Monday, January 1, 2024

जीव जगत का वर्गीकरण (Classification of Organisms)




जीव जगत का वर्गीकरण (Classification of Organisms)

                                                            By:-- Nurool Ain Ahmad

अध्ययन की दृष्टि से जीवों को उनकी शारीरिक रचना,रूप व कार्य के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बाँटा गया है | लीनियस को ‘आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली का पिता’ कहा जाता है क्योंकि उनके द्वारा की गयी वर्गीकरण प्रणाली के आधार पर ही आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली की नींव पड़ी है| जीवों का ये वर्गीकरण एक निश्चित पदानुक्रमिक दृष्टि से  किया जाता है |

      अध्ययन की दृष्टि से जीवों को उनकी शारीरिक रचना,रूप व कार्य के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बाँटा गया है | जीवों का ये वर्गीकरण एक निश्चित पदानुक्रमिक दृष्टि अर्थात् जगत (Kingdom), उपजगत(Phylum), वर्ग (Class), उपवर्ग(Order), वंश(Genus) और जाति(Species) के पदानुक्रम में  किया जाता है | इसमें सबसे उच्च वर्ग ‘जगत’ और सबसे निम्न वर्ग ‘जाति’ होती है| अतः किसी भी जीव को इन छः वर्गों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है|

1. वर्गीकरण की आवश्यकता                                                     

निम्नलिखित आवश्यकताओं को प्राप्त करने के लिए वर्गीकरण आवश्यक है

•             सामान्य चारित्रिक विशेषताओं के आधार पर चीजों को जोड़ना।

•             मुख्य विशेषताओं के आधार पर जीवों को परिभाषित करना।

•             जीवों के विभिन्न समूहों के बीच संबंध जानने में मदद करता है।

•             यह जीवों के बीच विकासात्मक संबंध को समझने में मदद करता है।

 

2. जीव जगत का वर्गीकरण

जीव जगत के वर्गीकरण के लिए प्रस्तावित वर्गीकरण की तुलना तालिका में दी गई है।



3. पांच जगत वर्गीकरण

वर्ष 1969 में एक अमेरिकी टैक्सोनोमिस्ट आरएचव्हिटेकर ने पांच जगत वर्गीकरण का प्रस्ताव रखा था। राज्यों में मोनेरा, प्रोटिस्टा, फंगी, प्लांटे और एनिमेलिया शामिल हैं। वर्गीकरण के लिए अपनाए गए मानदंडों में कोशिका संरचना, थैलस संगठन, पोषण का तरीका, प्रजनन और फ़ाइलोजेनेटिक संबंध शामिल हैं । प्रत्येक साम्राज्य की मुख्य विशेषताओं का तुलनात्मक विवरण तालिका  में दिया गया है




 

गुण

 

•             वर्गीकरण कोशिका संरचना और थैलस के संगठन की जटिलता पर आधारित है।

 

•             यह पोषण के तरीके पर आधारित है

 

•             पौधों से कवक को अलग करना

 

•             यह जीवों की फाइलोजेनी को दर्शाता है

 

अवगुण

 

मोनेरा और प्रोटिस्टा साम्राज्य स्वपोषी और विषमपोषी दोनों जीवों को समायोजित करते हैं, जिनमें कोशिका भित्ति की कमी और कोशिका भित्ति वाले जीव होते हैं, जिससे ये दोनों समूह अधिक विषम हो जाते हैं।

 

•             सिस्टम में वायरस शामिल नहीं थे.

 

वर्ष 1990 में कार्ल वोइस और सहकर्मियों ने आरआरएनए न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम, कोशिका झिल्ली की लिपिड संरचना में अंतर के आधार पर जीवन के तीन डोमेन पेश किए बैक्टीरिया , आर्किया और यूकेरिया । वर्ष 1998 में थॉमस कैवलियर-स्मिथ द्वारा जीवित दुनिया के लिए एक संशोधित छह किंगडम वर्गीकरण प्रस्तावित किया गया था और किंगडम मोनेरा को आर्कबैक्टीरिया और यूबैक्टेरिया में विभाजित किया गया है । हाल ही में रग्गरियो एट अल ., 2015 ने सात किंगडम वर्गीकरण प्रकाशित किया जो थॉमस कैवेलियर की छह किंगडम योजना का व्यावहारिक विस्तार है। इस वर्गीकरण के अनुसार दो सुपरकिंगडम्स ( प्रोकैरियोटा और ) हैं यूकेरियोटा )प्रोकैरियोटा में आर्कबैक्टीरिया  और  यूबैक्टीरिया नामक दो साम्राज्य  शामिल हैं  ।  


यूकेरियोटा में प्रोटोजोआ, क्रोमिस्टा, कवक, प्लांटे और एनिमेलिया शामिल हैं। एक नया साम्राज्य, क्रोमिस्टा स्थापित किया गया था और इसमें सभी शैवाल शामिल थे जिनके क्लोरोप्लास्ट में क्लोरोफिल ए और सी होते हैं, साथ ही विभिन्न रंगहीन रूप भी शामिल होते हैं जो उनसे निकटता से संबंधित होते हैं। इस साम्राज्य के अंतर्गत डायटम, भूरा शैवाल, क्रिप्टोमोनाड्स और ओमीसाइकेट्स को रखा गया था।


जीवों को उनकी शारीरिक रचना,रूप व कार्य के आधार पर अलग-अलग वर्गों में विभाजित गया है। लीनियस को ‘आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली का पिता’ कहा जाता है क्योंकि उनके द्वारा की गयी वर्गीकरण प्रणाली के आधार पर ही आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली की शुरुआत हुई। जीवों का ये वर्गीकरण एक निश्चित पदानुक्रमिक दृष्टि से किया जाता है।

जीवों का ये वर्गीकरण एक निश्चित पदानुक्रमिक दृष्टि अर्थात् जगत (Kingdom), उपजगत (Phylum), वर्ग (Class), उपवर्ग (Order), वंश (Genus) और जाति (Species) के पदानुक्रम में  किया जाता है। इसमें सबसे उच्च वर्ग ‘जगत’ और सबसे निम्न वर्ग ‘जाति’ होती है। अतः किसी भी जीव को इन छः वर्गों के आधार पर वर्गीकृत किये जाते है।

सर्वप्रथम अरस्तू ने जीव जगत को दो समूहों अर्थात् वनस्पति व जंतु जगत में विभाजित किया था। उसके बाद लीनियस ने अपनी किताब ‘Systema Naturae’ में सभी जीवधारियों को पादप व जंतु जगत में वर्गीकृत किया था। लीनियस को ‘आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली का पिता’ कहा जाता है क्योंकि उनके द्वारा की गयी वर्गीकरण प्रणाली के आधार पर ही आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली की शुरुआत हुई।

1969 ई. में परंपरागत द्विजगत वर्गीकरण प्रणाली की जगह व्हिटकर (Whittaker) द्वारा प्रस्तुत पाँच जगत प्रणाली ने ले लिया। व्हिटकर ने सभी जीवों को पाँच जगत (Kingdoms) में विभाजित किया, वे 5 जगत निम्नलिखित है:-

  1. मोनेरा जगत (Monera) 
  2. प्रोटिस्टा जगत (Protista)
  3. कवक जगत (Fungi)
  4. पादप जगत (Plantae)
  5. जंतु जगत (Animal)

1982 ई. में मार्ग्युलियस व स्वार्त्ज़ (Margulius and Schwartz) ने इन पाँच जगत वर्गीकरण का पुनरीक्षण (Revision) किया। इसमें एक प्रोकैरियोटिक और चार यूकैरियोटिक जगत अर्थात् प्रोटोसिस्टा (Protocista), कवक, पादप व जंतु को शामिल किया गया। वर्तमान में इस वर्गीकरण प्रणाली को ही सर्वाधिक मान्यता मिली है।

1. मोनेरा जगत (Monera)

इस जगत में प्रोकैरियोटिक जीव अर्थात् जीवाणु (Bacteria), आर्कीबैक्टीरिया और सायनोबैक्टीरिया शामिल हैं। मोनेरा (Monera) जगत में सभी प्रोकैरिओटिक जीवों को शामिल किया गया है। इस जगत के जीव सूक्ष्मतम तथा सरलतम होते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस जगत के जीव प्राचीनतम हैं। मोनेरा जगत के जीव उन सभी स्थानों में पाये जाते हैं जहाँ जीवन की थोड़ी सी भी संभावना रहती है, जैसे-मिट्टी, जल, वायु, गर्म जल के झरने (80°C तक), हिमखण्डों की तली, रेगिस्तान आादि में।

मोनरो जगत को पुनः 2 वर्गों में बांटा जाता है जो निम्नलिखित है-

आर्कीबैक्टीरिया (Archaebacteria) : – इनमें से अधिकांश स्वपोषी (Autotrophs) होते हैं और वे अपनी ऊर्जा चयापचय क्रिया (Metabolic Activities), रासायनिक ऊर्जा के स्रोतों (जैसे-अमोनिया,मीथेन,और हाइड्रोजन सल्फाइड गैस) के आक्सीकरण से प्राप्त करते हैं। इन गैसों की मौजूदगी में ये अपना स्वयं का अमीनो अम्ल बना सकते हैं। इन्हें तीन वर्गों में विभाजित जाता है- 1. मेथोनोजेंस (मीथेन का निर्माण करते है), 2. थर्मोएसिडोफिल्स (अत्यधिक उष्ण और अम्लीय पर्यावरण के प्रति अनुकूलित), 3. हैलोफिल्स (अत्यधिक लवणीय पर्यावरण में बढ़ने वाले)  

आर्कीबैक्टीरिया अधिक प्राचीन है।

यूबैक्टीरिया (Eubacteria): – इनमें प्रायः झिल्ली से घिरे हुए केन्द्रक आदि कोशिकांग (Organelles) नहीं होते हैं। न्युक्लियोएड (Nucleoid) एकमात्र गुणसूत्र की तरह काम करता है। प्रकाश संश्लेषण व इलेक्ट्रानों का हस्तांतरण (Transfer) प्लाज्मा झिल्ली पर ही किया जाता है।

2. प्रोटिस्टा जगत (Protista)

इसमें विभिन्न प्रकार के एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव, जैसे- एककोशिकीय शैवाल, प्रोटोज़ाआ और एककोशिकीय कवक आदि सम्मिलिति हैं।

एककोशिकीय कवक, क्लोरेला, युग्लीना, ट्रिपैनोसोमा (नींद की बीमारी का कारण ), प्लाज्मोडियम, अमीबा, पैरामीशियम (Paramecium), क्लामिडोमोनास (Chlamydomonas) आदि इसके उदाहरण हैं।

ये स्वपोषी (जैसे- एककोशिकीय कवक,डायटम) या परपोषी (जैसे- प्रोटोज़ोआ) होते हैं।

प्रोटिस्टा जगत (प्रोटोसिस्टा) को निम्न वर्गों में विभाजित किया गया है –

अमीबा :-अमीबा प्रोटिस्टा जगत का महत्वपूर्ण प्राणी माना जाता है, जो ताल्राबो, झीलों आदि में पाया जाता है। अमीबा के भीतर संचरण के लिए पादाभ उपस्थित रहते है, जिससे ये अपना भोजन प्राप्त करता है। अमीबा के पादाभ इसे भोजन ग्रहण करने में सहायक होते है।

एंटअमीबा:- अमीबा की यह प्रजाति मनुष्य के लिए हानिकारण साबित हो सकती है, जिससे मानवो में कई बार अमीबिय पेचिश रोग पैदा हो जाता है। इसकी एक साधरण प्रजाति को हिस्टोलिका कहा जाता है। इसका आकार व् बनावट अमीबा के समान ही होता है, अधिकांशत: ये प्रदूषित जल में पाए जाते है, यदि मनुष्य इस जल का सेवन करता है तो वह संक्रमित हो सकता है।

प्लाजमोडियम:– प्रोटिस्टा जगत के इस परजीवी को मलेरिया परजीवी भी कहा जाता है। इसका जीवन चक्र 2 मुख्य प्रवस्थाओ में सम्पन्न होता है, जिसमे से लेंगिक जनन प्रावस्था मादा एनाफिलिज मच्छर द्वारा की जाती है, जो मलेरिया वाहक कहलाती है, एवं अलेंगिक जनन प्रावस्था मानव के रक्त द्वारा सम्पन्न की जाती है

युग्लिना:- यह जीव गंदे स्थानों, जैसे नाले, गड्ढे, गंदे पानी के जलाशयों आदि में उपस्थित रहता है। इस जीव का बाहरी आवरण बेहद लचीला होता है, जिसे पेलिकल कहा जाता है और यह प्रोटीन से निर्मित होता है। परासरण नियमन के लिए इसमें धानी मौजूद रहती है, जो प्राय: संकुचनशील होती है।

डायटम:- यह जीव नाम मिटटी, जल एवं गीली जगहों पर पाया जाता है। इसकी हजारो की संख्या में प्रजातिया जल में स्थित रहती हैं जो जलीय प्राणियों का भोजन करती है। डायटम तन्तु के रूप में विद्यामान हो सकते है, ये एक कोशिकीय भी हो सकते है।

3. कवक जगत (Fungi)

  • इसमें वे पौधे सम्मिलित हैं जो प्रकाश संश्लेषण (photosynthetic) क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं तैयार नहीं कर सकते हैं।
  • कुछ कवक, जैसे पेंसीलियम, अपघटक (Decomposer) होते हैं और मृत पदार्थों से पोषक तत्व लेते हैं।
  • ये परपोषी (Heterotrophic) और यूकैरियोटिक होते हैं।
  • कुछ कवक परजीवी (Parasites) होते हैं और जिस पौधे पर रहते हैं उसी से अपने लिए पोषक पदार्थ लेते हैं।
  • इनमें भोजन को ग्लाइकोजन के रूप में संचयित (Store) होता है।
  • कवकों के उदाहरण – यीस्ट, मशरूम, दीमक आदि हैं।

कवक जगत को निम्न वर्गों में विभाजित किया जाता है –

फाईकोमाईसिटिज (Phycomycetes):- इस प्रकार के कवक गीले एवं आद्र स्थानों पर पाए जाते है जैसे- सदी हुई लकड़ी, अथवा सीलन युक्त स्थान आदि। इनमे अलेंगिक जनन प्रक्रिया द्वारा जनन होता है, एवं युग्मको के मिलने से युग्माणु निर्मित होते है।

एस्कोमाईसिटिज (Ascomycetes Fungi):- इस प्रकार के कवक एक कोशिकी या बहुकोश्किय दोनों ही हो सकते है। इन्हें थैली कवक भी कहा जाता है। न्यूरोसपेरा इसका अच्छा उदहारण है, जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के रासायनिक प्रयोगों के अंतर्गत किया जाता है। इनमे भी अलेंगिक जनन पाया जाता है।

बेसीडियोमाईसिटिज (Basidiomycete Fungi):- ये कवक विभिन्न प्रकार के पौधो पर परजीवियों के रूप में विकसित होते है, इनमे अलेंगिक बीजाणु नहीं पाए जाते। इनके साधरण उदहारण मशरूम, पफबॉल आदि है। इनमे द्विकेंद्र्क सरंचना का निर्माण होता है, जिससे आगे चलकर बेसिडियम का निर्माण होता है।

ड्यूटीरोमासिटिज (Deuteromycota Fungi):- इस प्रजाति को अपूर्ण कवक की सूचि में रखा गया है, क्योकि इसकी लेंगिक प्रावस्था के आलावा और कुछ ज्ञात नहीं हो पाया है।

लाइकेन (Lichen): – लाइकेन को कवक के सहजीवी के रूप में जाना जाता है, क्योकि यह कवक के विकसित होने में सहायता करता है।

4पादप जगत (Plantae)

  • पादप जगत में बहुकोशिकीय पौधे शामिल होते हैं।
  • ये यूकैरियोटिक होते हैं।
  • इनमें लवक (Plastids) मौजूद होते हैं
  • ये स्वपोषी होते है अर्थात् अपना भोजन खुद तैयार करते हैं।
  • इनमें कोशिका भित्ति (Cell wall) पाई जाती है।
  • इनमें टोनोप्लास्त झिल्ली से घिरी हुई एक केन्द्रीय रिक्तिका/ रसधानी (vacuole) पाई जाती है।
  • ये पौधों के लिए भोजन को स्टार्च और लिपिड्स के रूप में संचय (Store) करते हैं।
  • शाखाओं के कारण इनका आकार भी निश्चित नहीं होता है।
  • पादपों की वृद्धि सीमित नहीं होती है।

पादप जगत को निम्न वर्गों में विभाजित किया गया है –

थैलोफाइटाः शैवाल, कवक और बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्म जीवाणुओं के प्रकार को इस श्रेणी में रखा गया है। शैवाल को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है–लाल, भूरा और हरा शैवाल।

ब्रायोफाइटाः पौधे जमीन और पानी दोनों में होते हैं लेकिन लीवर वार्ट्स, हॉर्न वार्ट्स, मॉस (Moss) आदि की तरह उभयचर होते हैं। ये पौधे भी स्वपोषी होते हैं, क्योंकि इनमें क्लोरोप्लास्ट पाया जाता है।

ट्रैकियोफाइटाः इन पौधों में संवहनी ऊतकों का अच्छा विकास होता है और वे जाइलम और फ्लोएम में बाँटे हुए होते हैं। ट्रैकियोफाइटा निम्नलिखित तीन उपसमूहों में विभाजित किए जाते हैं– टेरिडोफाइटा, जिम्नोस्पर्म और एंजीयोस्पर्म।

5. जंतु जगत (Animal)

  • जंतुओं में भित्ति रहित (wall less) यूकैरियोटिक कोशिकाएं होती हैं।
  • ये परपोषी होते है।
  • जंतु प्रायः एक निश्चित रूप व आकार के होते है।
  • ज्यादातर जंतु चलायमान (Motile) होते हैं।
  • इनमे जंतुओं की वृद्धि सीमित होती है।
  • जन्तुओं में ऊतक (Tissue), कोशिका, अंग व अंग प्रणाली के क्रमिक स्तर पाए जाते हैं।

जंतु जगत को निम्न संघो में वर्गीकृत किया गया है –

प्रोटोजोआ:-

प्रोटोजोआ में शामिल जन्तु एककोशकीय होते है, जिनमे जीवद्रव्य 1 किन्तु केन्द्रक बहुत सारे पाए जाते है। ये स्वतंत्र या परजीवी हो सकते है| इनका भोजन ग्रहण, पाचन, उत्सर्जन आदि सभी जैविक क्रियाए एककोशकीय शरीर के अंदर ही होती है।

पोरिफेरा:-

परिपेरा संघ में आने वाले सभी प्राणी खारे पानी में निवास करने वाले होते है। अधिकांशत ये बहुकोश्कीय होते है,लेकिन इनमे नियमित रूप से उत्तक नहीं बनते। इनके बाह्य शरीर पर हजारो की संख्या में छिद्र होते है व एक स्पंज गुहा होती है। इसके उदाहारण- स्पंज, मायोनिया आदि 

सिलेन्ट्रेटा:- 

सिलेन्ट्रेटा में शामिल जन्तु भी जलीय व द्विस्तरीय माने जाते है। इनके मुहं के पास धागे के जैसे तन्तु होते है, जो इन्हे भोजन पकड़ने में मदद करते है। इसके उदहारण – जेलिफ़िश, हायड्रा आदि।

प्लेटीहेल्मिन्थीज:-

प्लेटीहेल्मिन्थीज का शरीर त्रि-स्तरीय होता है, किन्तु इनमे कोई गुहा नहीं होती। इनका पाचन तन्त्र पूर्णत: विकसित नहीं होता एवं पीछे से शरीर चपटा होता है। इनमे उत्सर्जन की क्रिया फ्लेम नामक कोशिकाओं द्वारा सम्पन्न होती है। इनको उभयलिंगी जन्तु माना जाता है, एवं इनमे कंकाल तन्त्र, परिवहन तन्त्र आदि नहीं होते है। इसके उदहारण – लीवर, फिताकृमि आदि।

ऐस्केलमिथीज:-

ऐस्केलमिथीज की आकृति बेलन में समान व लम्बी होती है। ये कृमि अखंडित होते है एवं इनका शरीर तीन स्तरीय होता है। इनमे भोजन नाल, गुदा एवं मुख तीनो स्पष्ट रूप से पाए जाते है। ये एकलिंगी होते है, इनका तंत्रिका तन्त्र विकसित किन्तु परिवहन व श्वसन अंग नहीं पाए जाते है। इसके उदहारण – थ्रेडवर्म, एस्केरिस आदि।

ऐनीलिडा:-

ऐनीलिडा का शरीर पतला, लम्बा व कई खंडो में विभाजित रहता है। इनकी भोजन नली पूर्ण रूप से विकसित होती है। इन जन्तुओ में श्वसन की प्रक्रिया त्वचा द्वारा होती है, किन्तु कुछ जीवों में क्लोम द्वारा श्वसन भी होता है। इनमें तंत्रिका तन्त्र पाया जाता है, एवं वृक्क के द्वारा उत्सर्जन प्रक्रिया होती है। ये एकलिंगी व उभयलिंगी हो सकते है एवं इनका रक्त लाल होता है। इनके उदहारण – जोंक, नेरिस व् केंचुआ आदि।

आर्थ्रोपोडा:-

आर्थ्रोपोडा जन्तुओ का शरीर सिर, छाती व पेट अर्थात तीन भागों में विभक्त होता है। इनके शरीर में उपस्थित गुहा को हिमोसोल कहते है। ये अधिकांशत एकलिंगी होते है। तथा इसके उदाहारण – तिलचट्टा, केकड़ा, मच्छर आदि है।

मोलस्का:-

आर्थ्रोपोडा जन्तुओ का रुधिर रंगहीन होता है व इनकी देह भी तीन भागों में विभाजित रहती है। इसके अंतर्गत सिप्पी, घोंघा आदि आते है। इनमे श्वसन की प्रक्रिया गिल्स के द्वारा होती है व भोजन नली भी पूर्णत: विकसित होती है।

एकिनोडर्म:-

एकिनोडर्म समूह के अधिकांश जन्तु जलीय होते है। इनमे नाल पाद द्वारा भोजन की प्रक्रिया सम्पन्न होती है। इसके अंतर्गत स्टारफिश, सी अर्चिन आदि आते है। इनमे अपने अंगो के पुनरूत्पादन की अद्भुत क्षमता होती है एवं जल संवहन तन्त्र भी मौजूद होता है।

कोर्डेटा:-

कोर्डेटा के अंतर्गत आने वाले जन्तुओ में क्लोम छिद्र पाए जाते है। इस श्रेणी के जन्तुओ में नोकोकार्ड व तंत्रिका रज्जू, जो की नालदार होता है, भी पाया जाता है। इस समूह को 13 भागो में बांटा गया है, जिसके अंतर्गत मत्स्य वर्ग, एम्फिबिया वर्ग, पक्षी वर्ग, सरीसृप वर्ग, स्तनी वर्ग आदि शामिल होते है।


RBSE Class 11 Biology  जीव जगत का वर्गीकरण Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1. 
वर्गीकरण की पद्धतियों में समय के साथ आए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मानव ने सजीव प्राणियों के वर्गीकरण के प्रयास सभ्यता के प्रारम्भ से ही किये हैं। वर्गीकरण के यह प्रयास वैज्ञानिक मानदण्डों के स्थान पर सहज बुद्धि पर आधारित हमारे भोजन एवं आवास जैसी समान्य उपयोगिता की वस्तुओं के उपयोग की आवश्यकताओं पर आधारित थे। इन प्रयासों में जीयों के वर्गीकरण के वैज्ञानिक मानदण्डों का उपयोग सर्वप्रथम अरस्तू ने किया था। उन्होंने पादपों को सरल आकारिक लक्षणों के आधार पर वृक्ष, शाही एवं शाक में वर्गीकृत किया था। जबकि उन्होंने प्राणियों का वर्गीकरण लाल रजन की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति के आधार पर किया था।

लोनियस के काल में सभी पादपों और प्राणियों के वर्गीकरण के लिए द्विजगत पद्धति विकसित की गई थी। जिसमें उन्हें क्रमश: प्लांटी (पाद) एवं एनिमेलिया (प्रापी) जगत में वर्गीकृत किया गया था। यह पाइति कुछ काल तक अपनाई जाती रही थीं। पांच जगत वर्गीकरण की पद्धति सन् 1989 में आर.एच. विटेकर द्वारा प्रस्तारित की गई थी। ये पाँच जागत मानेग, प्रोटिस्य, पंचाई, प्लांटी एवं ऐनिलिया है। कोशिका संरचना, वैसस संरचना, पोषण की प्रक्रिया, प्रजनन एवं जातिकृतीय सम्बन्ध उनके वर्गीकरण की पद्धति के प्रमुख मानदण्ड थे।

प्रश्न 2. 
निम्नलिखित के बारे में आर्थिक दृष्टि से दो महत्वपूर्ण उपयोगों को लिखें:
(क) परपोषी बैक्टीरिया 
(ख) आद्य बैक्टीरिया। 
उत्तर:
(क) परपोषी वैक्टीरिया (Heterotrophic Bacteria)

  1. प्रतिनि के उत्पादन में 
  2. दक्ष से दही बनाने में
  3. लेग्यूम पादप की जड़ों में नवट्रोजन रिश्वीकरण में सहायता करते हैं।

(ख) आश बैक्टीरिया (Archachacteria)

  1. गाय व भैंस के गोबर से जैव गैस के उत्पादन में
  2. ये जीवाणु रूमिनेंट पशुओं के आन्च में पाये जाते हैं तथा स्टार्च के पाचन में सहायता करते हैं।

प्रश्न 3. 
डाएटम की कोशिका भित्ति के क्या लक्षण हैं?
उत्तर:
आइएटम (diatims) को कोशिका भिति साबुनदानी को तरह इसी के अनुरूप दो अतिछादित कवच बनाता है। इसमें सिलिका पायो जानी है। जिसके कारण कोशिका भिति नछ नहीं होती है। मृत झाटन अपने वास स्थान में शिक्षा भित्ति के अवशेष बहुत बड़ी संख्या में भेड़ देते हैं। करोड़ों वर्षों में जमा हुए इस अवशेष को डाइएटमी मृदा कहते हैं।

प्रश्न 4. 
'शैवाल पुष्पन' (Algal Bloom) तथा 'लाल तरंगें' (Red tides) क्या दर्शाती है?
उत्तर:
शैवाल पुष्पन (Algal Blocal) बोल हरी शैवाल के अनेक सदस्य जलाशयों में अधिक मात्र में उत्पन्न हो जाते हैं। जब इनकी मृत्यु हो जाती है तो जलाशयों के जाल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इस कारण जल में एक विशेष तरह की बदबू भी आने लगती है एवं जल का रंग भी बदल जाता है। इस प्रकार के ऑक्सीजन रहित जल का उपयोग करने से महलिया तथा अन्य जलीय जीवों को मृत्यु हो जाती है। इसे शैवाल पृष्यन कड़ते हैं, जो जीव-जन्तओं के लिए हानिकारक है। उदा, माइकोसिस्टम, एनेबीना, नास्टॉक तथा आसिनेटोरिया आदि।

लाल तरंगें (Red - tides):
कुल झायनोप्लैजिलेट की कोशिकाओं में लाल वर्गक पाये जाते हैं। इन लाल डामनोपजिलेट की संख्या में विस्फोट होता है। जिससे समुद्र का बल लाल (लाल रंगे) दिखाई देता हैं।

प्रश्न 5. 
बाइरस से बाइराइड कैसे भिन्न होते हैं?
उत्तर:
वाइरस से वाइराइड में भिन्नता:

वाइरस (Vinuses)

वाड्राइड (Viroids)

1. वे वैक्टीरिया से खोटे होते हैं।

वायरस से छोटे होते हैं।

2. इनमें आनुवंशिक पदार्थ RNA अथवा DNA हो सकता है।

जवकि पनमें केवल RNA पाया जाता है।

3. इनमें प्रोटीन का आवरण पाया जाता है।

जबकि इनमें प्रोटीन का आवरण नहीं पाया जाता है।

4. के परा निम्न रोग होतेर एनस, चेचक आदि।

जबकि इनके द्वारा पोटेटो स्पावन्टल ट्यूबर नामक रोग होता है।

प्रश्न 6. 
प्रोटोजोआ के चार प्रमुख समूहों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रोटोजोआ के चार प्रमख सगहों का वर्णन निम्न प्रकार से है:
(1) अमीबीच प्रोटोजोआ:
इस समूह के प्राणी स्वच्या जाल, समुदी जल तथा नम मिट्टी में पाये जाते हैं। इनमें कूटपाद पाये जाते हैं। कूटपाद की सहायता से चलन एवं भोजन का अन्तर्गहण होता है। इसके साथ ही कूटपाद शिकार को पकड़ने को सहायता करते हैं। ये पोषण के आधार पर समभोजी (holozoic) होते हैं। इनमें अलैंगिक जनन द्विविखण्डन, बीजाणु जनन परिकोरुन व बहुविभाजन व पुनरुदभवन द्वारा होता है।
उदाहरण: एंटजमीश।

(2) कशाभी प्रोटोजोआ:
इस समूह के प्राणी स्वच्कंद अथवा परजीवी होते हैं। इनमें कशाभ पाया जाता है, जिसके द्वारा गमन होता है। इनमें मृतोपजीवी (Sapraphytic) अवमा विषमपोषी (Heterotrophic) प्रकार का पोषण पाच जत है। इनमें अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) अनुदैर्ज द्विखण्डन (Longitudinal Binary Fission) द्वारा होता है।
उदाहरण: ट्रिपैनेसोगा। इसके द्वारा निदातु व्याधि नामक बीमारी होती है।

(3) पक्ष्माभी प्रोटोजोआ:
इस समूह के अन्तर्गत आने वाले प्राणी जलीय एवं तेज सक्रिय गति करने वाले होते हैं। क्योंकि उनके शरीर पर हजारों संखा में पक्ष्माभ पाये जाते हैं। इनमें एक गुहा पाई जाती है जो कोशिका की सतह के बाहर की तरफ खुलती है । पक्ष्माभों को लयबद्ध गति के कारण जल से पूरित भोजन गलेट की तरफ भेज दिया जाता है। इनमें पोषण हीटरोजोइक, होलोजोड़क एवं सेपरोजोइक प्रकार का होता है। अलैंगिक जनन अनुप्रस्थ द्विविभाजन द्वारा होता है।
उदाहरण: पैरामीशियम।

(4) स्पोरोजोआ:
इस समूह के समस्त प्राणी अन्तःपरजीवी (Endoparasite) होते हैं। इनमें गमन के लिए अंगों का अभाव होता है अर्थात् गमनांग अनुपस्थित होते हैं। इनके शरीर पर पेलिफल का आवरण पाया जाता है। इनमें अलैंगिक तथा लैंगिक दोनों प्रकार का प्रजनन पाया जाता है। अलैंगिक जान बहुविखण्डन द्वारा होता है व इससे बोजपुओं का निर्माण होता है। इनके जीवन च्छ में स्पोरोजोर अवस्था प्लाज्मोडियम की संक्रामक अवस्था होती है।
उदाहरण: प्लान्मोडियम।

प्रश्न 7. 
पादप स्वपोषी है। क्या आप ऐसे कुछ पादपों को बता सकते हैं, जो आंशिक रूप से परपोषित है?
उत्तर: 
पादप जगत में वे सभी जीव जो यूकैरिमोरिक और जिनमें क्लोरोफिल होता है वे पादप स्वपोषों कहलाते हैं।
हाँ, कुछ ऐसे पादप हैं जे आंशिक रूप से परपोषी हैं जो निम्नलिखित हैं- 

  1. विस्कम (Viscuum album)
  2. लोरेन्चस (Loranthus) 

प्रश्न 8.
शैवालांश तथा कवकांश शब्दों से क्या पता लगता है?
उत्तर:
लाइकेन शैवाल तथा कक्क के सहजोखी सहवास अर्थात् पारस्परिक उपयोगी सहवास हैं। शैवाल घटक को संवालांश तथा कक्क के पटक को कवकांश कहते हैं जो क्रमशः स्वोधी तथा परपोषी होते हैं। शैवाल कवक के लिए भोजन का निर्मग करता है और ववक शैवाल के लिए आश्रय देता है तथा खनिज एवं बाल का अवशोषण करता है।

प्रश्न 9. 
कवक (फैजाई) जगत के वर्गों का तुलनात्मक विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं पर करो:
(क) पोषण की विधि 
(ख) जनन की विधि।
उत्तर:

लक्षण

फाड़कोमाइसिटीज

ऐस्कोमाइसिटीज

बेसिडियोमाइसिटीज

इयूटिरोमाइसिटीज

(क) पोषण विधि

अविकल्पी परजीवी

मृतोपजीनी चा शमलरागी

परजीवी या मृतोपजीवी

प्राय: अपपटक कुछ मृतोपवीवी एवं परजीवी

(ख) जनन विधि

(i) अलगिक जनन

(ii) लगिक जनन

चल व अचल बीजाणुओं द्वारा होता है। इनका निर्मन बीजाणुधानियों से होता है।

सम या असमयुग्मकी

कोनिहिया या क्तमिहोबोजणु एककोशिकीय जातियों में विखण्डन, खण्डन, मुकलन द्वारा

एस्कोकार्प फलन पिण्ड में एस्कोसोर्स बनते हैं।

कोनिलिया या ग्लेमिहोबोजणुओं द्वारा होता है।

वेशीडियोकार्प फलन पिण्ड में बेसोडियोबीजानु बनते हैं।

कोनिडिया द्वारा

अनुपस्थित

प्रश्न 10. 
यूालीनॉइड के विशिष्ट चारित्रिक लक्षण कौन - कौनसे है?
उत्तर:
यूालीनांड के विशिष्ट चारित्रिक लक्षण निम्न है:

  1. इस समूह के अधिकांश प्राणी स्वच्छ जल में बसे तालाब, तालतलेया, नालों आदि में पाये जाते हैं अर्थात् स्थिर गल में पाये जाते हैं।
  2. देह पर लचीला आव्रण पाया जाता है जिसे पेलिकल (Pellicle) कहते हैं।
  3. पेरियल प्रोटीन की बनी होती है। 
  4. दो काशाभ होते हैं जिसमें एक छोय तथा दूसरा लम्या होता है। 
  5. काशाभ प्रचलन में सहायक होते हैं।
  6. इनमें क्लोरोफिल पाया जाता है जिसके द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश - संश्लेषण की क्रिया कर भोजन का निर्माण करते हैं।
  7. सूर्य के प्रकाश के अभाव में अन्य सूक्ष्म जीवधारियों का शिकार कर परपोषी की तरह व्यवहार करते हैं।
  8. इनमें लाल दृक बिन्दु पाया जाता है जो प्रकाश के लिए संवेदी होता है।
  9. इन प्राणियों में संकुचनशील धानी पानी जाती है ले परासरण नियमन का कार्य करती है।
  10. इनमें जनन दिविभाजन द्वारा होता है।

प्रश्न 11. 
संरचना तथा आनुवंशिक पदार्थ की प्रकृति के संदर्भ में बाइरस का संक्षिप्त विवरण दो। बाइरस से होने वाले चार रोगों के नाम भी लिखें।
उत्तर:
सभी वाइनस अकोशिकीय, कणिकीय संरचना हैं। इनका आवरण प्रोटोन का होता है जो इसके सममिति हेतु उत्तरदायी होता है, इसे केपिपाड कहते हैं। केप्सिड की उप-इकाइयों को कैप्सोमियर्स कहते है। प्रत्येक कैप्सोमियर्स अनेक प्रोटीन अणुओं द्वारा निर्मित होता है। प्रोटीन कोर के अन्दर DNA या RNA दोनें में से एक न्यूक्लिक अम्ल होता है। यह वाइनस का केन्द्रीय कोर होता है। कोर एवं कैपिड को मिलाकर इसे न्यूक्लिओकैप्सिह कहते हैं। कुछ गाटिल प्रकार के वादरसों में प्रोटीन एवं न्यूषिशक अम्ल के अतिरिका एक बाहरी आवरण भी पाया जात है जे शर्करा, वसा या वसा प्रोटीन का होता है, लिपो वाइरस कहते हैं।

थाइरसजनित चार रोग निम्नलिखित हैं -

  1. मास 
  2. पेषक
  3. हपोज
  4. इंग्लूएंजा एवं पदस।

प्रश्न 12. 
अपनी कक्षा में इस शीर्षक 'क्या वाइरस सजीव है अथवा निर्जीव' पर चर्चा करें।
उत्तर:
वाइरस अविकल्पी अन्तराकोशिकीय परजीवी होते हैं जिनमें बाहरी आवरण प्रोटीन का तथा अन्दर दो प्रकार के न्यूक्लिक अम्ल में से एक हो प्रकार का अर्थात् RNA या DNA ही होता है। इनका संवर्धन कृषिम माध्यम में सम्भव नहीं तथा ये अकोशिकीय होते हैं परन्तु इनमें पुषावृत्ति की प्रक्रिया पायी जाती है। इनमें संक्रमण, रोगवनकता व प्रतिजनी जैसे गुण पाये जाते हैं। इनका क्रिस्टलीकरण किया जा सकता है। वाइरसों में सजीव व निजीव दोनों प्रकार के गुण पाये जाने से इनें सजीव एवं निर्जीव के मध्य की कड़ी कहा जाता है।

वे गुण निम्न प्रकार से है -
वाइरसों के सजीव लक्षण 
(1) ये परपोषी विशिष्टता दशति हैं।

  1. इनका आनुवंशिक पदार्थ RNA या DNA होता है।
  2. पादप विषाणुओं में RNA तथा जन्तु विषाणुओं में DNA पाया जाता है।
  3. इनमें आनुवंशिक पदार्थों की पुनरावृत्ति होती है। 
  4. इनमें प्रतिजनो गुण होते हैं। 
  5. इनका प्रवर्धन केवल सजीव कोशिकाओं में ही सम्भव है।
  6. ये ताप, रासायनिक पदार्थ, विकिरन तथा जद्दीपकों के प्रति अनुक्रिया दर्शाते हैं।
  7. इनका उत्परिवर्तन का मुख्य लक्षण है। 
  8. इनमें कोशिका नहीं पायी जाती है। 

वाइरसों के निर्जीव लक्षण 

  1. ये सजीव कोशिकाओं के बाहर अक्रिय होते हैं।
  2. ये स्वोत्प्रेरक (Autocatalytic) होते हैं, इनमें प्रकार्षक स्वायत्तता (Functional Autonomy) का अभाव होता है।
  3. वाहरसों का क्रिस्टलीकरण किया जा सकता है।



        जीव जगत का वर्गीकरण पर आधारित One-Liner

 

  • स्पांजी टिशू ( स्पंजी ऊतक ) एक ऐसी गंभीर समस्या है जिसके कारण आम की जिस प्रजाति का निर्यात कुप्रभावित हो रहा है , वह है ? → अलफांसो
  • हाइड्रोफाइट कहते हैं ? → एक जलीय पौधे को
  • पौधों द्वारा ली गई विकीर्ण ऊर्जा परिणाम देती है ? → जल का प्रकाश अपघटन
  • आर्किबैक्टीरिया के एक समूह को उत्पादन के लिये उपयोग में लाया जाता है ? → मिथेन के
  • पौधे , जो नमक – युक्त मिट्टी में उगते हैं , को क्या कहते हैं ? → हैलोफाइट
  • एपिफाइट्स वे पौधे हैं जो अन्य पौधों पर निर्भर हैं ? → यांत्रिक अवलंब के लिए
  • जल की अधिकतम मात्रा जिसकी पौधों की आवश्यकता होती है वह उसे अवशोषण किस माध्यम से करते हैं ? → जड़ों के बालों से
  • सेब के फल में लाली का कारण है ? → एन्थोसायनिन
  • टमाटर में लाल रंग का कारण है ? → लाइकोपीन
  • अधिकांश कीट श्वसन कैसे करते हैं ? → वातक तंत्र से
  • जल से बाहर निकाल ली जाने पर मत्स्यें मर जाती हैं , क्योंकि ? → वे श्वास नहीं ले पाती है ।
  • मछलियों में सामान्यत : श्वसन होता है ? → गलफड़ों द्वारा
  • कपास का प्रमुख घटक है ? → सैलुलोस
  • लाइकन मिश्रित जीव हैं , जो बने होते हैं ? → कवक एवं शैवाल से
  • यीस्ट ( Yeast ) और मशरूम ( Mushrooms ) है ? → फफूंद ( Fungi )
  • प्राक् जीवाणु, जीवाणु सायनो-जीवाणु, नीलहरित शैवाल किस किंगडम के सदस्य हैं → मोनेरा
  • प्रोटोजोआ, स्लाइम मोल्डस तथा जलीय मोल्ड्स किस किंगडम के सदस्य → प्रोटिस्टा
  • मानव की जाति कौन-सी है → सैपियन
  • जीवों के वर्गीकरण की एक नई ‘फाइव किंगडम’ प्रणाली किसने प्रतिपादिता की थीं → विटकर
  • मोनेरा, प्रोटिस्टा, प्लांटी, कवक तथा ऐनिमेलिया का वर्णन वर्गीकरण की किस प्रणाली में वर्णित किया गया हैं → फाइव किंगडम
  • मोनेरा की कोशिकाएँ कितनी लम्बी होती हैं → 1 माइक्रॉन
  • स्पंज, नीडेरियन्स, कीट, मोलस्क, स्टारफिश, सरीसृप किस किंगडम के सदस्य हैं→ ऐनिमेलिया
  • कौन-से प्रोटिस्टा परभक्षी होते हैं → प्रोटोजोआ
  • शैवाल, लीवरवर्ट, मॉस, फर्न, पुष्पी पादप किस किंगडम के सदस्य हैं → प्लांटी
  • ब्रेड मोल्ड, यीस्ट, मशरूम किस किंगडम के सदस्य हैं→ कवक
  • जब कवक गले सड़े पौधों अथवा जन्तुओं के पदार्थों पर रहते हैं तब क्या कहलाते हैं → मृतजीवी
  • जब कवक सजीव पौधों तथा जन्तुओं के ऊतकों का स्वांगीकरण करते हैं तब वे क्या कहलाते हैं→ परजीवी
  • बहुकोशिकीय उत्पादकों का किंगडम कौन-सा है → प्लांटी
  • बहुकोशिकीय अपघटकों का किंगडम कौन-सा है → कवक
  • ऐनिमेलिया के सदस्य सर्वभक्षी यूकैरियोट क्या कहलाते हैं → मैटाजोआ
  • आदिम मैटाजोआ कौन कहलाता है→ स्पंज
  • विशिष्ट कवक वर्ग यीस्ट कौन-सी प्रक्रियाएँ करता है→ किण्वन
  • बहुकोशिकीय उपभोक्ताओं का किंगडम कौन-सा → ऐनिमेलिया
  • गर्म रुधिर वाले जन्तु वे होते हैं जो अपने शरीर के तापक्रम को ? → हमेशा एक सा बनाये रखते हैं

  • सील ( Seal ) किस जाति का है ? → स्तनपायी
  • शहतूत का फल है ? → सोरोसिस
  • सबसे बड़ा स्तनपायी कौन सा है ? → व्हेल मछली
  • व्हेल किस वर्ग का प्राणी है? → स्तनपायी
  • कौन सा रेशा पौधे के तने का उत्पाद नहीं है ? → कपास
  • लेग हीमोग्लोबिन पाई जाती है ? → लेग्यूम मूल ग्रन्थियों में
  • कौन सा ‘ मानव निर्मित ‘ धान्य है जो प्रकृति में नहीं पाया जाता ? → टिट्रिकेल
  • उड़ने वाले जीवों में से कौन सा पक्षी वर्ग में नहीं आता ? → चमगादड़
  • डॉल्फिन वर्गीकृत किए जाते हैं ? → स्तनी में
  • भारतीय वर्गिकी के जनक कौन हैं → सन्तापू
  • ‘मॉरफीन’ किससे प्राप्त होती है ? → फल
  • अफीम पोस्त पौधे के किस भाग से प्राप्त होता है ? → अधपके फल
  • प्याजों के छिलके उतारने पर आँसू आते हैं क्योंकि प्याज निष्कासित करते हैं ? → सल्फेनिक अम्ल
  • प्याज काटने पर कौन सा एंजाइम निष्कासित होता है ? → सिंथेज
  • कुनैन , सिनकोना पादप के किस भाग में पाई जाती है ? → छाल
  • सब्जियों की खेती को क्या कहते हैं ? → आलेरीकल्चर
  • तने के रूपांतरण के उदाहरण हैं ? → गन्ना , आलू , अदरक
  • जड़ों के रूपांतरण के उदाहरण हैं ? → शलजम , गाजर , शकरकंद
  • बायोसिस्टेमैटिक्स शब्दावली किन वैज्ञानिकों ने दी → केम्प तथा गिलि
  • टेक्सोन शब्दावली (जन्तुओं के लिए) किस वैज्ञानिक ने दीं → एडोल्फ मेयर
  • वनस्पति विज्ञान के जनक कौन हैं → थियोफ्रेस्टस
  • सबसे बड़ा अकशेरुकी है? → स्कविड
  • मानव – जाति वनस्पति – विज्ञान , वनस्पति – विज्ञान की वह शाखा है जिसका अध्ययन क्षेत्र है ? → जन – जातीय औषधि से संबंधित पौधे
  • विभिन्न संस्कृतियों को वैज्ञानिक विवरण को तुलनात्मक अध्ययन को कहते हैं ? → इथनोलॉजी
  • जैविक जगत में होने वाले कार्य , गुण व पद्धति के अध्ययन के इस ज्ञान की मशीनी जगत में उपयोग करने की क्या कहते हैं ? → बायोनिक्स

  • फूलों के अध्ययन को कहते हैं ? → एन्थोलॉजी
  • कीटों के वैज्ञानिक अध्ययन को कहते हैं ? → एंटोमोलॉजी
  • कौन सा विषय जनसंख्या एवं मानव जाति के महत्वपूर्ण आकड़ों के अध्ययन से संबंधित है ? → जनांकिकी
  • सब्जी के लिए काम आने वाले पौधों के अध्ययन को कहते हैं ? → ओलरीकल्चर
  • ‘विटिकल्चर’ के द्वारा कौन उत्पादित होता है ? → अंगूर
  • ‘हिस्टोरिया प्लेनटैरियम्’ तथा ‘कॉजेज ऑफ प्लान्ट्स’ नामक पुस्तकों के रचयिता कौन हैं → थियोफ्रेस्टस
  • टेक्सोनॉमी शब्दावली किस वैज्ञानिक ने दी → डी-केन्डोल
  • गुडहल किस जाति का पुष्प है → हिबिस्कस
  • गुडहल का कौन-सा वंश हैं→ रोजा
  • टॉक्सिकोलॉजी का संबंध किसके अध्ययन से है ? →विषों के
  • कुनैन , जो मलेरिया के इलाज में प्रयोग की जाती है , सिनकोना पादप के किस भाग से आती है ? → छाल
  • मलेरिया निदान हेतु आरटीथर नाम की औषधि प्राप्त होती है ? → बीजीय पादप से
  • सिनकोना की छाल से प्राप्त औषधि को मलेरिया को उपचार को लिये प्रयुक्त किया जाता था , जिस कृत्रिम औषधि ने इस प्राकृतिक उत्पाद को प्रतिस्थापित किया है , वह है ? → क्लोरोक्विन
  • लहसुन की अभिलाक्षणिक गंध का कारण है ? → सल्फर यौगिक
  • जीवन – चक्र की दृष्टि से , पौधे का सबसे महत्वपूर्ण अंग है ? → पुष्प
  • रेशम कीट जिन पर पनपता है , वे हैं ? → शहतूत की पत्तियां
  • गुडहल की प्रजाति कौन-सी है → साइनेन्सिस
  • जीवद्रव्य वर्गिकी (जीवद्रव्यी लक्षणों पर आधारित वर्गिकी) किन वैज्ञानिकों ने दीं → एल्स्टोन एवं टर्नर
  • रसायन वर्गिकी (रासायनिक संगठन पर आधारित वर्गिकी) किस वैज्ञानिक → हेस्लॉप हेरीसन
  • किस वैज्ञानिक ने पादप व जन्तुओं को सर्वप्रथम सजीव माना→ अरस्तू
  • त्रिनाम पद्धति के जनक कौन हैं→ लैमार्क

  • मरुस्थलीय पौधों की जड़ें लम्बी होती हैं , क्योंकि? → जड़ें पानी की तलाश में लम्बी हो जाती हैं
  • शुष्क जलवायु के भली – भांति अनुकूलित पेड़ – पौधों को कहते हैं ? → मरुदभिद्
  • सूक्ष्म जीवाणु ( बैक्टीरिया ) को देखा जा सकता है ? → कम्पाउण्ड दूर बीन द्वारा
  • मशरुम क्या है ? → कवक
  • कीट वर्धन क्या है ? → कीटों की वृद्धि करने वाला विज्ञान
  • ‘कृषकों का मित्र’ एवं ‘भूमि की आंत’ किसे कहा जाता है ? → केंचुआ
  • खाद , वर्मी कंपोस्ट पोषक पदार्थों से भरपूर जैव उर्वरक है ? → केंचुआ
  • मसालों में से कौन सी एक पुष्पकलिका होती है ? → लौंग
  • केसर होता है सूखा मिश्रण ? → फूल के बीज बनाने वाले भागों का
  • पपीते में पीले रंग का कारण है ? → करिका जैन्थिन
  • पपीते का वानस्पतिक नाम है ? → कैरिका पपाया
  • लाल मिर्च तीखी होती है क्योंकि उसमें उपस्थित होता है ? → कैपसेसिन
  • रेशम का कीड़ा ( Silk Worm ) अपने जीवन – चक्र के किस चरण में वाणिज्यिक तंतु ( Fiber of Commerce ) पैदा करता है ? → कोशित ( Pupa )
  • कौन सा एक फल है? → भिण्डी
  • कॉर्क किस पेड़ से प्राप्त होता है ? → क्वैकर्स
  • मनुष्य में परजीवी ग्रसन पैदा करने वाले कृमियों के अध्ययन को क्या कहते है → हेल्मिन्थोलॉजी
  • कुनैन जो मलेरिया के लिए एक प्रमुख औषधि है , वह प्राप्त होती हैं ? → आवृत्तबीजी पादप से
  • एक्सो – जीव विज्ञान में मुख्यत : किसका अध्ययन किया जाता है ? → बाह्य ग्रहों तथा अंतरिक्ष परतों पर जीवन
  • पक्षियों के अध्ययन के विज्ञान को क्या कहा जाता है ? → ओरनिथोलॉजी
  • हृदय और उसकी बीमारियों के अध्ययन से सम्बन्धित विज्ञान को क्या कहा जाता है ? → कार्डियोलॉजी
  • फाइकोलॉजी में किसका अध्ययन किया जाता है ? → शैवाल का

  • किस समूह के जीवों का , डूबने से हुई मृत्यु का पता लगाने में महत्व है ? → डायटम
  • नवजात शिशु की 3 माह तक की आयु के अध्ययन को क्या कहते है ? → नियोनेटॉलॉजी
  • ‘आर्निथोलॉजी’ में किसके अध्ययन किया जाता है ? → पक्षी का
  • प्राणियों के वैज्ञानिक नाम लिखने में किस भाषा का प्रयोग होता है ? → लैटिन
  • मधुमक्खी पालन को क्या कहते हैं ? → एपिकल्चर
  • जन्तु विज्ञान ( Zoology ) अध्ययन करता है? → जीवित व मृत जानवरों दोनों का
  • किसी जैव – यौगिक के , किसके प्रयोग द्वारा अपघटन की प्रक्रिया को किण्वन ( फर्मेन्टेशन ) कहते हैं ? → प्रकिण्व ( एन्जाइम )
  • कौन – सा एक कपि नहीं है ? → लंगूर
  • नील गाय किस कुल में आती है ? → हिरन
  • ऑक्टोपस – एक ? → मृदुकवची ( मोलस्क ) है
  • वर्मीकल्चर में प्रयुक्त वर्म होता है ? → अर्थ वर्म
  • रेशम कीट पालन की कहते हैं मधुमक्खी का उपयोग किया जाता हैं ? → एपीकल्चर में
  • लेक्सिकोग्राफी का सम्बन्ध है ? → शब्दकोष के संयोजन से
  • जुगनू होता है एक ? → कीट
  • कौन – सा कीट नहीं है ? → मकड़ी
  • एम्फीबिया ( Amphibia ) बताता है ? → जल एवं स्थल दोनों पर ही रह सकने वाले पशुओं को
  • कौन – सा गुण मनुष्य की अन्य सभी वानर गुणों से पृथक करता है ? → जानने की इच्छा प्रकट करना

  • जेरोन्टोलॉजी निम्नलिखित में से किसके अध्ययन से सम्बन्धित है ? → वृद्ध
  • कौन सा प्राणी अपनी आत्र में जल का संग्रह कर लेते हैं ? → ऊंट
  • हल्दी के पौधे का खाने लायक हिस्सा कौन सा है ? → प्रकन्द
  • फलों का वह प्रकार जिसमें लीची को रखा जा सकता है , वह है ? → एकबीजी बेरी
  • यदि किसी उभयलिंगी पुष्प में , पुमंग और जायांग अलग – अलग समय पर परिपक्व होते हैं , तो इस तथ्य को कहते हैं ? → भिन्नकालपक्वता
  • तना काट आमतौर से किसके प्रवर्धन के लिये प्रयोग किया जाता है ? → गन्ना
  • लौंग है ? → बन्द कलियां
  • कौन मछली नहीं है ? → स्टार फिश
  • कौन एक वास्तविक मीन ( मछली ) है ? → कैट फिश
  • कौन – सी वास्तविक रूप से मछली है ? → समुद्री घोड़ा
  • पैडोलॉजी किसके वैज्ञानिक अध्ययन से संबंधित है ? → मिट्टी
  • अस्थियों का अध्ययन विज्ञान की किस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है ? → ऑस्टियोलॉजी
  • कौन अण्डे देता है और सीधे बच्चे नहीं देता ? → एकिड्ना
  • उड़ने वाला स्तनपायी है ? → चमगादड़
  • लीथोट्रिप्सी क्या है ? → गुर्दे की पथरी किरणों द्वारा तोड़ना
  • सोलेनम ट्यूबेरोसम किस पौधे का वैज्ञानिक नाम है → आलू
  • ओराइजा सटाइवा किस पौधे का वैज्ञानिक नाम है → चावल
  • केजेनस केजन किस पौधे का वैज्ञानिक नाम है→ अरहर
  • रोजा इन्डिका किस पौधे का वैज्ञानिक नाम है → गुलाब
  • कुल को किसमें बाँटा गया है → वंश में
  • वंश को किसमें बाँटा गया है→ जातियों में
  • नामकरण के आधुनिक वैज्ञानिक वर्गीकरण में जंतु या वनस्पति जगत् को किसमें बाँटा गया है → उपजगत्
  • एक उपजगत् को किसमें बाँटा गया है → कई संघों में
  • भारतीय मेढक किस संघ का जंतु है→ कार्डेटा
  • भारतीय मेढक किस उपसंघ का जंतु है→ वर्टिब्रेटा
  • एक संघ को किसमें बाँटा गया है → कई गणों में
  • एक गण को किसमें बाँटा गया है → कई कुलों में
  • एक जाति को किसमें विभाजित किया जा सकता है→ उपजातियों में
  • भारतीय मेढक किस जगत् का जंतु है→ ऐनिमेलिया
  • भारतीय मेढक किस कुल का जंतु है→ रेनिडी
  • भारतीय मेढक किस वंश का जंतु है → राना
  • भारतीय मेढक किस वर्ग का जंतु है→ एम्फीबिया
  • भारतीय मेढक किस गण का जंतु है → एन्युरा
  • मानव का संघ कौन-सा है → कार्डेटा
  • मानव का उपसंघ कौन-सा है→ वर्टिबेटा
  • भारतीय मेढक किस जाति का जंतु है → टिग्रीना
  • मानव का जगत् कौन-सा है → ऐनिमेलिया
  • मानव का कुल कौन-सा है → होमीनाइड
  • मानव का वंश कौन-सा है → होमो
  • मानव का वर्ग कौन-सा है → मैमेलिया
  • मानव का गण कौन-सा है→ प्राइमेट
  • आयुर्वेद के जनक कौन थे → चरक
  • मनुष्य का वैज्ञानिक नाम क्या है → होमो सेपियन
  • पेन्थेरा टाइग्रिस किस जंतु का वैज्ञानिक नाम है → चीता
  • फैलिस डोमेस्टिका किस जंतु का वैज्ञानिक नाम है→ बिल्ली
  • 17वीं शताब्दी के अंत में किस अंग्रेज प्राकृतिक विज्ञानी ने सजीवों की मात्र एक प्रकार की स्पीशीज का नाम दिया → जॉन रे
  • 18वीं सदी में स्वीडन के किस प्राकृतिक वैज्ञानिक ने स्पीशीज को दो नामों से पुकारने की पद्धति विकसित की → केरोलस लिनियस
  • घटपणों का कौन सा भाग घट में रुपान्तरित होता है ? → पत्ता
  • निपॅथिस खासियाना ( घटपर्णी ) नामक दुर्लभ एवं आपातीय पौधा पाया जाता है ? → मेघालय में
  • पौधे के किस भाग से हल्दी प्राप्त होती है ? → तना
  • कौन सा रूपांतरिक स्तम्भ है ? → आलू
  • कौन – सा एक कवकों और उच्चतर पादकों की जड़ों के बीच उपयोगी प्रकार्यक साहचर्य है ? → कवकमूल
  • फलीदार पादपों की जड़ों में उपस्थित गांठों में पाए जाने वाले नत्रजन स्थिरीकरण जीवाण हैं ? → सहजीवी
  • मटर पौधा है ? → शाक
  • अधोभूमि उत्पादित सब्जियों में से कौन सी एक रूपान्तरित जड़ है ? → शकरकन्द
  • किस पादप का संग्रह अंग तना नहीं हैं ? → शकरकंद का
  • सर्पों के विषय में जानकारी प्राप्त करना कहलाता है ? → सर्पेंटोलॉजी
  • फिलाटेलिस्ट क्या करता है ? →डाक टिकट जमा करता है
  • हाइड्रोपोनिक्स क्या है ? → मृदा विहीन पादप संवर्धन
  • केरोलस लिनियस ने ‘स्पीशीज प्लांटेरम’ में पौधों की कितनी स्पीशीज दी हैं → 5900
  • पुस्तक ‘सिस्टेमा नेचुरी’ में जंतुओं की कितनी स्पीशीज दी हैं → 4200
  • चरक संहिता में कितने जंतुओं की सूची दी गई है → 200
  • चरक संहिता में कितने पौधों की सूची दी गई है → 340
  • जेनेटिक्स निम्न में से किसका अध्ययन है ? → आनुवांशिकता और विचरण
  • वृद्धावस्था एवं काल प्रभावन के विषय में ज्ञान प्राप्त करने की विधा की कहते हैं ? → जेरेन्टोलॉजी
  • व्हाइट लेग हार्न एक किस्म है ? → कुक्कुटों की
  • टिक और माइट वास्तव में होते हैं ? → मकड़ी – वंशी
  • सांपों की विषग्रंथियां किस की समांग हैं ? → कशेरुकी प्राणियों की लार – ग्रंथियां
  • चट्टान पर उगने वाले पादप कहलाते हैं ? → शैलोद्भद्
  • कौन – सा एक कीटाहारी पादप है ? → घटपर्णी
  • मकड़ी कीट से भिन्न होती है , क्योंकि मकड़ी में पायी जाती है ? → आठ टांगे
  • किस ग्रुप को जन्तु प्रायः रात्रिचर ( Nocturnal ) होते हैं ? → मच्छर , चमगादड़ , उल्लू
  • जैविक वर्गीकरण की मूलभूत इकाई कौन-सी है→ स्पीशीज
  • सरल भाषा में स्पीशीज का क्या अर्थ है → एक ही प्रकार के जीव
  • वर्गीकरण की विकसित प्रणालियाँ चार्ल्स डार्विन द्वारा प्रतिपादित किन सिद्धांतों के अनुरूप हैं → विकासवाद
  • पेरिप्लेनेटा अमेरिकाना किस जंतु का वैज्ञानिक नाम है → कॉकरोच
  • फेरेटिमा पोस्थमा किस जंतु का वैज्ञानिक नाम है → केचुआ
  • स्कोलियोडोन डोमेरिलिस किस जंतु का वैज्ञानिक नाम है → कुत्तामछली
  • मेढक का वैज्ञानिक नाम क्या है → राना टिग्रिना
  • ओरिक्टोलेगस क्यूनिक्यूलस किस जंतु का वैज्ञानिक नाम है → खरगोश
  • मेन्जीफेरा इन्डिका किस पौधे का वैज्ञानिक नाम है → आम
  • ट्रीटीकम एस्टीवम किस पौधे का वैज्ञानिक नाम है → गेंहू
  • हैलिएन्थस ऐनस किस पौधे का वैज्ञानिक नाम है → सूरजमुखी
  • ब्रेसिका कम्पेस्ट्रीस किस पौधे का वैज्ञानिक नाम है → सरसों

    

        Hiiii  Frndzzzzz…

  कैसे हैं आप सब ?????

     आपसे गुज़ारिश करता हूँ कि यह पोस्ट पसंद आने पर Like, Comments और Share ज़रूर करें ताकि यह महत्वपूर्ण Data दूसरो तक पहुंच सके और मैं इससे और ज़्यादा Knowledgeable Data आप तक पहुंचा सकू जैसा आप इस Blogger के ज़रिए चाहते हैं ।

                                                                                                                                     आपके उज्जवल भविष्य की कामनाओं के साथ

                                                              नुरूल ऐन अहमद   

                                                          Hell lot of Thnxxxxxx

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भौगोलिक शब्दावली -2 (Geographical terminology -2)

                                                         भौगोलिक शब्दावली -2                             (Geographical terminology -2)      ...