Sunday, October 22, 2017

अकबर (1556-1605 ई०)


अकबर (1556-1605 ई०)


जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर मुग़ल साम्राज्य के दूसरे शासक हुमायूँ और हमीदा बानू बेगम का बेटा था। अकबर का जन्म 15 अक्टूबर, 1542 को मुग़ल साम्राज्य की राजधानी में न होकर अमरकोट के राजा वीरमाल के महल में हुआ था। क्यूंकि 1540 ई० को बिलग्राम (कन्नौज) में हुमायूँ और शेरह सूरीशा के बीच युद्ध हुआ था, जिसमें हुमायूँ पराजित हुआ और दिल्ली पर शेरशाह सूरी ने कब्ज़ा कर लिया। तब हुमायूँ को दिल्ली छोड़कर भागना पड़ा और उसने अमरकोट के राजा वीरमाल के यहाँ शरण ली और कुछ समय बाद वह ईरान जा पंहुचा। लेकिन कुछ समय पश्चात ही शेरशाह सूरी के वंशज को हराकर हुमायूँ ने पुनः दिल्ली की गद्दी पर कब्ज़ा कर लिया।
हुमायूँ की मृत्यु के पश्चात पंजाब के कलानौर नामक स्थान पर 14 फरवरी, 1556 को 14 वर्ष की अल्पायु में ही अकबर का राज्याभिषेक हो गया था। अल्पायु के कारण बैरम खाँ को अकबर का संरक्षक नियुक्त किया गया था। जिसे अकबर ने अपना वजीर नियुक्त किया और खान-ए-खाना की उपाधि से नवाजा था। 1556 से 1560 तक अकबर बैरम खां के संरक्षण में रहा था।
5 नवम्बर, 1556 को पानीपत का द्वितीय युद्ध हुआ था, इस युद्ध में अकबर की सेना का मुकाबला सेनापति हेमू से हुआ था। हेमू अफगान शासक मुहम्मद आदिल शाह का सेनापति था। इस युद्ध में हेमू पराजित हुआ और मारा गया।
अकबर के शासन के शुरुआत के दिनों में 1560 ई० से 1562 ई० तक वह अपनी धाय माँ महम अनगा या महिम अनगा, उसके पुत्र आदम खां व उसके सम्बन्धियों के साथ रहता था। जिस कारण अकबर के शासन पर उसके सम्बन्धियों का काफी प्रभाव था। इन दो वर्ष के शासन काल को ‘पर्दा शासन‘ या ‘पेटीकोट सरकार‘ कहा गया है।
अकबर ने अपने शासन काल में सती प्रथा[1] को समाप्त करने का भी प्रयास किया था। साथ ही अकबर ने विधवा विवाह को क़ानूनी मान्यता भी प्रदान की थी। अकबर द्वारा विवाह के लिए उम्र का निर्धारण भी किया गया था, जिसमें लड़कों के लिये कम-से-कम उम्र 16 वर्ष तथा लड़कियों के लिए उम्र 14 वर्ष थी। 1562 ई० में अकबर ने दास प्रथा[2] को भी समाप्त किया था। साथ ही 1563 ई० में तीर्थयात्रा पर लगने वाले कर को भी समाप्त किया था। 1564 ई० में अकबर ने गैर मुस्लिम प्रजा पर लगने वाले जजिया[3] कर की भी समाप्ति की थी।
1571 ई० में अकबर ने फतेहपुर सीकरी नामक नगर की स्थापना की थी तथा अपनी राजधानी आगरा से फतेहपुर सीकरी स्थानांतरित की थी। फतेहपुर सीकरी में 1575 ई० में अकबर ने इबादत खाना (पूजा गृह) स्थापित किया था। इसमें इस्लामी विद्वानों को ही आने की इजाजत थी। परन्तु इस्लामी विद्वानों की बेअदबी से नाराज होकर 1578 ई० में सभी धर्मों के विद्वानों को इबादत खाने में आमंत्रित किया जाने लगा। इस इबादत खाना को बनवाने का उद्देश्य धार्मिक विषयों पर विचार-विमर्श करना था।
18 जून, 1576 ई. को अकबर और महाराणा प्रताप के मध्य हल्दी घाटी का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में मुग़ल सेना का नेतृत्व राजा मानसिंह ने किया था। यह मुगलों और राजपूतों के मध्य हुआ भीषण युद्ध था जिसमें राजपूतों का साथ स्थानीय भील जाति के लोगों ने दिया था। यह युद्ध इतना भीषण और विध्वंसकारी था कि कुछ विद्वान् इसकी तुलना महाभारत युद्ध से भी करते हैं। इतिहासकारों का मत है कि इस युद्ध में कोई पराजित नहीं हुआ परन्तु मुट्ठी भर राजपूतों द्वारा विशाल मुग़ल सेना के छक्के छुड़ा देना महाराणा प्रताप की जीत के समान है।
1579 ई० में अकबर ने महजर अथवा अमोघवृत्त की घोषणा भी की थी। इस मजहर का अर्थ था ‘कि अगर कभी किसी धार्मिक विषय पर कोई वाद-विवाद की स्थति प्रकट होती है, तो अकबर का फैसला सर्वोपरि होगा और वही फैसला सबको स्वीकार करना पड़ेगा।
अकबर ने 1582 ई० में एक नए धर्म ‘दीन-ए-इलाही‘ का निर्माण किया, जिसे ‘तोहिद-ए-इलाही‘ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है दैवीय एकेश्वरवाद। ‘दीन-ए-इलाही’ धर्म में कई धर्मों जैसे मुख्यतः हिन्दू और मुस्लिम धर्म, जैनबौद्धपारसी, ईसाई आदि कई धर्मों के अच्छे सिद्धांतों का समावेश था। ‘दीन-ए-इलाही’ धर्म या सम्प्रदाय का प्रधान पुरोहित अबुल फज़ल को बनाया गया था, जो अकबर के नो रत्नों में से एक थे। वहीँ कई मत ये भी हैं कि अकबर स्वयं ही इस धर्म का प्रधान पुरोहित था। इस धर्म में शामिल होने वाला प्रथम हिन्दू व्यक्ति राजा बीरबल थे, व अंतिम हिन्दू भी राजा बीरबल ही थे। अकबर हिन्दू धर्म से अत्यधिक प्रभावित था, माथे पर तिलक लगाना और हिन्दू त्यौहार मनाना आदि हिन्दू धर्म से लिये गए हैं। इस धर्म को बनाने का मकसद मुख्यतः हिन्दू और मुस्लिम धर्म के बीच की दूरियां मिटाना था
अकबर का दरबार नवरत्नों की वजह से प्रसिद्ध था। नवरत्न असल में नौ लोगों का समूह था, जिनमें तानसेन, राजा बीरबल, टोडरमल, मुल्ला दो प्याजा, अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना, अबुल फज़ल, मानसिंह, फैजी और हाकिम हुमाम शामिल थे। इन सब में बीरबल को श्रेष्ठ माना जाता था। बीरबल का वास्तविक नाम महेश था। बीरबल को कविप्रिय या कविराज की उपाधि अकबर द्वारा दी गयी थी।
नवरत्नों में शामिल फैजी, अबुल फज़ल का बड़ा भाई था। अबुल फज़ल अकबर के दरबार का राजकवि था। अबुल फज़ल ने ही अकबरनामा और आईने अकबरी नामक प्रसिद्ध पुस्तकों की रचना की है। इनमें अकबर की जीवनी और उसकी शासन प्रणाली की व्याख्या की गयी है। नवरत्न तानसेन दरबार के प्रमुख संगीतज्ञथे। जो सभी संगीतज्ञों में सर्वोपरि थे। अकबर के समकालीन सूफी संत शेक सलीम चिश्ती थे।
1582 ई० में अकबर ने गुजरात से जैन धर्म के जैनाचार्य ‘हरी विजय सूरी‘ को जगत गुरु की उपाधि प्रदान की थी। साथ ही 1591 ई० में गतखर गच्छ सम्प्रदाय के विद्वान् ‘जिनचंद्र सूरी‘ को युग प्रधान की उपाधि भी प्रदान की थी।
अकबर ने 1583 ई० में नए कैलेंडर सम्वत ‘इलाही संवत‘ की शुरुआत भी की थी। जो सूर्य पर आधारित था। अकबर ने गुजरात विजय की याद में फतेहपुर सीकरी में बुलंद दरवाजा बनवाया था। अकबर ने अपने पुरे साम्राज्य में एक सरकारी भाषा ‘फ़ारसी’ के प्रयोग की शुरुआत की थी। साथ ही पूर्ण साम्राज्य में एक समान मुद्रा प्रणाली की शुरुआत तथा एक समान बाट व माप-तौल की प्रक्रिया भी प्रांरभ की थी। अकबर द्वारा भूमि-राजस्व सुधार के कई मापदंड शेरशाह सूरी (शेर खां) के भू-राजस्व (भूमि-राजस्व) सुधारों से ही लिये गए थे।
अकबर को इतिहास में उसके सर्व धर्म सहिष्णुता के लिए जाना जाता है। साथ ही अकबर के शासन में ही मुग़ल साम्राज्य नयी बुलंदियों पर पहुँचा था और एक विशाल मुग़ल साम्राज्य का उद्भव हुआ था।
1605 ई० को अतिसार रोग के कारण अकबर की मृत्यु हो गयी थी। अकबर को सिकन्दरबाद के पास दफनाया गया था। उसके बाद अकबर का बेटा सलीम जिसे जहांगीर के नाम से भी जाना जाता है, मुग़ल तख़्त पर बैठा।
इतिहासकार लेनपूल ने अकबर के शासन काल को ‘मुग़ल साम्राज्य का स्वर्णिम काल कहा है।

हुमायूँ (1530-1556 ई०)


हुमायूँ (1530-1556 ई०)


बाबर की मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य की गद्दी पर बाबर का बड़ा बेटा हुमायूँ बैठा। 30 वर्ष की आयु में आगरामें हुमायूँ को मुग़ल सल्तनत का ताज पहनाया गया था। हुमायूँ को नासिर-उद-दीन मुहम्मद के नाम से भी जाना जाता था। हुमायूँ ने अपने मुग़ल साम्रज्य को अपने तीन भाइयों (कामरानअस्करी और हिन्दाल) के बीच बाँटा था, जिसे इतिहासकार हुमायूँ की बड़ी भूल मानते हैं।

हुमायूँ ने सर्वप्रथम 1531 ई० में कालिंजर पर आक्रमण किया। जहाँ का शासक रुद्रदेव था। हुमायूँ ने उसे हराकर दुर्ग पर कब्ज़ा कर लिया पर रुद्रदेव से संधि कर दुर्ग पर बिना अपना अधिकार किये वहां से अपनी सेना को हटा दिया। इतिहासकारों ने इसे हुमायूं की दूसरी बड़ी भूल माना है।
बाबर के समय से ही मुगल सल्तनत के सबसे बड़े शत्रु अफगान थे। इसलिए हुमायूँ ने 1532 ई० में शेर खाँ पर हमला कर दिया यह युद्ध दोहरिया नामक स्थल पर हुआ था। इस युद्ध में अफगानों की तरफ से नेतृत्व महमूद लोदी ने किया था। इसे युद्ध में अफगानों को पराजय का सामना करना पड़ा। और हुमायूँ ने चुनार के किले पर धावा बोल उसे अपने कब्जे में ले लिया, जो उस समय अफगानी मूल के शासक शेर खाँ का किला था, शेर खां को शेरशाह सूरी के नाम से भी जाना जाता है। परन्तु शेर खाँ के आत्मसमर्पण कर देने और हुमायूँ की अधीनता स्वीकार कर लेने के कारण हुमायूँ ने उसका किला उसीको वापिस कर दिया। फल स्वरूप शेर खाँ ने अपने पुत्र क़ुतुब खाँ के साथ एक अफगान टुकड़ी हुमायूँ की सेवा में भेज दी।
इसी बीच चित्तोड़ की रानी और राजमाता कर्णवती (कर्मवती) ने हुमायूँ को राखी भेज गुजरात के शासक बहादुरशाह से बचाव की गुहार लगायी। बहादुरशाह एक महत्वकांक्षी शासक था वो पहले ही मालवा (1531), रायसीन (1532) और सिसोदिया वंश के शासक को पराजित कर चित्तोड़ पर अपना अधिपत्य जमा चुका था। बहादुरशाह की बढ़ती शक्ति देख हुमायूँ पहले से ही परेशान था। अतः 1535 ई० में हुमायूँ और बहादुरशाह के बीच मंदसौर में युद्ध हुआ, जिसमें हुमायूँ ने बहादुरशाह को पराजित कर दिया पर हुमायूँ की ये जीत ज्यादा दिन न रह सकी, शीघ्र ही बहादुरशाह ने पुर्तगालियों की सहायता से पुनः गुजरात और मालवापर फिर से अपना कब्ज़ा कर लिया।
वहीं दूसरी तरफ शेर खाँ की शक्ति बढ़ने लगी थी, इसलिए हुमायूँ ने दूसरी बार 1538 ई० में चुनारगढ़ के किले पर आक्रमण कर दिया, पर 6 महीने तक किले को घेरे रखने के बाद भी हुमायूँ सफल न हो सका। अंततः गुजरात के शासक बहादुरशाह की सेना में तोपची रहे रूमी खाँ, जोकि मंदसौर युद्ध के बाद हुमायूँ के साथ हो गया था, रूमी खाँ के कूटनीतिक प्रयास के कारण हुमायूँ किले पर कब्ज़ा करने में कामयाब रहा।
इसके बाद 1538 ई० में हुमायूँ ने बंगाल पर आक्रमण कर वहां पर मुग़ल साम्राज्य का अधिपत्य जमा लिया। परन्तु वहां से वापस आते समय 26 जून, 1539 को हुमायूँ और शेर खाँ (शेरशाह सूरी) के बीच कर्मनाशा नदीके नजदीक चौसा नामक स्थान पर ‘चौसा का युद्ध‘ लड़ा गया, इस युद्ध में हुमायूँ बुरी तरह पराजित हुआ। इस जीत से खुश होकर शेर खाँ ने अल-सुल्तान-आदिल या शेरशाह की उपाधि धारण की और अपने नाम के सिक्के जारी किये और खुतबा (प्रसंशा का भाषण) भी पढ़वाया।
इसके बाद 17 मई, 1540 को फिर से हुमायूँ और शेर खाँ के बीच कन्नौज में एक और युद्ध लड़ा गया जिसमें शेर खाँ की जीत हुई और एक बार फिर दिल्ली पर अफगानों का शासन फिर से स्थापित हुआ, जहाँ पर मुग़ल साम्रज्य से पहले अफगानों की दिल्ली सल्तनत का राज था।
कन्नौज के युद्ध में हारकर हुमायूँ ईरान जा पंहुचा और 1540 से 1555 तक घुम्मकड़ों की तरह जीवन यापन किया। परन्तु अपने देश निकला से पहले हुमायूँ ने अपने भाई हिन्दाल के आध्यात्मिक गुरु ‘शियमीर‘ की पुत्री हमीदा बेगम से निकाह किया और हमीदा ने कुछ समय पश्चात एक पुत्र को जन्म दिया जिसे अकबर के नाम से जाना गया जो आगे चलकर मुग़ल साम्राज्य का सबसे महान शासक बना।
1544 ई० में हुमायूँ ने ईरान के शाह तहमस्प के यहाँ शरण लेकर रहने लगा और युद्ध की तैयारी करने लगा। हुमायूँ ने अपने भाई कामरान से काबुल और कन्धार को छीन लिया और 15 वर्ष निर्वासन में रहने के बाद, हुमायूँ ने अपने विश्वसनीय सेनापति बैरम खाँ की मदद से 15 मई को मच्छीवाड़ा और 22 जून, 1555 को सरहिन्द के युद्ध में शेर खाँ (शेर शाह सूरी) के वंशज सिकंदर शाह सूरी को पराजित कर फिर एक बार दिल्ली पर अपना अधिपत्य कर लिया और मुग़ल साम्राज्य को आगे बढ़ाया।
परन्तु दूसरी बार हुमायूँ तख्त और राजपाठ का सुख ज्यादा दिन न भोग सका 27 जनवरी, 1556 को दिल्ली के किले दीनपनाह के शेरमंडल नामक पुस्कालय की सीढ़ी से गिरकर हुमायूँ की मृत्यु हो गयी। हुमायूँ को दिल्ली में ही दफनाया गया। दिल्ली में यमुना नदी के किनारे 1535 ई० में हुमायूँ ने ही ‘दीन-पनाह‘ नामक नये शहर की स्थापना की थी। हुमायूँ की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र अकबर मुग़ल साम्राज्य के राज सिहांसन पर बैठा।
इतिहासकार लेनपूल ने हुमायूँ के बारे में टिपण्णी करते हुए कहा है कि “हुमायूँ गिरते-पड़ते ही इस जीवन से मुक्त हो गया, उसी तरह जैसे वह ताउम्र गिरते-पड़ते जिंदगी में चलता रहा।

Sunday, October 15, 2017

जीव विज्ञान के बेहद महत्वपूर्ण तथ्य

जीव विज्ञान के बेहद महत्वपूर्ण तथ्य

भेड की चोकला नस्ल से राजस्थान में सर्वोत्तम ऊन मिलती है।
गाय बैलों की वे नस्लें जिनकी गाय अच्छी मात्रा में दूध देती है। परन्तु बैल कम शक्तिशाली होते है। मिल्क ब्रीड कहलाती है।
यदि पौधे को अंधेरे में उगाया जाय तो वह लम्बा हेा जाता है क्योकि उसमें आक्सीजन की मात्रा बढ जाती है
बी0एम0आर0 का अभिप्राय बेसिक मेटा बोलिक रेट है।
बोटुलिज्म एक प्रकार का भोजन दूषण है जो क्लोस्ट्रीडियम जीवाणु द्वारा होता है।
व्यापारिक कार्क फ्लोएम  से प्राप्त होती है।
नारियल अधिकांशतया समुद्र के किनारें के प्रदेशो में व्यापक रूप से पाया जाता है। क्योकि इसके फल जल पर तैरते है
नारियल का फल ड्रूप होता है।
अद्र्वसूत्री विभाजन में दो विभाजन होते है, एक न्यूनकारी विभाजन तथा एक सूत्री विभाजन
माता पिता के गुण सन्तान में गुणसूत्र द्वारा स्थानानतरित होते है।
जीन डी0एन00 के बने होते है।
जब गुणसूत्रों के बिना विभाजन के कोशिका में विभाजन होता है तो उसे असूत्री विभाजन कहते है।ं
बैक्टीरिया में माइटोकोणिड्रया एवं केन्द्रक नही होते
समतापी प्राणियों में ताप का नियमन करने वाला मस्तिष्क केन्द्र हाइपोथैलेमस है।
आज्ञा का पालन करना प्रतिवर्ती क्रिया का उदाहरण नही है।
मनुष्य में मेरू तन्त्रिकाओं की संख्या 31 युग्म है।
हमारी जीभ पर स्वाद कलिकाएें , जो खटटे का ज्ञान कराती है जीभ के पाश्र्व भाग पर पायी जाती है।
मस्तिष्क के सबसे बाहर का स्तर डयूरामेटर होता है।
मस्तिष्क का जो भाग बुध्दि का भाग कहलाता है, उसे वैज्ञानिक भाशा में सेरीब्रल हेमीसिफयर कहते है।
औधोगिक प्रक्रमों में जीवधारियों अथ्वा उसने प्राप्त पदार्थो का उपयोग जैव प्रोधोगिकी की श्रेणी में आता है।
हमारे देश में क्लोरेमफेनिकोल प्रतिजैविक का उत्पादन नही होता है, पेनिसिलिन, एमिपसिलिन एवं टेट्रासाइक्लीन का प्रयोग होता है।
आनुवांशिकी के अनुसार आर0एच- पुरूष और आर0एच0 + स्त्री विवाह सम्भव है।
उत्परिवर्तन का सिध्दांत डी व्रीज ने दिया था
विकास सिध्दांत के अनुसार मनुश्य कपि एक ही पूर्वज से विकसित हुआ।
जीवन का रासायनिक सिध्दांत ओपेरिन का सिद्वान्त है।
वनस्पतिशास्त्रीयों के अनुसार स्थल पर सर्वप्रथम आने वाले पौधे मांस तथा उनके सम्बन्धी पौधे के समान थे
मनुष्य में अवषेशी अंग कर्णपल्लव पेशिया है।
जीवाश्म जैव विकास की विभिन्न अवस्थाओं का रहस्योदघाटन करते है।
वनस्पति विज्ञान के जनक थि्रयोफ्रेस्टस थे।
जीव विज्ञान का जनक अरस्तु थे
मानव शरीर की संरचना का पता लगाने वाला पहला वैज्ञानिक एंडि्रयास विसैलियम था।
वृक्क प्रत्यारोपण में भार्इ या अत्यधिक निकट सम्बन्धी का वृक्क ही लिया जाता है, क्योकि दोनों के वृक्को का अनुवांशिक संगठन एक जैसा होता है।
मानव एक मिनट में 16 से 18 बार सांस लेता हैैं
स्तनी प्राणियों में डायाफ्राम का सबसे महत्वपूर्ण कार्य श्वास विधि में सहायता करना हैं
जब कोर्इ व्यकित सांस लेता है तो आक्सीजन रूधिर में हीमोग्लोबिन से संयोग करती है।
श्वसन गुणांक आर0क्यू0 का तात्पर्य उत्पादित कार्बन डाइ-आक्साइड तथा प्रयोग में आर्इ आक्सीजन का अनुपात है।
डी0एन00 कुण्डल रचना वाटसन एवे कि्र्क ने बतायी थी।
आर0एन00 में डी0एन00 यूरेसिल तत्व के कारण भिन्नता होती है
जैव प्रौधोगिकी विभाग विज्ञान एवं प्रौधोगिकी मन्त्रालय के अधीन है।
कृत्रिम निषेचन के लिए सांड के वीर्य को द्रव नाइट्रोजन में संचित करते है।
भ्रूण की जानकारी के लिए सोनोग्राफी विधि सर्वश्रेष्ठ है।
एन0एम0आर0 चुम्बकीय अनुनाद पर आधारित हैं।
जीवन की उत्पत्ति जल में हुर्इ।
मेथेन, हाइड्रोजन, जल तथा अमोनिया ने अमीनो अम्ल का निर्माण किया था, यह स्टैन्ले मिलर ने सिध्द किया
रचना कार्य दोनों में समान समरूप अंग होते है।
लिंगी गुणसूत्र केा छोडकर अन्य गुणसूत्र आटोसोम के नाम से जाने जाते है।
फास्फोरस डालने से पौधो के विकास मे सहायता मिलती हैै।
पर्ण हरित का पौधे में सूर्य के प्रकाश को अवषोशित करके शर्करा का भण्डार करने में प्रयोग किया जाता है।
लाइगेज नाम एन्जाइम का उपयोग डी0एन00 के टुकडों को जोडने के लिए किया जाता है।
डी0एन00 में शर्करा डीआक्सीराइबोज में होती है।
ऊतक संवद्र्वन के दो पाइलट संयन्त्रों की सािपना नर्इ दिल्ली पुणे में की गर्इ।
वष्पोत्सर्जन में पत्तियों से पानी वाष्प के रूप में निकलता है।
पेशी में संकुचन कारण मायोसिन एकिटन है।
काष्ठ का सामान्य नाम द्वितीयक जाइलम है
हदय की धडकन को नियन्त्रित करने के लिए पेसमेकर इस्तेमाल किया जाता है।
सिनैपिसस तन्त्रिका एवं दूसरी तन्त्रिका के बीच होता है।
अदरक एक तना है जड नही, क्योकि इसमें पर्व पर्वसन्धिया होती है।
प्लाज्मा झिल्ली कोशिका के भीतर तथा बाहर, जल एवं कुछ विलयों के मार्ग का नियन्त्रण करती है।
फलीदार पादप कृषि में महत्वपूर्ण है क्योकि नाइट्रोजन स्थिर करने वाले जीवाणु का उनमें साहचर्य होता है।
प्रत्येक गुण सूत्र में कर्इ जीन्स होते है।
फाइबि्रनोजन रूधिर में विधमान यकृत में बनता है।
स्पर्श करने पर छुर्इमुर्इ पौधे की पत्तियाँ मुरझा जाती है क्योकि पर्णाधार का स्फीति दाब बदल जाता है
पौधे नाइट्रोजन को नाइट्राइट के रूप में ग्रहण करते है।
गर्भ में बच्चे का लिंग निर्धारण पिता के गुणसूत्रों के द्वारा किया जाता है।
प्रकाश संष्लेशण प्रक्रिया का प्रथम चरण सूर्य के प्रकाश द्वारा पर्णहरिम का उत्तेजन हेाता है।
जल के अणुओं के लिए कोशिका भितितयों का आकर्षण बल अधिशोषण कहलाता है।
हमारी जीभ का वह भाग जो मीठा स्वाद बताता है वह अग्रभाग होता है।
भूमि में मैग्नीशियम तथा लोहे की कमी पौधे में हरिमहीनता का कारण है।
केले बीजरहित होते है क्योकि ये त्रिगुणित होते है।
वाश्पोत्र्सजन पोटोमीटर से मापा जाता है।
अन्त:पोषण के कारण जल में रखने पर बीज फूल जाते है।
प्रकाश तथा अन्धकार दोनों में केवल हरिमहीन कोशिकाओं में श्वसन होता है।
कार्क के बाहर विलग परत का बनना शरद ऋतु में शाखाओं से पत्तियाँ गिरने का कारण है।
यदि किसी पुष्प में चमकदार रंग, सुगन्ध तथा मरकन्द होते है, तो कीट परागित होता है।
वाहिनिकाएँ, वाहिकाएँ काष्ठ तन्तु तथा मृदूतक जाइलम में पाये जाते है।
व्हेल केवल बच्चे देते हैै।
गर्भाशय में विकसित हो रहे भ्रूण को प्लेसेण्टा द्वारा पोषण मिलता है।
एक निशेचित अण्डे का दो खण्डों में विभाजन हो, तथा दोनों भाग अलग हो जाएँ तो समान जुडवा बच्चे पैदा होते है।
वृक्क जब काम करना बन्द कर देता है, तो मनुष्य के रूधिर में से डायलिसिस द्वारा विषाक्त तत्वों को पृथक किया जाता है।
वृक्कों में मूत्र के निर्माण में केशिका-गुच्छीय फिल्टरन, पुन: अवषोशण तथा नलिका स्त्रावण क्रिया का क्रम उचित है।
हाइड्रोपोनिक्स बिना मिटटी की खेती से सम्बनिधत है।
एपोमिकिसस का अर्थ बिना लिंगी जनन हुए भ्रूण का निर्माण है।
अदरक राइजोम है।
हम सेलुलोज को नही पचा सकते है लेकिन गाय पचा सकती है क्योकि गायों की आहारनली में ऐसे जीवाणु होते है। जो सेलुलोज को पचा सकते है।
किसी जन्तु द्वारा भोजन ग्रहण करने की क्रिया को अन्तग्र्रहण कहते है।
कीटपक्षी पौधे कीडों को खाते है क्योकि वे जिस मिटटी में उगते है, उसमें नाइट्रोजन की कमी होती है।
अधिपादप (एपीफाइट) ऐसे पौधे है जो केवल आश्रय के लिए अन्य पौधेा पर निर्भर करते है।
माइकोप्लाज्मा सबसे सूक्ष्म स्वतन्त्र रूप से रहने वाला जीव है।
हरित लवक, माइटोकोणिड्रया, केन्द्रक पादप कोशिका में डी0एन00 होता है।
सीखना याद रखना सेरीब्रम से सम्बनिध है।
फीताकृमि अनाक्सीष्वसन करता है।
यदि संसार के सभी जीवाणु तथा कवक नष्ट हो जाएँ, तो संसार लाषों तथा सभी प्रकार के सजीवों के उत्सर्जी पदार्थो से भर जाएगा।
हरित लवक में ग्रेना और स्ट्रोमा पाए जाते है।
प्रोकैरियोट वे जीव, जिनमें केन्द्रक सुविकसित नहीं होता है।
वनस्पति विज्ञान की वह शाखा, जिसमें शैवालों का अध्ययन करते है फाइकोलाजी कहलाती है।
यूथेनिक्स पालन पोषण द्वारा मानव जाति की उन्नति का अध्ययन है।
मानव खोपडी में 22 हडिडया होती है।
3 – 4 वर्ष के बच्चे में चवर्णक नहीं होते

अर्धसूत्री विभाजन तरूण पुष्प कलिकाओं में पाया जाता है

भौगोलिक शब्दावली -2 (Geographical terminology -2)

                                                         भौगोलिक शब्दावली -2                             (Geographical terminology -2)      ...