विवरण। | यह अनुसूची 1992 के 73वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ी गई थी। |
अनुसूची XII | नगर पालिकाओं की शक्तियों, प्राधिकार और उत्तरदायित्वों के विषय में विवरण। | यह अनुसूची 1992 के 74वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ी गई थी। |
संविधान के भाग (Parts of the constitution)
भाग (Parts) | विषय – वस्तु |
I | संघ और उसका क्षेत्र |
II | नागरिकता |
III | मौलिक अधिकार |
IV | राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व |
IV-A | मौलिक कर्तव्य |
V | संघ सरकार |
VI | राज्य सरकार |
VIII | केंद्र शासित प्रदेश |
IX | पंचायतें |
IX-A | नगर पालिकाएँ |
IX-B | सहकारी समितियाँ |
X | अनुसूचित एवं जनजातीय क्षेत्र |
XI | संघ एवं राज्यों के मध्य संबंध |
XII | वित्त, संपत्ति, अनुबंध और मुकदमे |
XIII | भारत के क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और अंतर्व्यापार |
XIV | संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ |
XIV-A | न्यायाधिकरण |
XV | चुनाव |
XVI | कुछ वर्गों से संबंधित विशेष प्रावधान |
XVII | राजभाषाएँ |
XVIII | आपातकाल | प्रावधान |
XIX | विविध |
XX | संविधान में संशोधन |
XXI | अस्थायी, संक्रमणकालीन एवं विशेष प्रावधान |
XXII | संक्षिप्त शीर्षक, प्रारंभ, हिंदी में आधिकारिक पाठ और निरसन |
नोट – भाग-VII (पहली अनुसूची के भाग B में राज्य), 1956 के 7वें संवैधानिक संशोधन द्वारा हटा दिया गया है।
निष्कर्षतः, भारतीय संविधान राष्ट्र के लोकतांत्रिक आदर्शों और आकांक्षाओं का प्रमाण है। इसका निर्माण सावधानीपूर्वक किया गया है, जो ऐतिहासिक संघर्षों और दूरदर्शी सिद्धांतों पर आधारित है, और यह भारत को एक अधिक न्यायपूर्ण, समावेशी और समृद्ध समाज की ओर ले जाने का मार्गदर्शन प्रदान करता है। भारतीय संविधान अपने मूल्यों को बनाए रखने, विविधता के बीच एकता को बढ़ावा देने और प्रत्येक नागरिक के अधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा करने के लिए महत्त्वपूर्ण है, इस प्रकार यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उज्जवल भविष्य सुनिश्चित करता है।
संबंधित अवधारणाएँ (Related concepts)
- संविधानवाद – संविधानवाद एक ऐसी प्रणाली है जहां संविधान सर्वोच्च होता है और संस्थाओं की संरचना और प्रक्रियाएं संवैधानिक सिद्धांतों से संचालित होती हैं। यह एक ढांचा प्रदान करता है जिसके अंतर्गत राज्य को अपना कार्य संचालन करना पड़ता है। यह सरकार पर भी सीमाएँ आरोपित करते है।
- संविधानों का वर्गीकरण – दुनिया भर के संविधानों को निम्नलिखित श्रेणियों और उप-श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
प्रकार (Type) | स्वरुप | उदाहरण |
---|---|---|
संहिताबद्ध (Codified) | एकल अधिनियम में (दस्तावेज़) | संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत |
असंहिताबद्ध (Uncodified) | पूर्णतः लिखित (कुछ दस्तावेज़ों में) आंशिक रूप से अलिखित | इज़राइल, सऊदी अरब न्यूज़ीलैंड, यूनाइटेड किंगडम |
No comments:
Post a Comment