सिन्धु या हड़प्पा सभ्यता
(Indus or Harappan Civilization)
By:-- Nurool Ain Ahmad
हमारी पोस्ट भारतीय इतिहास ( Indian History ) से संबंधित है | इस पोस्ट में हम आपको Indian History के एक Topic सिन्धु या हड़प्पा सभ्यता (Indus Valley Civilization) के बारे में बताऐंगे !
इसका विकास सिंधु और सिंधु घाटी सभ्यता 3300 ईसापूर्व से 1700 ईसापूर्व तक विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है। यह हड़प्पा सभ्यता और ‘सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ के नाम से भी जानी जाती है। इसका विकास सिंधु और हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ। मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे। दिसम्बर 2014 में भिर्दाना को अबतक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया सिंधु घाटी सभ्यता का। मोहनजोदेड़ो सिंधी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है ‘मुर्दों का टीला।
हड़प्पा सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक थी। यह भारतीय उपमहाद्वीप में प्रथम नगरीय क्रांति को दर्शाती है। इसका क्षेत्रीय विस्तार, नगर नियोजन तथा सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता आदि इसे एक विशिष्ट सभ्यता के रूप में स्थापित करती है। यह काँस्ययुगीन सभ्यता थी। कार्बन डेटिंग पद्धति (C14) के आधार पर इस सभ्यता का काल लगभग 2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व माना जाता है।
हड़प्पा सभ्यता का उद्भव (Emergence of Harappan civilization)
हड़प्पा सभ्यता का उद्भव ताम्रपाषाणिक पृष्ठभूमि पर भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में हुआ जो वर्तमान में भारत, पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्रों में अवस्थित है। विस्तृत खोजों के बावजूद इस सभ्यता के उद्भव तथा विकास के संदर्भ में कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई है। उद्भव की प्रक्रिया को जानने में कई सारी व्यावहारिक समस्याएँ हैं, जैसे क्षैतिज उत्खनन का न होना, ऊर्ध्वाधर खनन भी जलस्तर के ऊपर तक होना, लिपि का अध्ययन नहीं हो पाना आदि।
इस प्रकार आवश्यक साक्ष्यों का अभाव जैसे साहित्यिक स्रोतों का अनुपलब्ध होना एवं पुरातात्त्विक स्रोतों द्वारा अपर्याप्त सूचना देना हड़प्पा सभ्यता के उद्भव की व्याख्या में एक बड़ी समस्या है। इस कारण से इस सभ्यता के उद्भव के संबंध में विभिन्न इतिहासकारों ने भिन्न-भिन्न मत व्यक्त किये हैं।
1.विदेशी उत्पत्ति से संबंधित मत
इस मत के प्रतिपादक मार्टिमर व्हीलर और गार्डन चाइल्ड जैसे इतिहासकार हैं। इसके लिये इन्होंने सांस्कृतिक विसरण का सिद्धांत प्रयुक्त किया। अन्नागार, गढ़ी तथा बुर्ज में प्रयुक्त शहतीरों के आधार पर मेसोपोटामिया से संबंध जोड़ा जाता है। उसी प्रकार बलूचिस्तान से प्राप्त मिट्टी के ढेरों की तुलना मेसोपोटामिया से प्राप्त जिगुरत (मंदिर) से की गई है। इनका मानना है कि मेसोपोटामिया से नगरीय सभ्यता के गुण भारत पहुँचे, लेकिन पुरातात्त्विक साक्ष्य इसके विपरीत हैं। हड़प्पा नगर-योजना मेसोपोटामिया से कहीं अधिक विकसित थी। हड़प्पा में पकी हुई ईंटों का प्रचुर प्रयोग मिलता है। हड़प्पाई मुहर, लिपि, औज़ार, मृद्भांड आदि मेसोपोटामिया और मिस्र से भिन्न हैं। हड़प्पाई लिपि चित्रात्मक थी तो मेसोपोटामियाई लिपि कीलनुमा ।
अतः हड़प्पा सभ्यता की मौलिकता के आधार पर कहा जा सकता है कि इसका उद्भव महज़ विदेशी प्रेरणा से नहीं हुआ, हालांकि इस पर विदेशी प्रभाव को पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता है।
2.द्रविड़ संस्कृति से उद्भव
कुछ विद्वानों का मत है कि आर्यों के आगमन से पूर्व द्रविड़ लोग इस क्षेत्र में निवास करते थे । यहाँ से प्राप्त भूमध्य सागरीय प्रजाति के कंकालों को ‘द्रविड़ों’ से जोड़ा गया है। साथ ही हड़प्पाई लिपि को भी द्रविड़ लिपि से जोड़ा गया है। इसके अलावा धार्मिक क्रियाकलाप, जैसे- लिंग पूजा, आराध्य देव की पूजा, मातृदेवी की पूजा, स्नान का महत्त्व आदि के आधार पर भी हड़प्पा संस्कृति पर द्रविड़ संस्कृति के प्रभाव को दर्शाने का प्रयास किया गया है। लेकिन आर्यों का आक्रमण अनैतिहासिक सिद्ध हो जाने के कारण केवल द्रविड़ संस्कृति से हड़प्पा के जुड़ाव का मत उचित प्रतीत नहीं होता है।
3.आर्य संस्कृति से उद्भव
इस सभ्यता की उत्पत्ति के संबंध में एक मत यह भी दिया जाता है कि आर्य लोग ही इस सभ्यता के जनक थे। इसके पक्ष में यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि दोनों सभ्यताओं का क्षेत्र सप्तसैधव ही था ऋग्वेद में इस क्षेत्र की तथा यहाँ की नदियों की चर्चा मिलती है। हाल ही में प्राप्त सिंधु मुहर पर घोड़े जैसी शक्ल को खोजने का दावा किया गया है। परंतु ठोस साक्ष्यों के अभाव में यह तर्क भी खंडित हो जाता है, क्योंकि आर्य लोग ग्रामीण तथा खानाबदोश जीवन जीते थे जबकि हड़प्पा सभ्यता नगरीकृत थी। वैदिक काल में इंद्र को पुरंदर अर्थात् किले का भंजक कहा गया है, जबकि इस तर्क के अनुसार इसे किले का निर्माता कहा जाना चाहिये था। वैदिक आर्य घोड़े तथा रथ का व्यापक प्रयोग करते थे। ऐसे में इस तर्क को भी मानना उचित नहीं लगता है।
4.क्रमिक रूप से देशी उत्पत्ति का सिद्धांत
क्रमिक उद्भव के सिद्धांत के परिप्रेक्ष्य में सामान्यतः दो दृष्टिकोण प्रचलित हैं। एक दृष्टिकोण के अनुसार यह सोथी संस्कृति से क्रमिक विकास को दर्शाता है तो दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार यह ईरानी- बलूची ग्रामीण संस्कृति से क्रमिक विकास का परिणाम है। पहले दृष्टिकोण के पक्ष में ऐसा सिद्ध करने का प्रयास किया गया है कि हड़प्पा सभ्यता बीकानेर क्षेत्र की सोधी संस्कृति का विकसित रूप है। इस मत के पक्ष में दोनों के मृद्भांडों में समानता दिखाई गई है। बलूचिस्तान क्षेत्र की पहाड़ियों के ग्रामीण स्थल जिन्हें नाल संस्कृति के रूप में पहचाना गया है तथा सिंधु से मकरान तट तक की कुल्ली संस्कृति को प्राक् – हड़प्पा सभ्यता के रूप में स्वीकार किया गया है।
विश्लेषण करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि हड़प्पा सभ्यता के उद्भव की व्याख्या उन ग्रामीण संस्कृतियों के परिप्रेक्ष्य में की जा सकती है जो उत्तर-पश्चिम के एक बड़े क्षेत्र में 6000 ईसा पूर्व एवं 4000 ईसा पूर्व के मध्य अस्तित्त्व में आईं। वस्तुतः इस काल में इस क्षेत्र में कुछ समृद्ध ग्रामीण बस्तियाँ स्थापित हुईं। उदाहरण के तौर पर बलूचिस्तान में मेहरगढ़ तथा किली गुल मुहम्मद, अफगानिस्तान मेंमुंडीगाक एवं पंजाब में जलीलपुर आदि। इस काल में लोगों ने सिंधु नदी की बाढ़ पर नियंत्रण करना सीख लिया और इस जल का उपयोग सिंचाई के लिये होने लगा। आस-पास की खदानों का उपयोग करके पत्थर के बेहतर उपकरणों का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया। इससे कृषि-अधिशेष जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकी। इस क्षेत्र में कृषकों के साथ खानाबदोश समूह भी रहता था। सिंधु का कछारी मैदान, बलूचिस्तान के पहाड़ी क्षेत्र के माध्यम से ईरानी पठार से जुड़ता था। खानाबदोश समूहों ने इन रास्तों के माध्यम से व्यापार में रुचि दिखाई। इसके परिणामस्वरूप पश्चिम एशिया एवं हड़प्पाई क्षेत्र के मध्य संपर्क सूत्र जुड़ने लगे।
3500-2600 ईसा पूर्व के बीच के काल को प्राक् हड़प्पा सभ्यता के नाम से जाना जाता है, इस काल में तांबे तथा हल का प्रयोग आरंभ हुआ। इसी काल में बड़ी-बड़ी रक्षात्मक दीवारों का निर्माण हुआ तथा सुदूर व्यापार को प्रोत्साहन मिला और इस प्रकार नगरीय सभ्यता की पृष्ठभूमि निर्मित हो गई।
उत्तर पश्चिम के विस्तृत क्षेत्रों में प्राक् हड़प्पाई स्थलों से हड़प्पा सभ्यता के उद्भव के साक्ष्य प्राप्त किये जा सकते हैं। उदाहरण के लिये दक्षिणी अफगानिस्तान के मुंडीगाक नामक स्थल से शिल्प आकृतियाँ प्राप्त हुई हैं। सिंध क्षेत्र के आमरी से मिट्टी की ईंटों के मकान मिले हैं।
इन उपलब्ध ग्रामीण जीवन पद्धतियों के अध्ययन से एक सामान्य निष्कर्ष निकाला जा सकता है जो इस बात की प्रस्थापना करने में समर्थ है कि हड़प्पा सभ्यता पूर्णतः देशी व स्थानीय विकास क्रम को दर्शाती है।
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार (Expansion of Harappan civilization)
पुरातात्त्विक खोजों ने यह स्पष्ट किया है कि हड़प्पा सभ्यता विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी, जिसके कम-से-कम 2800 स्थलों का पता लगाया जा चुका है। यह पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, सिंध एवं बलूचिस्तान में फैली हुई थी जो प्राचीन मेसोपोटामिया एवं मिस्र से बड़ी थी।
जम्मू में माडा और पंजाब के रोपड़ को हड़प्पा सभ्यता का उत्तरी छोर कहा जा सकता है, जबकि महाराष्ट्र का दैमाबाद गुजरात का भगतराव इसकी दक्षिणी सीमा मानी जा सकती है। पश्चिम में मकरान तट और सुत्कागेंडोर वहीं पूर्व में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के आलमगीरपुर तक इसका विस्तार माना जाता है।
हड़प्पा सभ्यता सिंधु नदी की घाटियों तक ही नहीं सिमटी थीं अपितु दक्षिणी बलूचिस्तान में सुत्कागेंडोर, सोत्काकोह,सिंध प्रांत में मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ो , कोटदीजी, पंजाब में हड़प्पा, रहमान डेरी, रोपड़, संघोल, हरियाणा में बनावली, राखीगढ़ी. राजस्थान में कालीबंगा, गुजरात में रंगपुर, लोथल, भगतराव , रोजदी, सुरकोटदा आदि हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल हैं।
हड़प्पा सभ्यता की उत्तरी और दक्षिणी सीमा के बीच लगभग 1400 किमी. की दूरी है, वहीं पूर्वी और पश्चिमी सीमा के बीच लगभग 1600 किमी. की दूरी है। संपूर्ण हड़प्पा सभ्यता लगभग 12 लाख वर्ग किमी. में फैली हुई है। अब तक जितने भी हड़प्पा स्थल ज्ञात किये गए हैं उनमें हड़प्पा सभ्यता की तीनों अवस्थाएँ मिलती हैं। इनका कालानुक्रम इस प्रकार है
- आरंभिक हड़प्पा सभ्यता (3500 ईसा पूर्व – 2350 ईसा पूर्व)
- परिपक्व हड़प्पा सभ्यता ( 2350 ईसा पूर्व – 1750 ईसा पूर्व)
- उत्तर हड़प्पा सभ्यता (1750 ईसा पूर्व से आगे)
स्वरूप एवं विशेषताएँ (Perspective and characteristics)
काँस्य युग
हड़प्पा सभ्यता एक काँस्ययुगीन सभ्यता थी। काँस्य युग विकास की एक विशेष अवस्था का परिचायक है। यह पाषाण युग से धातु युग में संक्रमण की प्रक्रिया को दर्शाता है। विश्व परिप्रेक्ष्य में मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यता काँस्ययुगीन ही थी। हड़प्पाइयों ने तांबे और टिन को मिलाकर काँसा बनाना सीख लिया था। यह दर्शाता है कि हड़प्पाई लोग तकनीकी विकास की ओर भी अग्रसर थे क्योंकि ताम्र उपकरणों की तुलना में काँस्य उपकरण अधिक प्रभावी तरीके से कार्य करते थे।
नगरीय सभ्यता
मोहनजोदड़ो, हड्प्पा, कालीबंगा, लोथल एवं धौलावीरा आदि ऐसे स्थल थे जहाँ कृषक जनसंख्या की अपेक्षा गैर-कृषि कार्य में लगे लोगों की संख्या अधिक थी। ये स्थल प्रशासनिक, शिल्प एवं व्यापार-वाणिज्य आदि गतिविधियों के केन्द्र होते थे। अन्य सभ्यताओं की अपेक्षा हड़प्पा के नगर कहीं अधिक नियोजित थे। ऐसा विकसित नगर नियोजन समकालीन मिस्र और मेसोपोटामिया में नहीं देखा जा सकता है।
ऐसा कहना सतही विश्लेषण होगा कि हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना में एकरूपता थी। यह सही है कि हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा का विभाजन पश्चिम और पूर्वी टीलों में किया गया था, मुख्य सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। लेकिन सभी स्थलों में स्थानीय विभिन्नताएँ भी थीं, जैसे- कालीबंगा में दो अलग-अलग दुर्ग थे, धौलावीरा में त्रिस्तरीय विभाजन था, कहीं-कहीं कच्ची ईंटों का भी प्रयोग हुआ है। वस्तुतः विभिन्न स्थलों के बीच पर्यावरणीय तथा भौगोलिक भिन्नता को देखते हुए नगर निर्माण योजना में विविधता भी स्वाभाविक दिखती है।
कृषि अधिशेष
हड़प्पा सभ्यता की एक विलक्षणता थी नगर एवं गाँवों के बीच उचित तालमेल व संतुलन। नगरीय सभ्यता के लिये कृषि अधिशेष का होना आवश्यक है। हड़प्पाई नगरों का अस्तित्त्व भी ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले अधिशेष पर टिका हुआ था। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि में धान्य कोठार भी प्रमाणित करते हैं कि ग्रामीण केंद्रों से अनाज किसी न किसी रूप में यहाँ लाए जाते थे। नदी घाटियों की उपजाऊ भूमि में गेहूँ तथा जौ की खेती की जाती थी। लोथल तथा रंगपुर से धान की भूसी के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
शिल्प तथा उद्योग
विभिन्न प्रकार की मृण्मूर्तियाँ, मृद्भांड, मनके, औज़ार, मूर्तियाँ एवं मुहरें आदि हड़प्पा सभ्यता के स्थलों से प्राप्त हुई हैं। विशिष्ट प्रकार की कुल्हाड़ी, छेनी, वाणाग्र, चाकू आदि भी मिले हैं। सिंध में एक प्रकार की विशेषज्ञता के साथ औज़ार-निर्माण का आभास मिलता है। यद्यपि तीखी नोक वाले औज़ारों की संख्या अपेक्षाकृत नगण्य है जो हड़प्पा सभ्यता की एक कमज़ोरी मानी जा सकती है।
यहाँ के स्थलों से भारी मात्रा में मृण्मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, जो अधिकांशतः हस्तनिर्मित हैं। मूर्तियों के विपरीत इसे जनसाधारण की भावनाओं और आवश्यकताओं का प्रतीक माना जा सकता है।
मृद्भांड चाक और हाथ दोनों तरीकों से बनते थे। ये सामान्यतः लाल रंग के होते थे जिन पर काली रेखाओं से पशु-पक्षियों आदि की आकृति चित्रित होती थीं।
हड़प्पा के स्थलों से भारी मात्रा में मुहरें भी प्राप्त हुई हैं। इनकी संख्या लगभग दो हज़ार से अधिक है। इनमें सर्वाधिक सेलखड़ी से बनी मुहरें हैं। इनमें भी अधिकांश चौकोर थीं। संभवतः इन मुहरों का उपयोग पण्य वस्तुओं के मालिकाना हक को चिह्नित करने में होता था। बाहरी देशों से व्यापार संपर्क प्रमाणित करने में ये मुहरें सहायक हुई हैं।
हड़प्पाई क्षेत्रों में कुलीन वर्ग के लोगों द्वारा विलासितापूर्ण सामग्री की जरूरतों को हम बहुमूल्य पत्थरों और धातुओं के मनके के निर्माण से जोड़ सकते हैं। मनके बनाने की प्रक्रिया का साक्ष्य चन्हूदड़ो के कारखाने से मिलता है। मोहनजोदड़ो से सूती कपड़े के एक टुकड़े के आधार पर सूत उद्योग की उपस्थिति का आकलन किया जा सकता है।
व्यापार-वाणिज्य
हड़प्पाई नगरीकरण का आधार उन्नत वाणिज्य-व्यापार ने तैयार कर दिया। यद्यपि कृषि-अधिशेष तथा व्यापार-वाणिज्य दोनों की नगरीकरण में भूमिका होती है, परन्तु हड़प्पाई नगरीकरण में व्यापार वाणिज्य ने निश्चय ही अधिक प्रभावी भूमिका निभाई। व्यापार के स्वरूप को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक इस प्रकार थे
- नज़दीक के ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों को खाद्यान्न की आपूर्ति हो जाती थी। उधर ग्रामीण कृषक समाज विभिन्न औज़ारों आदि के लिये शहरी शिल्प पर निर्भर था। इस प्रकार वे एक-दूसरे की जरूरत व पूरक दोनों थे। साथ ही इससे गाँव व नगर के बीच एक प्रकार का संतुलन कायम हो गया था।
- मूलतः शहरी समाज की आवश्यकताओं ने विदेशी व्यापार को निर्धारित किया जो वस्तुओं की विलासी प्रवृत्ति में स्पष्टतः प्रमाणित होता है।
- चूँकि प्रशासनिक केन्द्र के रूप में शहरों के विकास ने अपने यहाँ संसाधनों के एकत्रीकरण को प्रोत्साहन दिया, इसलिये यह स्वाभाविक ही था कि इस पर नियंत्रण शहरी समाज का ही होता ।
राजस्थान के खेतड़ी से ये तांबा प्राप्त करते थे। संभवतः ये सोना कर्नाटक के कोलार क्षेत्र से प्राप्त करते थे जबकि अफगानिस्तान और ईरान से चांदी।
मेसोपोटामिया के कई शहरों से हड़प्पाकालीन मुहरों से मिलती-जुलती मुहरें प्राप्त हुई हैं, वहीं दूसरी ओर मोहनजोदड़ो में मेसोपोटामिया के बेलनाकार मुहरों के नमूने प्राप्त हुए हैं। ये वस्तुतः दोनों सभ्यताओं के मध्य व्यापारिक संबंधों को इंगित करते हैं। यद्यपि दोनों के बीच भौगोलिक दूरी को देखते हुए नियमित आदान-प्रदान की आशा नहीं की जा सकती है फिर भी इनके बीच बहुत नज़दीकी संबंध थे।
समाज व राजनीति
हड़प्पा सभ्यता के स्थलों के उत्खनन से विभिन्न प्रकार के भवन व विलासिता की वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। ये पहले ही ज्ञात है कि हड़प्पा में शहरी और ग्रामीण के साथ-साथ खानाबदोश जातियाँ भी थीं। उपर्युक्त सारे तथ्य हड़प्पा में एक विभेद की स्थिति को दर्शाते हैं। शिल्प और व्यापार की उन्नत अवस्था से दस्तकारों व व्यापारियों के समूह की उपस्थिति अनिवार्य प्रतीत होती है। व्यापार की उन्नत अवस्था के आधार पर कभी-कभी हड़प्पा को वणिक वर्ग द्वारा शासित माना जाता है। विभिन्न प्रकार के धार्मिक स्मारक पुरोहित वर्ग की उपस्थिति को स्पष्ट करते हैं। यद्यपि स्पष्ट रूप से इन्हें मेसोपोटामिया और मिस्र के समान शक्तिशाली नहीं माना जा सकता है। सुनियोजित नगर-निर्माण व अन्य सुविधाएँ हड़प्पा सभ्यता में एक व्यवस्थित शासन तंत्र की ओर इशारा करती हैं।
धर्म
हड़प्पाई समाज पर दृष्टिपात करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि हड़प्पाई समाज जटिलताओं पर आधारित था। कुछ वैसी ही जटिलताएँ हमें इनके धार्मिक मनोभाव एवं रीति-रिवाज़ों में भी देखने को मिलती हैं। हड़प्पाई धर्म के स्वरूप में व्यापक विविधता देखी जा सकती है, यथा कहीं अग्निपूजा का प्रचलन था तो कहीं जलपूजा का। अनेक स्थलों से स्त्री मूर्तियाँ व मृण्मूर्तियाँ प्राप्त हुई जो मातृदेवी के व्यापक प्रचलन की ओर संकेत करती हैं। इसी प्रकार कहीं वृक्षपूजा, पशुपूजा एवं पशुपति शिव की पूजा उपासना के कई रूप प्रचलित थे।
इसके साथ ही मृतक संस्कार की भी भिन्न रीतियाँ मौजूद थीं। सामान्यतः मृतकों को उत्तर से दक्षिण दिशा में रखकर दफनाया जाता था व ईंटों से कब्र बनती थी, लेकिन हड़प्पा से ताबूत के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं तथा लोथल से युगल शवाधान का प्रमाण मिला है जो ये संकेत करते हैं कि हड़प्पा सभ्यता में धार्मिक एकरूपता पूरी तरह विद्यमान नहीं थी ।
हड़प्पा सभ्यता का नगर नियोजन (Town planning of Harappan civilization)
हड़प्पा सभ्यता की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी- इसकी नगर योजना । इस सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थलों के नगर निर्माण में समरूपता थी। नगरों में भवनों का निर्माण बड़े व्यवस्थित ढंग से हुआ है। ऐसी विकसित नगर निर्माण योजना समकालीन मेसोपोटामिया व मिस्र में भी नहीं देखी जा सकती है।
अधिकांश नगर नदियों के किनारे बसे थे, जैसे मोहनजोदड़ो- सिंधु नदी, हड़प्पा- रावी नदी, लोथल – भोगवा नदी, कालीबंगा- घग्घर नदी एवं उसी प्रकार के अन्य अनेक नगर मिले हैं जो या तो बिल्कुल नदी के किनारे बसे थे या नदियों से यातायात को ध्यान में रखते हुए बनाए गए थे।
हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख नगर दो भागों में विभाजित थे- पश्चिमी भाग में दुर्ग तथा पूर्वी भाग में निचला शहर। दुर्ग क्षेत्र में शासक वर्ग के लोग रहा करते थे, वहीं निचला नगर रिहायशी इलाका था। दुर्ग और रिहायशी इलाके के बीच एक प्रकार का विभाजन होता था तथा दुर्ग को सुरक्षा दीवारों से घेरा गया था। महत्त्वपूर्ण भवन दुर्ग क्षेत्र में मिलते हैं। रिहायशी इलाकों में मुख्य सड़कें एक-दूसरे को समकोण (90°) पर काटती थीं तथा इन सड़कों की चौड़ाई लगभग 10 मीटर (9.15 मीटर) एवं गलियाँ करीब 3 मीटर चौड़ी थीं। मकानों पर दृष्टिपात करने के पश्चात् ऐसा ज्ञात होता है कि ये एक मंजिल से लेकर बहुमंजिली तक बने थे। जल निकासी का उत्तम प्रबंध था। ऊपर से नीचे दूषित जल को लाने के लिये ड्रेन पाइप का उपयोग किया जाता था। फिर घर की नाली, गली की नाली से मिलती थी और गली वाली नाली आगे जाकर मुख्य सड़क की नाली से मिल जाती थी। मुख्य सड़क की सफाई के लिये नरमोखे (Manhole) का निर्माण किया गया था तथा इस नाली को पत्थर से ढकने का भी प्रयत्न किया गया था।
हड़प्पाई नगरीय संरचना का अवलोकन करने पर हम पाते हैं कि इसमें एक प्रकार की एकरूपता है, फिर भी एकरूपता की तुलना में विविधता भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। उदाहरण के लिये लोथल और सुरकोटदा में दुर्ग तथा निचले नगर के बीच विभाजन नहीं दिखता। उसी प्रकार अन्य नगरीय स्थलों पर पकाई गई ईंटों का प्रयोग हुआ है तो कालीबंगा में कच्ची ईंटों का । वस्तुतः विभिन्न स्थलों के बीच पर्यावरणीय तथा भौगोलिक भिन्नता को देखते हुए नगर निर्माण योजना में विविधता भी स्वाभाविक दिखती है।
मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार हड़प्पा सभ्यता का अद्भुत निर्माण है। ईंटों से निर्मित इस विशाल इमारत की लंबाई-चौड़ाई लगभग 12 मी. x 7 मी. और गहराई 3 मी. है। नीचे जाने के लिये सीढ़ियों का निर्माण स्नानागार के चारों ओर मण्डप और कक्ष बने हुए थे जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसका प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों में स्नान के लिये किया जाता था। हड़प्पा से अन्नागार के साक्ष्य मिले हैं।
हड़प्पा सभ्यता में बड़े-बड़े नगर तो कम मिले हैं, किंतु नगरों की उत्तम योजना एवं गुणवत्ता के कारण ही इसे नगरीय सभ्यता कहा गया है।
महत्त्वपूर्ण नगर एवं संबंधित तथ्य (Important towns and related facts) || Indus Valley Civilization Notes
हड़प्पा
- यह पहला स्थान है जहाँ से इस सभ्यता के संबंध में प्रथम जानकारी मिली।
- यह पाकिस्तान में पश्चिमी पंजाब प्रांत के माण्टेगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है।
- पिग्गट महोदय ने इसे ‘अर्द्ध-औद्योगिक नगर’ कहा है।
मोहनजोदड़ो
- मोहनजोदड़ो का अर्थ है “मृतकों का टीला” ।
- यह सिंध प्रांत के लरकाना जिले में स्थित है।
- यहाँ से वृहत स्नानागार, अन्नागार के अवशेष एवं पुरोहित की मूर्ति इत्यादि प्राप्त हुए हैं।
- बड़े-बड़े भवन, जल निकास प्रणाली मोहनजोदड़ो की विशेषताएँ हैं।
- हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों को हड़प्पा सभ्यता की जुड़वा राजधानी माना जाता है।
चन्हूदड़ो
- यह मोहनजोदड़ो से 130 कि.मी. दक्षिण में सिंध प्रांत में स्थित है।
- यह एकमात्र हड़प्पा स्थल है जो दुर्गीकृत नहीं
- यहाँ से मनके बनाने का कारखाना, उच्च कोटि की मुहरें आदि मिली हैं।
लोथल
- यह गुजरात में खंभात की खाड़ी में भोगवा नदी के किनारे स्थित है।
- यह बंदरगाह नगर भी था।
- यहाँ से गोदीवाड़ा (Dock-Yard) के साक्ष्य मिले हैं।
- लोथल में नगर को दो भागों में न बाँटकर एक ही प्राचीर से पूरे नगर को दुर्गीकृत किया गया था।
कालीबंगा
- कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ है “काले रंग की चूड़ियाँ ।”
- यह राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में है।
- यहाँ से जुते हुए खेत, अग्निवेदिका आदि के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- यहाँ के भवनों का निर्माण कच्ची ईंटों द्वारा हुआ है।
बनावली
- यह हरियाणा के हिसार जिले में स्थित है।
- यहाँ से हल की आकृति, अग्निवेदियाँ आदि के साक्ष्य मिले हैं।
सुत्कागेंडोर
- यह आधुनिक पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है।
- यहाँ से एक किले का साक्ष्य मिला है, जिसके चारों ओर रक्षा प्राचीर निर्मित है।
राखीगढ़ी
- यह हरियाणा के हिसार जिले में स्थित है।
- यहाँ से दुर्ग प्राचीर, ऊँचे चबूतरे पर बनी अग्नि वेदिकाएँ आदि के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
धौलावीरा
- यह गुजरात के कच्छ में स्थित था।
- यहाँ जल की अद्भुत व्यवस्था थी।
- इस नगर में अंतिम संस्कार की अलग-अलग व्यवस्थाएँ थीं।
सैन्धव सभ्यता के प्रमुख स्थल (Major sites of Indus civilization) || Indus Valley Civilization Notes
स्थल | नदियों के नाम
| उत्खनन का वर्ष
| उत्खननकर्त्ता
| वर्तमान स्थिति
|
हड़प्पा | रावी | 1921 | दयाराम साहनी और माधवस्वरूप वत्स | पश्चिमी पंजाब का मान्टगोमरी जिला (पाकिस्तान) |
मोहनजोदड़ो | सिन्धु | 1922 | राखलदास बनर्जी | सिंध प्रान्त का लरकाना ज़िला (पाकिस्तान) |
चन्हूदड़ो | सिन्धु | 1931 | गोपाल मजूमदार | सिंध प्रान्त (पाकिस्तान) |
कालीबंगा | घग्घर | 1953 | बी. बी. लाल और बी. के. थापर | राजस्थान का हनुमानगढ़ जिला (भारत) |
कोटदीजी | सिन्धु | 1953 | फजल अहमद | सिंध प्रान्त का खैरपुर (पाकिस्तान) |
रंगपुर | मादर | 1953-1954 | रंगनाथ राव | गुजरात का काठियावाड़ क्षेत्र ( भारत ) |
रोपड़ | सतलज | 1953-1956 | यज्ञदत्त शर्मा | पंजाब का रोपड़ ज़िला (भारत) |
लोथल | भोगवा | 1955 और 1962 | रंगनाथ राव | गुजरात का अहमदाबाद जिला (भारत) |
आलमगीरपुर | हिन्डन | 1958 | यज्ञदत्त शर्मा | उत्तर प्रदेश का मेरठ जिला (भारत) |
बनावली | रंगोई | 1973-74 | रविन्द्रनाथ बिष्ट | हरियाणा का हिसार जिला (भारत) |
धौलावीरा | 1990-91 | रविन्द्रनाथ बिष्ट | गुजरात का कच्छ ज़िला (भारत) |
हड़प्पाकालीन आर्थिक व्यवस्था (Economic system in Harappan civilization)
वस्तुत: जैसा कि हम जानते हैं कि नगरीकरण में कृषि अधिशेष तथा वाणिज्य-व्यापार दोनों की भूमिका होती है और यहाँ भी हड़प्पाई नगरों के उत्कर्ष का प्रमुख कारण उन्नत कृषि तथा वाणिज्य व्यापार ही था। हड़प्पाई लोगों का मुख्य कार्य कृषि और विदेशी व्यापार था, जिसके कारण हड़प्पाई अर्थव्यवस्था उन्नत अवस्था में थी ।
मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि में धान्य-कुठार ये प्रमाणित करते हैं कि ग्रामीण केंद्रों से अन्न किसी न किसी रूप में यहाँ लाया जाता था। हड़प्पाई नगरों में कृषि उत्पादों की आपूर्ति ग्रामीण क्षेत्रों से होती थी। इसीलिये अन्नागार आदि नदियों के किनारे बनाए गए थे। बनावली से मिट्टी के हल के प्रारूप, कालीबंगा से प्राप्त जुते खेत के साक्ष्य, धौलावीरा के जलाशय, रेशेदार जौ, लोथल मे चावल के अवशेष एवं रंगपुर से धान की भूसी के साक्ष्य आदि के आधार पर यह कहा जा सकता है कि हड़प्पाकालीन कृषि अपने समकालीन परिप्रेक्ष्य में उन्नत अवस्था में थी और इसने तत्कालीन अर्थव्यवस्था को एक ठोस आधार प्रदान किया।
पुरातात्त्विक साक्ष्यों, जैसे- मुहरों मृद्भांडों पर अंकित पशु आकृतियों एवं प्राप्त जीवाश्मों के आधार पर कहा जा सकता है कि कृषि के साथ पशुपालन भी पर्याप्त अवस्था में विकसित था। कृषि उत्पादन, व्यापार तथा परिवहन में पशुओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। कूबड़ वाले बैल की हड्डियाँ शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों से प्राप्त हुई हैं। इसकी व्यावसायिक महत्ता ने ही इसे उस काल में पूज्य बना दिया। भैंस आदि पशुओं के होने का अनुमान है जिससे संभवत: दूध, मांस आदि प्राप्त करने में सहायता मिलती थी।
इस काल में वाणिज्य-व्यापार को प्रेरित करने वाले दो कारक महत्त्वपूर्ण हैं। प्रथम, हड़प्पाई शिल्पियों को कुछ ऐसे कच्चे मालों की ज़रूरत थी जो क्षेत्रीय स्तर पर उपलब्ध नहीं थे और उन्हें व्यापार के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता था। दूसरा, हड़प्पाई क्षेत्रों में कुलीन वर्ग के लोगों को कुछ ऐसी विलासितापूर्ण सामग्रियों की ज़रूरत थी जिसे व्यापार के माध्यम से ही पूरा किया जा सकता था। व्यापार और परिवहन के उद्देश्य से ही नगरों की स्थापना नदियों के किनारे की गई थी जिससे व्यापारिक उत्पाद सुगमता से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँच जाएँ। हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत आंतरिक एवं बाह्य व्यापार दोनों ही विकसित अवस्था में थे। आंतरिक व्यापार में हड़प्पाई क्षेत्र के सहयोगी थे- राजस्थान, कर्नाटक, बलूचिस्तान आदि, वहीं मेसोपोटामिया, फारस की खाड़ी, अफगानिस्तान एवं मध्य एशिया आदि क्षेत्रों से बाह्य व्यापार द्वारा संपर्क स्थापित किये गए थे।
सोना कर्नाटक के कोलार क्षेत्र और अफगानिस्तान से, चांदी मेसोपोटामिया से, तांबा राजस्थान से तथा टिन का आयात ईरान व अफगानिस्तान से होता था । निर्यात वाली वस्तुओं में लोथल से सीप की बनी वस्तुएँ एवं हाथीदाँत की वस्तुएँ आदि होती थीं। इमारती लकड़ी, कपास और संभवतः अनाजों का भी निर्यात किया जाता था ।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त मेसोपोटामिया की मुहरें एवं हड़प्पाई मुहरों के साक्ष्य मेसोपोटामिया के नगरों से मिलना तात्कालिक द्विपक्षीय व्यापार की पुष्टि करते हैं।
व्यापार के लिये मुद्रा के स्थान पर वस्तु विनिमय के प्रचलन का अनुमान है, क्योंकि किसी भी हड़प्पाई स्थल से सिक्कों के साक्ष्य नहीं मिले है
हड़प्पाई निवासियों द्वारा आयातित वस्तुएँ (Goods imported by Harappan people)
वस्तु |
स्थान |
सोना |
दक्षिण भारत, अफगानिस्तान, ईरान |
चांदी |
मेसोपोटामिया, ईरान |
तांबा |
खेतड़ी (राजस्थान), बलूचिस्तान |
टिन |
ईरान, अफगानिस्तान |
लाजवर्द मणि |
बदख्शां |
कीमती पत्थर |
बलूचिस्तान, राजस्थान |
सेलखड़ी |
ईरान |
हड़प्पाई समाज पर दृष्टिपात करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि हड़प्पाई समाज एक जटिल संरचना पर आधारित समाज था। इसमें विभिन्न सामाजिक समूह के लोग उपस्थित थे जो स्वाभाविक रूप से नगरीय जीवन के चरित्र के अनुकूल थे। बड़ी संख्या में नारी मृण्मूर्तियों के मिलने से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हड़प्पाई समाज मातृसत्तात्मक था।
पुरातात्त्विक साक्ष्य संकेत करते हैं कि हड़प्पाई समाज संभवतः चार वर्गों में विभक्त रहा होगा शासक वर्ग, कुलीन वर्ग या धनी वर्ग, मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग हडप्पाई नगरों में विविध प्रकार के आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि इनसे जुड़े समूह भी अलग-अलग वर्गों में विभाजित रहे होंगे। उदाहरण के लिये राजनीतिक-प्रशासनिक गतिविधियाँ एक शासक वर्ग की उपस्थिति को दर्शाती हैं। हड़प्पाई नगरों में कुलीन वर्ग के लोग भी उपस्थित थे जो अधिशेष का उपयोग करते थे। उसी प्रकार शिल्पियों एवं कारीगरों का एक समूह था । उन्नत व्यापार की अवस्था व्यापारी वर्ग की ओर इंगित करती है, साथ ही व्यापक आर्थिक गतिविधियाँ एवं निर्माण कार्य एक बड़े श्रमिक समूह की उपस्थिति की ओर संकेत करते हैं।
हड़प्पाई लोग शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों थे। वे वस्त्राभूषण के शौकीन थे तथा सूती एवं ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्रों का उपयोग करते थे। स्त्रियाँ साज-सज्जा पर विशेष ध्यान देती थीं। मनोरंजन के साधनों में शिकार करना, मछली पकड़ना, पशु-पक्षियों को आपस में लड़वाना आदि प्रमुख थे। नर्तकी की मूर्ति को देखने से नृत्य के प्रति लोगों की आसक्ति परिलक्षित होती है। मिट्टी की खिलौनेगाड़ियाँ संभवतः बच्चों के खिलौने के रूप में प्रयोग होते रहे होंगे ।
खुदाई से प्राप्त अनेक हथियार, औजार आदि के मिलने से यह कहा जा सकता है कि हड़प्पावासी युद्ध ज्ञान से भी परिचित थे।
हड़प्पा स्थलों से प्राप्त वस्तुएँ एवं अवशेष (Items and residues found at Harappan sites) || Indus Valley Civilization Notes
वृहत स्नानागार, अन्नागार, मातृदेवी की मूर्ति, काँसे की नर्तकी की मूर्ति, तीनमुख वाले पुरुष की ध्यान मुद्रा वाली मुहर आदि | मोहनजोदड़ो |
ताबूतों में शवाधान के साक्ष्य, शंख का बना बैल, पीतल की इक्का गाड़ी, मज़दूरों के आवास आदि | हड़प्पा |
आयताकार 7 अग्नि वेदिकाएँ, जुते खेत के साक्ष्य, चूड़ियाँ, सिलबट्टा, मनके आदि | कालीबंगा |
गोदीवाड़ा, खिलौना नाव, धान की भूसी, मनका उद्योग के साक्ष्य आदि | लोथल |
वक्राकार ईंटें, कंघा, चार पहियों वाली गाड़ी, अलंकृत हाथी इत्यादि | चन्हूदड़ो |
खिलौने वाला हल, जौ, तांबे के वाणाग्र आदि | बनावली |
हड़प्पाकालीन धार्मिक जीवन (Religious life in Harappan civilization)
जब तक हड़प्पाई लिपि को पढ़ा नहीं जाता है तब तक उनके धर्म के आध्यात्मिक (दार्शनिक) पक्ष के बारे में कुछ भी बताना कठिन है लेकिन उत्खनन में प्राप्त भौतिक अवशेषों, जैसे- मुहर, मृण्मूर्तियाँ तथा प्राकृतिक तत्त्वों के आधार पर हम उनके व्यावहारिक पक्ष का अनुमान लगा सकते हैं। हड़प्पा स्थलों से बड़ी संख्या में प्राप्त नारी मृण्मूर्तियों तथा मुहरों के ऊपर नारी आकृतियों के अंकन के कारण हड़प्पा समाज को मातृदेवी का उपासक कहा जा सकता है। हड़प्पा से प्राप्त एक मूर्ति जिसके गर्भ से पौधा निकलता हुआ दर्शाया गया है, उसे मातृदेवी या उर्वरता की देवी कहा गया है। संभवतः हड़प्पावासी प्रकृति पूजक थे। मुहरों पर अंकित कूबडवाले बैल तथा पीपल की पत्तियों पर अंकन के आधार पर पशुपूजा और वृक्षपूजा होने के अनुमान भी लगाए जा सकते हैं।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर एक योगी योगमुद्रा में बैठा हुआ है। उसके सिर पर तीन सींग हैं और वह ध्यान मुद्रा में एक टांग पर दूसरी टांग डाले बैठा (पद्मासन लगाए) दिखाया गया है। उसके चारों ओर एक हाथी, एक बाघ और एक गैंडा है, आसन के नीचे एक भैंसा है और पाँवों पर दो हिरण हैं। मुहर पर चित्रित देवता को पशुपति महादेव बताया गया है।
मातृदेवी और रुद्र देवता (पशुपति महादेव) के अलावा हड़प्पावासी वृक्ष, पशु-पक्षी एवं सर्प इत्यादि को भी पूज्य मानते थे। विशाल स्नानागार का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठान तथा सूर्यपूजा में होता रहा होगा। कालीबंगा से प्राप्त अग्निकुंड के साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है कि अग्नि की पूजा की जाती थी।
पुरोहित की मूर्ति से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पूजा के लिये पुरोहित माध्यम होता था। ताबीज़ों की प्राप्ति के आधार पर जादू-टोने में विश्वास, रोगों तथा भूत-प्रेतों आदि में विश्वास का अनुमान लगाया जा सकता है।
मृत्यु के बाद दाह संस्कार के तरीकों के आधार पर उनके पुनर्जन्म में विश्वास के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। सामान्यतः दाह-संस्कार के तीन तरीके प्रचलित थे
- पूर्ण शवाधान : पूरे शरीर को ज़मीन के अंदर दफना दिया जाता था। यही सर्वाधिक प्रचलित तरीका था ।
- आंशिक शवाधान : शरीर के कुछ भाग नष्ट होने के बाद दफनाना ।
- कलश शवाधान: शव को जलाने के पश्चात् बची राख को कलश में रखकर दफनाना ।
सामान्यतः एकल शवाधान की पद्धति थी परंतु लोथल से युगल शवाधान के साक्ष्य भी मिले हैं। हड़प्पावासी मृतकों के साथ सामान भी दफनाते थे जो उनके पारलौकिक जीवन में आस्था को व्यक्त करता है।
स्थापत्य एवं कला (Architecture and art)
हड़प्पा सभ्यता कई दृष्टियों से विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण रही है। स्थापत्य कला भी उसका अपवाद नहीं है। इस सभ्यता के अंतर्गत हमें दो प्रकार के स्थापत्य मिलते हैं। पहले प्रकार में राजनीतिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व के भवन तथा दूसरे में सामान्य रिहायशी मकान।
हड़प्पाई लोग भवन निर्माण में सामान्यतः पकाई गई ईंटों, कच्ची ईंटों तथा पत्थर का प्रयोग करते थे। धौलावीरा तथा सुरकोटदा में होने वाले अधिकांश निर्माण में पत्थरों का प्रयोग देखा जा सकता है। फिर, अगर हम विशेषता की दृष्टि से हड़प्पाई स्थापत्य पर दृष्टि डालें तो हमें हड़प्पाई निर्माण योजना में सौन्दर्य की जगह उपयोगिता पर विशेष बल देखने को मिलता है। भवन निर्माण में गीली मिट्टी तथा जिप्सम का प्रयोग जोड़ने वाली सामग्री के रूप में हुआ है।
मोहनजोदड़ो नगर दो भागों में विभाजित था, दुर्ग तथा निचला शहर। दुर्ग ऊँचे चबूतरे पर निर्मित था। इस चबूतरे का निर्माण कच्ची ईंटों के प्रयोग से हुआ है। दुर्ग के अंदर कई भवन थे जो प्रशासनिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व के थे। इन भवनों के निर्माण में पक्की ईंटों का प्रयोग हुआ है।
मोहनजोदड़ों का स्नानागार एक महत्त्वपूर्ण स्थापत्य है। इस महास्नानागार तक पहुंचने के लिये दोनों तरफ सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। पानी निकालने के लिये नाली की उत्तम व्यवस्था थी। सामान्य निवास एकमजिली से लेकर बहुमंजिली तक होता था। बड़े मकानों में चौरस प्रांगण होते थे। इसके अतिरिक्त कुआँ, शौचालय स्नानागार आदि के लिये जगह बनाई गई थी।
हड़प्पा निवासी प्रौद्योगिकी एवं कला में भी उन्नत थे। वे लोहे से भले ही परिचित नहीं थे, लेकिन तांबा तथा टिन मिलाकर काँसा बनाना जानते थे, जिसका प्रमाण है द्रवीमोम विधि से निर्मित काँसे की मूर्ति जो उनके धातु एवं रसायन के ज्ञान को स्पष्ट करती है।
सोना, चांदी, काँसा आदि का प्रयोग वे आभूषण बनाने में करते थे। धातु गलाने, पीटने तथा उन धातुओं पर पानी चढ़ाने की तकनीक से भी वे परिचित थे।
कला एक दृष्टि में मानव व जगत के बीच कैसा संबंध है इसको प्रतिबिंबित करती है। प्राचीन संस्कृतियों में कला एवं शिल्प दोनों एक-दूसरे से संबद्ध थे। हड़प्पाई कला भी इसका अपवाद नहीं है। हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत हमें विभिन्न प्रकार के कलारूप देखने को मिलते हैं, उदाहरण के लिये काँस्य कला, मृण्मूर्तियाँ, मनका निर्माण तथा मुहर निर्माण आदि । काँस्य कला में मोहनजोदड़ो से प्राप्त नर्तकी की मूर्ति महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त काँसे की कुछ पशु मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं। हड़प्पाई कला का एक रूप मृण्मूर्तियों के निर्माण में देखा जा सकता है। इन मृण्मूर्तियों में पशु-पक्षी तथा मानव का प्रतिनिधित्व हुआ है।
इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत हमें कला के विविध रूप प्राप्त होते हैं। भले ही वे मेसोपोटामिया और मिस्र की तुलना में पीछे हों, परंतु हड़प्पाई कला का अपना विशिष्ट महत्त्व है तथा इसने भारतीय कला को आधारभूत संरचना प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
हड़प्पा सभ्यता का पतन (Decline of Harappan civilization)
18वीं शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य से हड़प्पा सभ्यता की विशिष्टताओं का ह्रास होने लगा। इसके महत्त्वपूर्ण नगर वीरान हो गए। वस्तुतः कोई भी सभ्यता जब विकास का चरमोत्कर्ष प्राप्त कर लेती है तब उसमें क्रमिक ह्रास के लक्षण भी प्रकट होने लगते हैं और धीरे-धीरे उसका अवसान सुनिश्चित हो जाता है।
पतन के कारणों का परीक्षण करने से पूर्व हमें कुछ तथ्यों पर ध्यान देना आवश्यक होगा। हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न स्थलों के पतन कालक्रम में स्पष्ट अंतर है, जैसे- मोहनजोदड़ो जैसे स्थल का पतन 2200 ईसा पूर्व से प्रारंभ हुआ जो अंतत: 2000 ईसा पूर्व तक सम्पन्न हो गया जबकि दूसरे कई स्थल 1800 ईसा पूर्व तक चलते रहे। इसी प्रकार विभिन्न स्थलों के पतन के कारणों में भी अंतर है जैसे मोहनजोदड़ो में मृत्यु से पूर्व ही बुढ़ापे के लक्षण दिखने लग गए थे यथा पुरानी ईंटों का दुबारा प्रयोग, नगर निर्माण के अनेक स्तर मिलना आदि, वहीं कालीबंगा, बनावली जैसे स्थलों का अवसान पूर्ण यौवनावस्था में ही हो गया प्रतीत होता है।
हड़प्पा सभ्यता के पतन के बारे में विद्वानों में अलग-अलग राय है। इन्हें दो श्रेणियों में बाँटकर देखा जा सकता है आकस्मिक पतन का सिद्धांत तथा सातत्य के साथ परिवर्तन।
आकस्मिक पतन का सिद्धांत (Theory of accidental collapse)
विदेशी आक्रमण
हड़प्पा सभ्यता के पतन की व्याख्या करते हुए मार्टिमर ह्वीलर जैसे विद्वानों ने आर्य आक्रमण (विदेशी आक्रमण) की अवधारणा पर बल दिया है। इस संदर्भ में ह्वीलर महोदय का विचार है कि “परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर इन्द्र दोषी ठहरता है” यह आर्य आक्रमण के सिद्धांत को प्रतिपादित करता है। उनका कहना है कि भले ही हड़प्पा सभ्यता का पतन क्रमिक एवं दीर्घकृत रहा होगा परन्तु उसका अंत विध्वंसात्मक हुआ। पुरातात्त्विक साक्ष्य के रूप में उन्होंने मोहनजोदड़ो से प्राप्त 26 नरकंकाल, जिन पर तेज़ पैने अस्त्रों के घाव हैं, प्रस्तुत किये। उसी प्रकार वे हड़प्पा से ‘कब्रगाह H’ का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं और सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि ‘कब्रगाह H’ में आक्रमणकारी की ही लाश थी। इसमें वे साहित्यिक साक्ष्य भी प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने ऋग्वेद में वर्णित ‘हरियूपिया’ की पहचान हड़प्पा से की है। ऐसे ही इन्द्र के लिये पुरन्दर शब्द को उन्होंने आर्य आक्रमण से जोड़ा है।
परन्तु सूक्ष्म विश्लेषण से ऐसा प्रतीत होता है कि महज़ 26 नरकंकालों के आधार पर आर्य आक्रमण को हड़प्पा सभ्यता के पतन का दोषी ठहराने का ह्वीलर महोदय का साक्ष्य संदिग्ध है। परवर्ती काल के अन्वेषण से यह सिद्ध हो गया है कि ‘कब्रगाह H’ में प्राप्त नरकंकाल आक्रमणकारी की लाश नहीं थी क्योंकि वह हड़प्पा सभ्यता के पतन के पश्चात् वहाँ पाया गया। साहित्यिक साक्ष्य की विश्वसनीयता भी पूर्ण नहीं है क्योंकि ऋग्वेद किसी एक काल का संकलन नहीं है।
प्राकृतिक कारण
- बाढ़ से पतनः कुछ विद्वानों का मानना है कि वे नदियाँ, जिनकी गोद में यह सभ्यता पनपी, उन्हीं नदियों में बार-बार आने वाली बाढ़ ने इस सभ्यता का अन्त कर दिया। इस मत के प्रतिपादकों में मार्शल, एस. आर. राव जैसे विद्वान हैं।
- जलप्लावन एवं विवर्तनिक विक्षोभः एम.आर. साहनी जैसे विद्वानों ने हड़प्पा सभ्यता के पतन में जलप्लावन को एक महत्त्वपूर्ण कारण माना है। रेइक्स के अनुसार, विवर्तनिक हलचल के कारण भूमि का स्तर ऊँचा उठ गया जिसके परिणामस्वरूप मोहनजोदड़ो में सिंधु नदी का जल अवरुद्ध हो गया। मोहनजोदड़ो में रुके हुए जल के साक्ष्य मिले हैं।
- जल की कमीः विद्वानों का एक समूह जल की कमी की ओर इंगित करता है। लैम्ब्रिक महोदय का मत है कि सिंधु नदी का मार्ग परिवर्तन मोहनजोदड़ो के पतन का कारण बना। उसी प्रकार घग्घर नदी के सूख जाने से कालीबंगा का पतन हो गया।
सातत्य के साथ परिवर्तन (Change with continuity)
- पारिस्थितिकी असंतुलन : फेयर सर्विस महोदय ने पारिस्थितिकीय असंतुलन को हड़प्पा सभ्यता के पतन का एक प्रमुख कारण माना है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ गया जिसके परिणामस्वरूप शहर की जनसंख्या का संसाधन की खोज के लिये दूसरे क्षेत्र में पलायन हुआ। अतः बस्तियों की संख्या दूसरे क्षेत्रों में बढ़ने लगी। उदाहरण के लिये गुजरात क्षेत्र में अचानक से जनसंख्या में वृद्धि हुई है जो यह साबित करती है कि हड़प्पा सभ्यता के कोर क्षेत्र से जनसंख्या का प्रवसन हुआ और इस प्रकार कोर क्षेत्र अर्थात् शहरी क्षेत्रों का पतन हुआ।
- हड़प्पावासियों के दृष्टिकोण में परिवर्तन : प्रगतिशीलता मानव सभ्यता के विकास का एक आवश्यक अंग है जो इसे मूर्त स्वरूप प्रदान करती है। समाज में जैसे-जैसे लोग बढ़ते हैं, उसी अनुपात में ज़रूरतें भी बढ़ती जाती हैं। पुरातात्त्विक साक्ष्य संकेत करते हैं कि इस सभ्यता के एक लम्बे कालक्रम में प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी में कोई विशेष विकास नहीं हुआ। एक प्रकार से जीवन में ठहराव की स्थिति बनी रही।
वास्तव में एक विस्तृत क्षेत्रफल में फैले इस सभ्यता के ह्रास को एक घटना की बजाय प्रक्रिया के रूप में देखना ज़्यादा तर्कसंगत प्रतीत होता है। इन अर्थों में यहाँ पतन की प्रक्रिया सभ्यता के विनाश की ओर नहीं बल्कि शहरीकरण के ह्रास की ओर संकेत करती है। अतः जैसे हड़प्पा सभ्यता का उद्भव एक दीर्घकालिक सांस्कृतिक-आर्थिक प्रक्रिया का परिणाम था. उसी प्रकार पतन की प्रक्रिया को भी स्वाभाविक, निरंतर तथा दीर्घकालीन समझा जाना चाहिये।
सिंधु घाटी सभ्यता से संबन्धित महत्वपूर्ण परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण तथ्य (Important facts related to Indus Valley Civilization)
- कालानुक्रम की दृष्टि से हड़प्पा सभ्यता मेसोपोटामिया और मिस्र की प्राचीन सभ्यता के समकालीन थी। यह काँस्ययुगीन सभ्यता थी।
- हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।
- हड़प्पा सभ्यता आद्य ऐतिहासिक काल की सभ्यता है।
- हड़प्पा सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी और यह भारतीय उपमहाद्वीप में पहली नगरीय क्रांति थी।
- हड़प्पा सभ्यता की जानकारी का प्रमुख स्रोत है पुरातात्त्विक खुदाई ।
- हड़प्पा निवासी मिट्टी के बर्तनों पर सामान्यतः लाल रंग का प्रयोग करते थे।
- कालीबंगा से ‘जुते हुए खेत’ के साक्ष्य एवं बनावली से ‘मिट्टी के हल की प्रतिकृति’ प्राप्त हुई है।
- मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ है ‘मृतकों का टीला’। यहाँ से महास्नानागार प्राप्त हुआ है।
- हड़प्पाई लोग लोहे से परिचित नहीं थे।
- लोथल से गोदीवाड़ा (Dock-Yard) के साक्ष्य मिले हैं।
- राखीगढ़ी हड़प्पा सभ्यता का दूसरा सबसे बड़ा (मोहनजोदड़ो के बाद) स्थल है।
- हड़प्पा के टीले की खुदाई सर जॉन मार्शल के निर्देश पर 1921 में दयाराम साहनी ने की।
- मोहनजोदड़ो का पता आर.डी. बनर्जी ने 1922 ई. में लगाया।
- हड़प्पा सभ्यता के पतन के लिये फेयर सर्विस महोदय ने पारिस्थितिकी असंतुलन को ज़िम्मेवार माना है। ह्वीलर महोदय ने इन्द्र को इसके लिये उत्तरदायी माना है और आर्य आक्रमण की अवधारणा पर बल दिया है।
- कपास का उत्पादन सबसे पहले सिंधु क्षेत्र में ही हुआ, इसलिये यूनान के लोग इसे सिन्डन कहते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता से संबन्धित महत्वपूर्ण प्रश्न – उत्तर (Important Questions – Answer related to Indus Valley Civilization)
- हड़प्पा सभ्यता का सर्वाधिक मान्यता प्राप्त काल है? – 2500 ई. पू. 1750 ई. पू.
- सिन्धु घाटी की सभ्यता में घोड़े के अवशेष कहाँ मिले हैं? – सुरकोटदा
- सिन्धु घाटी स्थल कालीबंगन किस प्रदेश में है? – राजस्थान में
- किस पदार्थ का उपयोग हड़प्पा काल की मुद्राओं के निर्माण में मुख्य रूप से किया गया था ? – सेलखड़ी (steatite)
- हड़प्पा सभ्यता किस युग की थी? – कांस्य युग
- सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था ? – व्यापार
- हड़प्पा सभ्यता के निवासी थे – शहरी
- सिन्धु सभ्यता के घर किससे बनाए जाते थे ? – ईंट से
- हड़प्पावासी किस वस्तु के उत्पादन में सर्वप्रथम थे ? – कपास
- हड़प्पा सभ्यता का सर्वप्रथम खोजकर्ता कौन था? – दयाराम साहनी
- सिन्धु सभ्यता का पतननगर ( बंदरगाह) कौन सा था ? – लोथल
- पैमानों की खोज ने यह सिद्ध कर दिया है कि सिन्धु घाटी के लोग माप और तौल से परिचित थे। यह खोज कहाँ पर हुई ? -लोथल में
- मोहनजोदड़ो को किस एक अन्य नाम से भी जाना जाता है ? -मृतकों का टीला
- हड़प्पा सभ्यता का प्रचलित नाम है –सिन्धु घाटी की सभ्यता
- कपास का उत्पादन सर्वप्रथम सिन्धु क्षेत्र में हुआ, जिसे ग्रीक या यूनान के लोगों ने किस नाम से पुकारा ? – सिन्दन
- सिंधु घाटी सभ्यता जानी जाती है? – अपने नगर नियोजन के लिए
- भारत में खोजा गया सबसे पहला पुराना शहर था? – हड़प्पा
- भारत में चाँदी की उपलब्धता के प्राचीनतम साक्ष्य मिलते हैं – हड़प्पा संस्कृति में
- हड़प्पा में एक उन्नत जल प्रबंधन प्रणाली का पता चलता है – धौलावीरा में
- हड़प्पा सभ्यता की खोज किस वर्ष हुई थी? – 1921 ई.
- हड़प्पा के मिट्टी के बर्तनों पर सामान्यतः किस रंग का उपयोग हुआ था ? – लाल
- सिन्धु घाटी सभ्यता को विकसित अवस्था में किस स्थल से घरों में कुओं के अवशेष मिले हैं? –मोहनजोदड़ो
- सिन्धु घाटी सभ्यता को खोज निकालने में जिन दो भारतीयों का नाम जुड़ा है, वे हैं? – दयाराम साहनी एवं राखालदास बनर्जी
- रंगपुर जहाँ हड़प्पा की समकालीन सभ्यता थी, हैं ? – सौराष्ट्र में
- हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की पुरातात्विक खुदाई के प्रभारी थे – सर जान मार्शल
- किस पशु की आकृति जो मुहर पर मिली है, जिससे ज्ञात होता है कि सिन्ध घाटी एवं मेसोपोटामिया की सभ्यताओं के मध्य व्यापारिक सम्बन्ध थे –बैल
- हड़प्पा के लोगों की सामाजिक पद्धति कैसी थी ? – उचित समतावादी
- हड़प्पा सभ्यता के अन्तर्गत हल से जोते गये खेत का साक्ष्य कहाँ से मिला है ? – कालीबंगा से
- सैंधव सभ्यता की ईंटों का अलंकरण किस स्थान से मिला है ? – कालीबंगा से
- सिन्धु सभ्यता में वृहत् स्नानागार पाया जाता है – मोहनजोदड़ो में
- हड़प्पाकालीन स्थलों में अभी तक किस धातु की प्राप्ति नहीं हुई हैं? – लोहा
- किस पशु के अवशेष सिन्धु घाटी सभ्यता में प्राप्त नहीं हुए हैं? – गाय
- स्वातंत्र्योत्तर भारत में सबसे अधिक संख्या में हड़प्पायुगीन स्थलों की खोज किस प्रान्त में है ? – गुजरात
- किस हड़प्पाकालीन स्थल से ‘नृत्य मुद्रा वाली स्त्री की कांस्य मूर्ति प्राप्त हुई है ? -मोहनजोदड़ो से
- हड़प्पावासी किस धातु से परिचित नहीं थे ? – लोहा
- किस हड़प्पाकालीन स्थल से युगल शवाधान का साक्ष्य मिला है ? – लोथल
- सिन्धु सभ्यता सम्बन्धित है – आद्य ऐतिहासिक युग से
- सिन्धु घाटी की सभ्यता गैर आर्य थी, क्योंकि वह थी – नगरीय सभ्यता
- सिन्धु घाटी सभ्यता को आर्यों से पूर्व की रखे जाने का महत्वपूर्ण कारक है। – मृदभांड
- सिन्धु घाटी संस्कृति वैदिक सभ्यता से भिन्न थी क्योंकि – इसके पास विकसित शहरी जीवन की सुविधाएँ थीं
- हड़प्पा संस्कृति की जानकारी का मुख्य स्रोत है – पुरातात्विक खुदाई
- भारत में चाँदी की उपलब्धता के प्राचीनतम साक्ष्य मिलते हैं – हड़प्पा संस्कृति में
- हड़प्पा में मिट्टी के बर्तनों पर सामान्यतः किस रंग का उपयोग हुआ था ? – लाल
- मूर्ति पूजा का आरम्भ कब से माना जाता है ? – पूर्व आर्य
- ‘विशाल स्नानागार’ किस पुरातत्व स्थल से पाया गया था ? – मोहनजोदड़ो से
- हड़प्पा सभ्यता स्थल-लोथल स्थित है – गुजरात में
- धौलावीरा किस राज्य में स्थित है ? – गुजरात में
- कौन-सा हड़प्पीय नगर तीन भागों में विभक्त था ? – धौलावीरा
सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित प्रश्न उत्तर
- सर्वप्रथम ( 1826 में ) किसने हड़प्पा के टीलों का उल्लेख किया – चार्ल्स मैसन
- वह कौन था जो हड़प्पा के टीलों का महत्त्व नहीं समझ पाया – कनिंघम
- किसने इस सभ्यता पर रॉयल एशियाटिक सोसाइटी में अपना लेख प्रतिवेदित किया – जे. एफ. फ्लीट
- मोहनजोदड़ो जाने वाले पहले व्यक्ति कौन थे – राखालदास बनर्जी
- हड़प्पा सभ्यता किस काल की थी – कांस्य युगीन / प्राक इतिहास
- मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी ईमारत कौनसी थी – अन्नागार
- मोहनजोदड़ो की सबसे महत्वपूर्ण ईमारत कौनसी थी – स्नानागार
- स्नानागार की परिमाप कितनी थी – लंबाई- 11.89 मीटर, चौङाई- 7 मीटर, गहराई- 2.44 मीटर
- इस सभ्यता के अब तक कितने स्थल प्रकाश में आ चुके हैं – लगभग 350
- सबसे पहले सिंधु सभ्यता के काल का निर्धारण किसने किया – जॉन मार्शल
- कार्बन डेटिंग को आधार को बनाकर सर्वप्रथम काल निर्धारण किसने किया – धर्मपाल अग्रवाल
- सैंधव सभ्यता का सबसे पूर्वी स्थल – आलमगीरपुर (मेरठ, उत्तर प्रदेश)
- सैंधव सभ्यता का सबसे पश्चिमी स्थल – सुतकांगेडोर (बलूचिस्तान)
- सैंधव सभ्यता का सबसे उत्तर में स्थित स्थल – माण्डा (अखनूर, जम्मू कश्मीर)
- सैंधव सभ्यता का दक्षिणतम स्थल – दैमाबाद (अहमदनगर, महाराष्ट्र)
- इस सभ्यता का पूर्व से पश्चिम विस्तार कितना है – 1400 किलो मीटर
- इस सभ्यता का उत्तर से दक्षिण विस्तार कितना है – 1600 किलो मीटर
- इस सभ्यता के कितने स्थल हैं जिन्हें नगर कहा जा सकता है – सात
- सिंधु सभ्यता के बंदरगाह – लोथल व सुतकोटदा
- सड़कें मुख्य रूप से किस प्रकार की होती थीं – कच्ची सड़कें
- अपवादस्वरूप किस एक स्थल की सड़कें पक्की पायी गयीं – कालीबंगा
- मुख्य सड़क को क्या कहा जाता था – राजपथ या प्रथम सड़क
- इन स्थलों में सर्वाधिक (लगभग 200) किस राज्य में हैं – गुजरात
- किस हड़प्पाई स्थल को तोरण द्वार का नगर भी कहा जाता है – हड़प्पा
- पक्षियों में सर्वाधिक किसकी मृणमूर्तियाँ प्राप्त हुयी हैं – गौरैया
- स्वतंत्रता के बाद सर्वाधिक स्थलों का उत्खनन किस राज्य में हुआ – गुजरात
- मुहरों पर बांध की आकृति मिलती है – कालीबंगा
- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई के प्रभारी कौन थे – सर जॉन मार्शल
- पशुओं में सर्वाधिक किसकी मृणमूर्तियाँ प्राप्त हुयी हैं – कूबड़ वाला बैल
- सभ्यता के लोग सिंचाई के लिए नहरों का प्रयोग किया करते थे – नहीं
- अपवादस्वरूप किस एक स्थल से नहरों के साक्ष्य मिले हैं – शोर्तघई से
- कौनसा हड़प्पाई स्थल स्तूपों के शहर के नाम से भी जाना जाता है – मोहनजोदड़ो
- अंडाकार कब्र और एक बालक की 6 छेड़ वाली खोपड़ी कहाँ से प्राप्त हुयी है – कालीबंगा
- किसे सैंधव सभ्यता का अर्द्ध औद्योगिक नगर कहा जाता है – हड़प्पा
- घोड़े की मृणमूर्ति किस स्थल से प्राप्त हुयी है – लोथल से
- हड़प्पा के किस स्थल से उन्नत जल प्रबंधन प्रणाली का पता चला है – धौलावीरा
- हड़प्पा के मिटटी के वर्तनो पर सामान्यतः किस रंग का प्रयोग हुआ है – लाल
- किन स्थलों से अग्निकुण्ड की प्राप्ति हुयी है – लोथल व कालीबंगा
- अफगानिस्तान में इस सभ्यता के प्राप्त स्थल हैं – सोर्तुघई व मुण्डीगाक
- हिंदुकुश पर्वत के उत्तर में स्थित दो हड़प्पाई स्थल – सोर्तुघई व मुण्डीगाक
- किस स्थल से लकड़ी के अन्नागार के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं – लोथल
- नर्तकी की एक कांस्य मूर्ति कहाँ से प्राप्त हुयी – मोहनजोदड़ो
- मोहनजोदड़ो से प्रपात पुजारी की मूर्ति किस प्रजाति की है – मंगोलायड
- चन्हूदड़ो का उत्खनन किसके नेतृत्व में हुआ – मैके
- सभ्यता के किस स्थल को तोरण द्वार का नगर कहा जाता है – हड़प्पा
- केवल एक स्थल के घरों के खिड़की व दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते थे – लोथल
- युग्म शवाधान के साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुए हैं – लोथल व कालीबंगा
- किन जानवरों का अंकन मोहरों पर नहीं मिलता है – गाय, ऊँट, घोड़े
- कहाँ से सर रहित स्त्री की आकृति वाला ताम्रदर्पण प्राप्त हुआ है – मेही की कब्र से
- लकड़ी की नालियों का साक्ष्य कहाँ से मिला है – कालीबंगा से
- सिंधु सभ्यता को ‘प्रथम नगरीय क्रांति किसने कहा’ – गार्डेन चाइल्ड
- इस सभ्यता के लोग मिठास के लिए किसका प्रयोग करते थे – शहद
- नगरों का निर्माण किस पद्यति पर किया गया था – चेसबोर्ड/शतरंज या ग्रिड पद्यति पर
- किस स्थल से एक तालाब के साक्ष्य मिले हैं – धौलावीरा
- धान की खेती होने के प्रमाण (चावल के दाने) कहाँ से प्राप्त हुए हैं – रंगपुर व लोथल
- इस संस्कृति को सर्वप्रथम किसने सैंधव सभ्यता कहकर पुकारा – सर जॉन मार्शल
- सोथी संस्कृति के मृदभांडों की खोज किसने की थी – अमलानंद घोष
- किस हड़प्पाई स्थल को सिंधु सभ्यता का औद्योगिक शहर कहा जाता था – चन्हूदड़ो
- सर्वप्रथम (1826 ईo में) हड़प्पा टीले का उल्लेख किसने किया – चार्ल्स मैसन
- सुटकोटदा की खोज किसने की – जगपति जोशी
- घोड़े के अस्थिपंजर किन स्थलों से मिले हैं – सुतकोटदा, कालीबंगा, लोथल
- हड़प्पा में बस्ती के बाहर स्थित कब्रिस्तान को क्या कहा गया – R-37
- हड़प्पा में बस्ती के बाहर स्थित समाधि को क्या कहा गया – H. R. समाधि
- कौनसा हड़प्पाई स्थल रेगिस्तान का बगीचा के उपनाम से भी जाना जाता है – मोहनजोदड़ो
- हड़प्पा व मोहनजोदड़ो के बीच की दूरी कितनी है – 640 किलो मीटर
- किस स्थल से घोड़े की हड्डियाँ प्राप्त हुयी हैं – सुतकोटदा
- कालीबंगा की खुदाई किसके नेतृत्व में हुयी – बी. बी. लाल
- किस स्थल की बनावट सामानांतर चतुर्भुज के सामान थी – कालीबंगा
- कलश शवाधान का साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुआ है – सुतकोटदा
- सभ्यता के किस स्थल को अर्द्ध औद्योगिक नगर भी कहा जाता है – हड़प्पा
- जम्मू कश्मीर में चिनाव नदी के तट पर बसा हड़प्पाई स्थल – माण्डा
- किस मिश्रधातु का निर्माण सभ्यता वासियों ने किया – कांसा
- सभ्यता के लोगों को कितनी फसलों का ज्ञान था – 9 फसलों का
- मोहनजोदड़ो से कितने कब्रिस्तान प्राप्त हुए हैं – एक भी नहीं
- इनके वाट किस पत्थर से निर्मित हुआ करते थे – चर्ट
- तौल की इकाई संभवता किस अनुपात में होती थी – 16 के अनुपात में
- किस स्थल से नेवले की पत्थर की मूर्ति प्राप्त हुयी है – धौलावीरा
- मछली कछुआ और घड़ियाल की मृणमूर्ति किस स्थल से प्राप्त हुयी हैं – हड़प्पा
- मोहरों पर सर्वाधिक अंकन किसका मिला है – पीपल
- हड़प्पा सभ्यता का शासन किसके हाथों में था – संभवतः वणिक वर्ग के
- किस स्थल से सर्वाधिक मात्रा में स्वर्ण सिक्के प्राप्त हुए हैं – माण्डी
- किसने आर्य आक्रमण को सभ्यता के पतन का कारन माना – गार्डेन चाइल्ड
- मोहरों पर पीपल के बाद सर्वाधिक अंकन किसका मिला है – एक श्रृंगी पशु
- कुछ विद्वान किस हड़प्पाई स्थल को सिंधु सभ्यता की तीसरी राजधानी मानते हैं – कालीबंगा
- मलेरिया का प्राचीनतम साक्ष्य कहाँ से मिला है – मोहनजोदड़ो से
- सर्वाधिक मुहरें किसकी बनी हुयी हैं – सेलखड़ी की
- किस हड़प्पाई स्थल पर स्पष्ट जल निकास प्रणाली का आभाव दिखता है – कालीबंगा
- किस स्थल से मालिक के साथ बकरी दफनाए जान के साक्ष्य मिले हैं – लोथल
- हड़प्पा व मोहनजोदड़ो को सिंधु सभ्यता की जुड़वाँ राजधानी किसने कहा – पिग्गट ने
- कौनसा नगर देखने में आध्यात्मिक नगर जैसा प्रतीत होता है – मोहनजोदड़ो
- किस स्थल का मिश्र व मैसोपोटामिया से सीधा व्यापार होता था – लोथल
- सभी स्थलों से प्राप्त मुहरों में सर्वाधिक ( लगभग 68%) कहाँ से प्राप्त हुयी हैं – मोहनजोदड़ो
- किस हड़प्पाई स्थल से दुर्ग या किले का द्विभागीकरण मिलता है – कालीबंगा
- किस स्थल से फारस की खाड़ी प्रकार की मुहर प्राप्त हुयी हैं – लोथल
- कौनसा हड़प्पाई स्थल से प्राप्त एक मुहर पर सुमेरियन नावों का चित्रांकन मिलता है – मोहनजोदड़ो
- किस हड़प्पाई स्थल से सात आयताकार यज्ञ वेदियाँ प्राप्त हुयी हैं – कालीबंगा
- कौनसा हड़प्पाई स्थल से शिलाजीत पाया गया –मोहनजोदड़ो
- कौनसा हड़प्पाई स्थल राजस्थान के गंगानगर/हनुमानगढ़ जिले में था – कालीबंगा
- चाँदी का प्राचीनतम साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुआ है – मोहनजोदड़ो से
- कौनसा हड़प्पाई स्थल पर 20 खम्भों वाला एक सभा भवन मिला है – मोहनजोदड़ो
- कालीबंगा की खोज किसने की – अमलानंद घोष ने
- इस सभ्यता की भाषा की लिपि कौनसी थी – चित्रात्मक/पिक्टोग्राफ
- सिंधु सभ्यता की लिपि पद्यति कौनसी थी – बूस्टरोंफ़ेडन
- क्या सिंधु सभ्यता के लोगों को लोहे की जानकारी थी – नहीं
- किस स्थल से गोरिल्ला की मृणमूर्ति प्राप्त हुयी है – लोथल
- तांबे का हेयर पिन किस हड़प्पाई स्थल से प्राप्त हुआ है – मोहनजोदड़ो
- कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ क्या होता है – काले रंग की चूड़ियां
- किस स्थल से तीन युग्म शवाधान प्राप्त हुए हैं – लोथल
- पत्थरों की चुनाई वाले भवनों के साक्ष्य कहाँ मिले हैं – सुतकोटदा
- धौलावीरा का शाब्दिक अर्थ क्या होता है – सफ़ेद कुआँ
- स्नानागार की जल निकासी व्यवस्था उसके किस दिशा में थी – दक्षिण पश्चिम में
- स्नानागार की सीढ़ियां किन किन दिशाओं में थीं – उत्तर व दक्षिण
- लुधियाना में स्थित हड़प्पाई स्थल – संघोल
- सीप उद्योग का केंद्र कौन कौन से स्थल थे – बालाकोट व लोथल
- सीप उद्योग के लिए प्रसिद्ध बंदरगाह नगर – बालाकोट
- हड़प्पा सभ्यता की भारत में स्थित दूसरी सबसे बड़ी बस्ती – धौलावीरा
- एक युग्म शवाधान का साक्ष्य कहाँ से मिला है – कालीबंगा से
- कहाँ से झूकर-झाकर संस्कृति के अवशेष मिलते हैं – चन्हूदड़ो
- गुजरात में मादर नदी के तट पर स्थित हड़प्पाई स्थल – रंगपुर
- पंचतंत्र की चालक लोमड़ी की आकृति कहाँ से प्राप्त हुयी है – लोथल
- ताँबे की कुल्हाड़ी किस हड़प्पाई स्थल से प्राप्त हुयी है – मिताथल से
- किस एकमात्र स्थल से स्टेडियम/खेल के मैदान का साक्ष्य प्राप्त हुआ है – धौलावीरा
- किस स्थल से अग्निवेदियाँ व मिट्टी का हल प्राप्त हुआ है – बनावली
- किस हड़प्पाई स्थल से अंत्येष्टि संस्कार की तीनों विधियों का पता चला है – कालीबंगा
- महिलाओं के सौंदर्य प्रसाधन सामग्री किस स्थल से प्राप्त हुयी है – चन्हूदड़ो
- मांग में सिंदूर भरे स्त्रियों की मृणमूर्तियां कहाँ से प्राप्त हुयी हैं – नौसारो से
- मालिक के साथ कुत्ते को दफनाने के साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुए हैं – रोपड़
- सभ्यता के लोग लाजवर्द मणि, चाँदी व टिन कहाँ से प्राप्त करते थे – अफगानिस्तान
- देवदार की लकड़ी कहाँ से प्राप्त करते थे – कश्मीर व काठियावाड़
- मनका बनाने हेतु गोमेद की प्राप्ति कहाँ से होती थी – गुजरात से
- किस स्थल से तांबे का श्रृंगारदान मिला है – उर
- किस स्थल से किस स्थल से लिपस्टिक के साक्ष्य मिले हैं – चन्हूदड़ो से
- सैंधव लिपि किस प्रकार की है – चित्रात्मक
- भारत में स्थित सबसे बड़ा हड़प्पाई स्थल – राखीगढ़ी
- सिंधु सभ्यता व मैसोपोटामिया के बीच व्यापर में बिचौलिया का काम करने वाला – दिल्मुन ( बहरीन द्वीप )
- सोने की प्राप्ति कहाँ से होती थी – कोलार की खान ( मैसूर/कर्नाटक )
- राजस्थान के अतिरिक्त ताँबा कहाँ से मंगाया जाता था – ओमान से
- कहाँ से प्राप्त एक मूर्ति में गर्भ से पौधा निकलता दिखाया गया है – हड़प्पा
- किस हड़प्पाई स्थल से आक्रामक मुद्रा में एक वृषभ की ताम्रमूर्ति प्राप्त हुयी है – कालीबंगा
- गुरियाँ/मनके बनाने का कारखाना कहाँ से प्राप्त हुआ है – चन्हूदड़ो व लोथल
- किस स्थल के निवासी जल संरक्षण की तकनीक से परिचित थे – धौलावीरा के
- सिंधु सभ्यता के तीनों स्तरों ( प्राक, विकसित, उत्तर ) का प्रतिनिधित्व करने वाला स्थल – बनावली
- लोथल की खोज किसने की – एस. आर. राव
- किस स्थल से मिट्टी की खिलौना नाव की प्राप्ति हुयी है – लोथल
- गुजरात में मनहर व मानसेहर नदियों के बीच स्थित स्थल – धौलावीरा
- बिंदार नदी के तट पर स्थित हड़प्पाई स्थल कौनसा था – बालाकोट
- किसे हड़प्पा के व्यापार का चौराहा कहा जाता है – सुत्कांगेडोर
- किस हड़प्पाई स्थल से से ऊँट की हड्डियां प्राप्त हुयी हैं – कालीबंगा
- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उत्खनित पहला हड़प्पाई स्थल – रोपड़
- किस हड़प्पाई स्थल से टकसाल गृह के साक्ष्य मिले हैं – माण्डी से
- किस स्थल को एस. आर. राव ने लघु हड़प्पा या लघु मोहनजोदड़ो कहा – लोथल
- इस सभ्यता में किसकी पूजा सर्वाधिक प्रचलित थी – मातृदेवी
- किस स्थल से पकी हुयी नालियों के प्रयोग के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं – चन्हूदड़ो
- चाँदी का मुकुट किस हड़प्पाई स्थल से प्राप्त हुआ है – कुणाल
- किस हड़प्पाई स्थल से अंगूठियों के साक्ष्य मिले हैं – कुन्तासी
- कौनसा पशु सभ्यता वासियों के लिए विशेष पूजनीय था – कूबड़ वाला बैल
- गुजरात में सावरमती व भोगवा नदी के संगम पर कौनसा स्थल खोजा गया – लोथल
- बनावली का उत्खनन किसके नेतृत्व में हुआ – आर. एस. विष्ट
- किस हड़प्पाई स्थल को समृद्ध लोगों का शहर कहा जाता है – बनावली
- सतलुज नदी के बाएं तट पर स्थित हड़प्पाई स्थल – रोपड़
- रोपड़ की खोज किसने की – बी. बी. लाल
- आग में पकी हुयी मिट्टी को क्या कहा जाता था – टेराकोटा
- रोपड़ का खनन किसके नेतृत्व में हुआ – यज्ञदत्त शर्मा
- किस हड़प्पाई स्थल से हाथी के अवशेष मिले हैं – रोजदी
- स्पष्ट रूप से गेहूँ की खेती किये जाने के साक्ष्य – हुलास
- मेरठ जिले हिण्डन नदी के तट पर स्थित हड़प्पाई स्थल – आलमगीरपुर
Hiiii
Frndzzzzz…
कैसे हैं आप सब ?????
आपसे गुज़ारिश करता हूँ कि यह पोस्ट पसंद आने पर Like, Comments और Share ज़रूर करें ताकि यह महत्वपूर्ण Data दूसरो तक पहुंच सके और मैं इससे और ज़्यादा Knowledgeable Data आप तक पहुंचा सकू जैसा आप इस Blogger के ज़रिए चाहते हैं ।
No comments:
Post a Comment