Tuesday, November 11, 2025

हिंदी वर्णमाला (Hindi alphabet)

 

हिंदी वर्णमाला (Hindi alphabet)

हिंदी वर्णमाला (Hindi alphabet) 

आज मैं आपको हिंदी व्याकरण के एक बहुत ही जरूरी विषय के बारे में बताने वाला हूं जो कि वर्ण और वर्णमाला है|   हिंदी व्याकरण   में वर्ण और   वर्णमाला   का बहुत अधिक महत्व है क्योंकि वर्ण और वर्णमाला के बनने से ही किसी भी भाषा में ध्वनि उत्पन्न होती है या हम यूं कह सकते हैं कि ध्वनि उत्पन्न करने वाले शब्द वर्णमाला और वर्ण से ही बनते हैं

वर्णमाला को English में Alphabet कहा जाता है सबसे पहले हम बात करेंगे वर्ण के बारे में कि वर्ण क्या होते हैं उसके बाद हम बात करेंगे वर्णमाला के बारे में कि   वर्णमाला     क्या होती है   और   वह कितने तरह के होते हैं|

वर्ण  क्या हैं  (What are the Characters) ?

हिंदी भाषा में वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं जिसके भाग या टुकड़े नहीं किए जा सकते जैसे अ, व, च आदि वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है जिसके टुकड़े नहीं किए जा सकते।

उदाहरण – राम, नाम 

राम और नाम दोनों शब्दों में चार – चार मूल ध्वनियाँ है जिनके भाग या खंड नहीं किये जा सकते जिन्हे निम्नलिखित तरीकों से पहचाना जा सकता है 

  • र + आ + म + अ = राम 
  • न + आ + म + अ = नाम 

इन्ही अखंड मूल ध्वनियों को वर्ण कहा जाता है ऊपरलिखित उदाहरण में आप देख सकते हैं कि जैसे राम और नाम शब्द चार वर्णों के मिलने से बने हैं वैसे ही अन्य शब्द भी वर्णों के मिलने से बनते है जब दो या दो से अधिक वर्ण एक साथ मिलते हैं तो वह एक ध्वनि का निर्माण करते हैं हर वर्ण की अपनी लिपि होती है   हिंदी व्याकरण      में 52 वर्ण    है।

वर्णमाला किसे कहते है ? (What is the Alphabet called?)

जब बहुत सारे वर्ण एक समूह का रूप ले लेते हैं तो उसे वर्णमाला कहते हैं इसे हम ऐसे भी कह सकते हैं कि जब दो या दो से अधिक वर्ण मिलते हैं तो उसे वर्णमाला कहते हैं प्रत्येक भाषा की अपनी वर्णमाला होती है.

उदाहरण :

Hindi Bhasha Ki Varnamala – अ आ क ख ग म र………

Angrezi Bhasha Ki Varnamala – a b c d e f g h I j k l……………

वर्ण के प्रकार:- (Types of Alpabet)

हिंदी भाषा में वर्ण दो प्रकार  होते है –

1. स्वर 

2. व्यंजन 

Definition Of Vowel – Swar Ki Paribhasha

हिंदी भाषा में कुछ ऐसे वर्ण हैं जिनके उच्चारण के लिए किसी अन्य वर्ण की सहायता नहीं लेनी उन्हें ही हिंदी भाषा में स्वर कहा जाता है किसी भी Swar की ध्वनियों के उच्चारण में किसी अन्य ध्वनि या वर्ण की सहायता नहीं ली जाती, वायु मुख विवर में बिना किसी अवरोध के बाहर निकलती है।  हिंदी वर्णमाला में 11 स्वर हैं।

उदाहरण – अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ , ए , ऐ , ओ , औ आदि। 

Types Of Vowel – स्वर के प्रकार

1. मूल स्वर:– अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ

2. संयुक्त स्वर:- ऐ (अ +ए) और औ (अ +ओ)

मूल स्वर के प्रकार 

मूल स्वर के तीन प्रकार होते है –

  • ह्स्व स्वर
  • दीर्घ स्वर 
  • प्लुत स्वर

1. ह्स्व स्वर – हिंदी व्याकरण में जिन वर्णों के उच्चारण में कम समय लगता है उन्हें ह्स्व स्वर कहा जाता है, हिंदी व्याकरण में चार प्रकार के ह्स्व स्वर होते है

उदाहरण – अ आ उ ऋ।

2. दीर्घ स्वर – हिंदी व्याकरण के वे वर्ण अथवा स्वर जिनको उच्चारण करने में ह्रस्व स्वर से दोगुना या अधिक समय लगता हो, वह दीर्घ स्वर कहलाते हैं। अगर इसे सरल शब्दों में कहें तो जिन स्वरों या वर्णों के उच्चारण में अधिक या दीर्घ समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते है।

उदाहरण – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।

दीर्घ स्वर दो शब्दों के मिलने से बनते है।

जैसे- आ = (अ +अ ) 

ई = (इ +इ ) 

ऊ = (उ +उ ) 

ए = (अ +इ )

ऐ = (अ +ए ) 

ओ = (अ +उ ) 

औ = (अ +ओ )

3. प्लुत स्वर – हिंदी व्याकरण के वह स्वर अथवा वर्ण जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय लगता है वह प्लुत स्वर कहलाते हैं प्लुत स्वरों में मात्राओं का प्रयोग किया जाता है जिनके उच्चारण में अधिक समय लगता है, सरल शब्दों में कहें तो – जिस स्वर के उच्चारण में तिगुना समय लगे, उसे ‘प्लुत’ स्वर कहते हैं।

 उदाहरण : राऽऽम, ओऽम्

2. व्यंजन 

हिंदी भाषा में जिन वर्णों के उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है उन्हें व्यंजन कहा जाता है हिंदी वर्णमाला में 33 व्यंजन होते हैं।

उदाहरण : क, ख, ग, च, छ, त, थ, द, भ, म इत्यादि।

 व्यंजन के प्रकार   (Types Of Consonant)

1. स्पर्श व्यंजन – व्याकरण के जिन व्यंजनों (वर्ण + स्वर) का उच्चारण करते समय जीभ, मुँह के किसी एक भाग जैसे – कण्ठ(गला), तालु, मूर्ध, दाँत, अथवा ओष्ट (होठ) का स्पर्श करती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते है(स्पर्श का अर्थ होता है छूना) स्पर्श व्यंजन को ‘वर्गीय व्यंजन’ भी कहा जाता है। 

हिंदी व्याकरण में 25 स्पर्श व्यंजन होते है :

  • कवर्ग- क ख ग घ ङ ये गले यानि कंठ को स्पर्श करते है।
  • चवर्ग- च छ ज झ ञ ये तालु को छूते या स्पर्श करते है।
  • टवर्ग- ट ठ ड ढ ण (ड़, ढ़) ये मूर्धा को स्पर्श करते है।
  • तवर्ग- त थ द ध न ये दाँतो को स्पर्श करते है।
  • पवर्ग- प फ ब भ म ये होठों को स्पर्श करते है।

2. अन्तःस्थ व्यंजन – अन्तः’ का अर्थ होता है- ‘भीतर’। उच्चारण के समय जो व्यंजन मुँह के भीतर ही रहे उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते है। ये व्यंजन चार होते है- य, र, ल, व।

3. उष्म व्यंजन – उष्म का अर्थ होता है- गर्म। जिन वर्णो के उच्चारण के समय हवा मुँह के विभिन्न भागों से टकराये और साँस में गर्मी पैदा कर दे, उन्हें उष्म व्यंजन कहते है। ये भी चार व्यंजन होते है- श, ष, स, ह।

Conclusion : मुझे आशा है कि आप वर्ण और वर्णमाला को समझ गए होंगे कि वर्ण और   वर्णमाला     क्या होती है   यह कितने Type के होते हैं और इनका हिंदी भाषा के व्याकरण में क्या महत्व है अगर Simple शब्दों में कहूं तो वर्ण और वर्णमाला के बिना   किसी भी भाषा की कल्पना करना असंभव है हर भाषा के लिए वर्ण और वर्णमाला का होना आवश्यक होता है हालांकि हर भाषा में वर्ण और वर्णमाला को अलग-अलग नामों से जाना जाता है लेकिन इनका इस्तेमाल हर भाषा में एक ही तरह का होता है। 

Tuesday, September 9, 2025

पृथ्वी का जलमंडल (Earth's hydrosphere)

 

पृथ्वी का जलमंडल

पृथ्वी का जलमंडल

पृथ्वी का जलमंडल

पृथ्वी का जलमंडल


     पृथ्वी   का जलमंडल 

 (Earth's hydrosphere)

पृथ्वी पर मौजूद जल के सभी रूपों को जलमंडल कहते हैंयह पृथ्वी के सतह, भूमिगत, और वायुमंडल में फैला होता है. जलमंडल में जल की सभी अवस्थाएं शामिल हैं, जैसे- बर्फ़, जल, और जलवाष्प. पृथ्वी पर जल की मात्रा इतनी ज़्यादा है कि इसे नीला ग्रह कहा जाता है|

समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र  पृथ्वी पर सबसे बड़ा   पारितंत्र    है।

जलमंडल का परिचय

यह पृथ्वी का वह घटक है जो ग्रह पर पाए जाने वाले सभी तरल जल से बना है। इसमें महासागर, समुद्र, झीलें, तालाब, नदियाँ और धाराएँ जैसे जल भंडारण क्षेत्र शामिल हैं।

दूसरे शब्दों में, जलमंडल काफी बड़ा है क्योंकि महासागर पृथ्वी के सतह क्षेत्र के लगभग 71% हिस्से को कवर करते हैं। जलमंडल की गति और जलमंडल और क्रायोस्फीयर के बीच पानी का आदान-प्रदान ही जल विज्ञान चक्र का आधार है।

इसके अलावा, पानी की निरंतर गति और विनिमय धाराओं के निर्माण में मदद करता है जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से ध्रुवों तक गर्म पानी ले जाते हैं और पृथ्वी के तापमान को विनियमित करने में सहायता करते हैं। तो, आप देखते हैं कि पानी का आदान-प्रदान जलमंडल का एक अनिवार्य हिस्सा है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जलमंडल मुख्य रूप से पानी से बना है। इसके अलावा, इसमें कुछ अशुद्धियाँ या मिश्रण भी हैं, जिनमें घुले हुए खनिज, गैसें  और कण शामिल हैं। हम इनमें से कुछ को प्रदूषण मानते हैं, जबकि अन्य पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।

उदाहरण के लिए, बहुत अधिक तलछट आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है, जबकि पानी में घुलित ऑक्सीजन के अपर्याप्त स्तर के परिणामस्वरूप हाइपोक्सिक स्थितियां पैदा होती हैं जो पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं।

इसलिए, जलमंडल के विभिन्न घटकों को घेरने वाले स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक नाजुक संतुलन की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, जलमंडल हमेशा गतिशील रहता है। नदियों और झरनों की गति दिखाई देती है, लेकिन तालाबों और झीलों की गति कम स्पष्ट होती है।

इसके अलावा, हम समुद्र और महासागरों की कुछ हलचलों को बड़े पैमाने पर देख सकते हैं जो पानी को ध्रुवों और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों या महाद्वीपों के बीच लंबी दूरी तक ले जाती हैं। इस प्रकार की हलचलें धाराओं के रूप में होती हैं।

मूल रूप से, वे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गर्म पानी को ध्रुवों की ओर और ध्रुवों से ठंडे पानी को उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की ओर ले जाते हैं। ये धाराएँ समुद्र की सतह और गहराई पर मौजूद होती हैं।

जलमंडल का महत्व

हम जलमंडल को हल्के में लेते हैं और हमें जीवित रखने में ग्रह की भूमिका के बारे में शायद ही कभी सोचते हैं। जलमंडल का मुख्य महत्व यह है कि पानी विभिन्न जीवन रूपों को बनाए रखता है। इसके अलावा, यह पारिस्थितिकी तंत्र में एक आवश्यक भूमिका निभाता है और वायुमंडल को नियंत्रित करता है।

जलमंडल पृथ्वी की सतह पर मौजूद सभी जल को कवर करता है। इसमें खारे पानी, मीठे पानी और जमे हुए पानी के साथ-साथ भूजल और वायुमंडल के निचले स्तरों में मौजूद पानी शामिल है।

अब हम इसके कार्यों पर नजर डालेंगे:

कोशिकाओं में जल का महत्व

जीवित जीव में प्रत्येक कोशिका लगभग 75% पानी से बनी होती है, इस प्रकार, यह कोशिका को उचित रूप से कार्य करने में सक्षम बनाती है। अगर हमारे पास पानी नहीं होता, तो कोशिकाएँ सामान्य रूप से काम नहीं कर पातीं क्योंकि इसके बिना जीवन अस्तित्व में नहीं रह सकता।

मनुष्य को जल की आवश्यकता है

मनुष्य पानी का विभिन्न तरीकों से उपयोग करता है। पीने के पानी का सबसे स्पष्ट उपयोग है, लेकिन हम इसका उपयोग घरेलू उद्देश्यों जैसे कपड़े धोने और सफाई करने और उद्योगों में भी करते हैं। इसके अलावा, हम जल विद्युत के माध्यम से बिजली बनाने में भी पानी का उपयोग करते हैं।

जल आवास प्रदान करता है

जलमंडल कई पौधों और जानवरों के रहने के लिए

 जगह प्रदान करता है। CO 2 , O 2 जैसी कई गैसें , अमोनियम और नाइट्राइट (NO 2 ) जैसे पोषक तत्व और अन्य आयन पानी में घुले होते हैं। पानी में जीवन के अस्तित्व के लिए इन पदार्थों की उपस्थिति महत्वपूर्ण है।

जलवायु को विनियमित करें

पानी की विशिष्ट ऊष्मा इसकी अनूठी विशेषता है। यह दर्शाता है कि पानी को गर्म होने में बहुत समय लगता है और ठंडा होने में भी बहुत समय लगता है। यह पृथ्वी पर तापमान को नियंत्रित करने में सहायता करता है क्योंकि वे उस सीमा में रहते हैं जो पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए स्वीकार्य है।

जलमंडल के घटक

पृथ्वी  पर कोई भी जल भंडारण क्षेत्र   जिसमें तरल जल मौजूद हो, हम उसे जलमंडल का हिस्सा मानते हैं। इस वजह से, जलमंडल बनाने वाली संरचनाओं की एक विस्तृत सूची है जिसमें शामिल हैं:

महासागर:  हमारे ग्रह पर अधिकांश जल खारा है, तथा इस खारे पानी का अधिकांश भाग महासागरों में मौजूद है।

मीठा पानी:   मीठा पानी खारे पानी की तुलना में बहुत कम प्रचुर मात्रा में होता है, तथा विभिन्न स्थानों पर मौजूद होता है।

सतही जल:  मीठे पानी के सतही स्रोतों में झीलें, नदियाँ और धाराएँ शामिल हैं।

भूजल:  जमीन के नीचे संग्रहीत ताजा पानी पृथ्वी पर ताजे पानी का एक छोटा सा हिस्सा है।

हिमनद जल:  वह जल जो हिमनदों से पिघलता है।

जलमंडल पर मानवीय प्रभाव

जैसा कि हम जानते हैं कि मनुष्य पर्यावरण पर बहुत प्रभाव डाल रहे हैं, यही बात जलमंडल पर भी लागू होती है। जल प्रदूषण, नदी बांध, आर्द्रभूमि जल निकासी, जलवायु परिवर्तन और सिंचाई के कारण इसमें भारी बदलाव आया है।

इसके अलावा, जब हम उर्वरकों और मल को जल भंडारण क्षेत्रों में छोड़ते हैं, तो इसके परिणामस्वरूप यूट्रोफिकेशन होता है, जिसके कारण जलीय वातावरण कृत्रिम रूप से पोषक तत्वों से समृद्ध हो जाता है।

अत्यधिक शैवाल प्रस्फुटन से जल में हानिकारक हाइपोक्सिक स्थितियां पैदा हो सकती हैं। जीवाश्म ईंधन के दहन से SOx और NOx उत्सर्जन से अम्लीय वर्षा के कारण जलमंडल के घटकों का अम्लीकरण हुआ है, जो आस-पास के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाता है।

अंत में, जब हम नदियों का रुख मोड़ते हैं और उन पर बांध बनाते हैं, तो हमारी गतिविधियाँ जलमंडल में पानी के प्राकृतिक प्रवाह को भी बदल देती हैं। दूसरे शब्दों में, यह आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाता है जो जल स्रोत पर निर्भर हैं।

महासागर (Ocean)

महासागर खारे पानी से युक्त वे स्थान हैं,  जो पृथ्वी के 71 प्रतिशत भाग पर फैले हुये हैं। महासागरों की औसत गहराई 12500 फुट (3,800 मीटर) है। 

संपूर्ण पृथ्वी पर पाँच महासागर हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- 

  • प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) 
  • अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean), 
  • हिंद महासागर (Indian Ocean), 
  • आर्कटिक महासागर ( Arctic Ocean) एवं 
  • अंटार्कटिक महासागर (Antarctic Ocean ) 

विश्व के महासागरों में जल का कुल आयतन लगभग 1.4 बिलियन क्यूबिक किलोमीटर है, जोकि पृथ्वी के कुल जल का 97 प्रतिशत है। शेष आयतन का 2 प्रतिशत अटांकर्टिक व ग्रीनलैंड में बर्फ की चादर के रूप में है, जबकि 1 प्रतिशत पृथ्वी पर ताजे पानी के रूप में पाया जाता है।

1. प्रशांत महासागर 

  • प्रशांत महासागर विश्व का सबसे बड़ा तथा सबसे गहरा महासागर है। इसका क्षेत्रफल 16,, 57,23,740 वर्ग कि.मी. है, जो पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल का 1/3 भाग है। उत्तर से दक्षिण की ओर बेरिंग जलडमरूमध्य से लेकर दक्षिण में अंटार्कटिक महाद्वीप की अडारे अंतरीप (Cap Adre) तक इसकी चौड़ाई 15,000 कि.मी. है। इस विशाल महासागर में 17.4 करोड़ घन मीटर से भी अधिक जल राशि है। 
  • विश्व की कुल 57 गर्तों में से 32 गर्तें प्रशांत महासागर में हैं। इसकी प्रमुख गर्ते हैं एल्युशियन गर्त, क्यूराइल गर्त, जापान गर्त, फिलीपाइन गर्त, मारियाना गर्तें (विश्व की सबसे गहरी 11020 मीटर गर्त), अटाकामा गर्त आदि। 
  • प्रशांत महासागर में लगभग 20,000 द्वीप पाए जाते हैं, जो सबसे अधिक हैं। इन द्वीपों में प्रमुख हैं- एल्यूशियन द्वीप, ब्रिटिश कोलंबिया द्वीप, चिली द्वीप, क्यूराइल, समूह, फिलीपाइन द्वीप समूह, इंडोनेशियाई द्वीप समूह तथा न्यूजीलैंड द्वीप।
  • प्रशांत महासागर में अनेक सीमांत समुद्र पाए जाते हैं, जैसे-बेरिंग सागर, ओखोटस्क सागर, जापान सागर, पीला सागर, पूर्वी चीन सागर, दक्षिणी चीन सागर, सेलीबीज सागर, अराफूरा सागर तथा तस्मान सागर आदि।

2. अटलांटिक   महासागर 

  • अंध महासागर का कुल क्षेत्रफल 8, 29,63800 वर्ग किलोमीटर है। इस प्रकार इसका क्षेत्रफल प्रशांत महासागर के क्षेत्रफल से आधा है और यह विश्व के 1/6 भाग पर फैला हुआ हैहैयह उत्तर में ग्रीनलैंड से लेकर दक्षिण में अंटार्कटिक महासागर तक फैला हुआ है। 
  • इसकी आकृति अंग्रेजी के अक्षर 'S' जैसी है। के इसके पूर्व में यूरोप एवं अफ्रीका तथा पश्चिम में उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका हैडेनमार्क जलडमरूमध्य द्वारा इसका सम्बंध आर्कटिक सागर से होता है। 
  • अंध या अटलांटिक महासागर में अन्य किसी महासागर की अपेक्षा अधिक महाद्वीपीय मग्नतट उपस्थित हैं। यह अंध महासागर के 13.3% भाग पर विस्तृत हैं। न्यूफाउंडलैंड तथा ब्रिटिश द्वीप समूह के निकट विश्व का सबसे महत्वपूर्ण मग्न तट ग्रांड बैंक तथा डॉगर बैंक के रूप में हैं।
  • चैलेंजर गर्त तथा आशा अंतरीप (केप ऑफ गुड होप) इसी महासागर में पाये जाते हैं। 
  • इसके प्रमुख बेसिन हैं- लेब्रेडोर बेसिन, केपवर्डे  बेसिन, ब्राजील बेसिन, अगुलहास बेसिन आदि। 
  • अंध महासागर में 19 गर्तें हैं, जिनकी गहराई 3000 फैदम (5500 मीटर) से अधिक है। इसकी सबसे गहरी गर्त प्यूर्टोरिको गर्त है, जो 5050 फैदम गहरी है। 
  • अंध महासागर के प्रमुख द्वीप हैं- ब्रिटिश द्वीप तथा न्यूफाउंडलैंड |
  • अंध महासागर के प्रमुख सीमांत सागर (Marginal Seas) हैं- भूमध्य सागर, उत्तरी सागर तथा बाल्टिक सागर । इनमें भूमध्य सागर सबसे बड़ा है। 
  • हडसन की खाड़ी तथा बेफिन की खाड़ी इसी सागर से संबंधित हैं। 
  • व्यापार की दृष्टि से यह विश्व का सबसे व्यस्तम महासागर है।

3. हिंद महासागर 

  • हिंद महासागर, प्रशांत तथा अंध महासागर की अपेक्षा बहुत ही छोटा है। यह भारत के दक्षिण में स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल 7,34,25,500 वर्ग कि.मी. है। यह महासागर उत्तर में दक्षिणी एशिया, पूर्व में हिंदेशिया व आस्ट्रेलिया तथा पश्चिम में अफ्रीका महाद्वीप से घिरा हुआ है। कर्क रेखा इस महासागर की उत्तरी सीमा है। 
  • हिंद महासागर के केवल 4.2% भाग पर ही महाद्वीपीय मग्नतट हैं, जबकि ये प्रशांत महासागर के 5.7% तथा अंघ महासागर के 13.3% भाग पर विस्तृत हैं। इसमें बहुत विविधता पाई जाती है। अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी में सबसे अधिक चौड़ा मग्नतट पाया जाता है। मेडागास्कर द्वीप भी मग्नतट पर ही खड़ा है। 
  • इस महासागर के चागोस कटक में मालदीव तथा लक्षद्वीप स्थित हैं। बंगाल की खाड़ी में अंडमान-निकोबार कटक है।
  • सुंडा गर्त, इसका सबसे महत्वपूर्ण गर्त है 
  • हिंद महासागर में अनेक प्रकार के बड़े द्वीप पाए जाते हैं। बड़े आकार के द्वीप मेडागास्कर (मालागासी) एवं श्रीलंका महाद्वीपीय टुकड़े हैं। सोकोत्रा, जंजीवार तथा कोमोरो जैसे छोटे द्वीप भी महाद्वीपीय द्वीप ही हैं। बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान-निकोबार द्वीप समूह म्यांमार के अराकानयोमा वलित पर्वत के जलमग्न भाग का ही उभरा हुआ भाग है। 
  • हिंद महासागर के सीमांत सागर हैं-अरव सागर, बंगाल की खाड़ी, लाल सागर तथा फारस की खाड़ी। 
  • वॉव-एल-मानदेव जलडमरूमध्य, लाल सागर को हिंद महासागर से अलग करता है।

विश्व के सबसे बड़े महासागर (क्षेत्रफल की दृष्टि से ) 

नामक्षेत्रफल (वर्ग कि.मी. में)
1. प्रशांत महासागर16,57,23,740
2. अटलांटिक महासागर8,29,63,800
3. हिंद महासागर7,34,25,500
4. दक्षिणी महासागर20,327,000
5. आर्कटिक सागर14,056,000

नोट : दक्षिणी महासागर को वर्ष 2000 में अंतर्राष्ट्रीय हाइड्रोग्रॉफिक संगठन द्वारा मान्यता प्रदान की गयी है अब यह विश्व का चौथा सबसे बड़ा महासागर है|

विश्व के सबसे बड़े महासागर एवं सागर ( गहराई की दृष्टि से

नामगहराई
(फुट में)(मीटर में )
1. प्रशांत महासागर35,82710,924
2. अटलांटिक महासागर30,2469,219
3. हिंद महासागर24,4607,455
4.कैरेबियन सागर22,7886,946
5. आर्कटिक सागर18,4565,625
6. दक्षिण चीन सागर16,4565,016
7. बेरिंग सागर15,6594,773
8. भूमध्यसागर15,1974,632
9. मैक्सिको की खाड़ी12,4253,787
10. जापान सागर12,2763,742

विश्व के सबसे बड़े सागर (क्षेत्रफल की दृष्टि से ) 

नाम(क्षेत्रफल वर्ग कि.मी. में)
1.दक्षिणी चीन सागर2,974,600
2.कैरेबियाई सागर2, 515,900
3.भूमध्यसागर2,510,000
4.बेरिंग सागर2,261,100
5.मैक्सिको की खाड़ी1,507,,600
6.अरब सागर1,498,320
7.ओखोटोस्क सागर1,392,100
8.जापान सागर1,012,900
9.हडसन की खाड़ी730,100
10.पूर्वी चीन सागर664,600
11.अंडमान सागर564,900
12.काला सागर507,900
13.लाल सागर453,000


महासगरों की लवणता 

  • महासागरों के जल में घुले हुये पदार्थ का भार एवं सागरीय जल के भार के बीच जो अनुपात होता है, उसे महासागरीय लवणता कहते हैं। खारेपन या लवणता का मुख्य स्रोत पृथ्वी है। 
  • समुद्री जल की औसत लवणता 35 प्रति हजार ग्राम है। सागरीय जल की लवणता को ग्राम प्रति हजार ग्राम से प्रदर्शित किया जाता है। 
  • महासागरीय लवणता का प्रमुख कारण उसमें सोडियम क्लोराइड की विद्यमानता है। इसके अलावा उसमें कुछ अन्य पदार्थ भी पाये जाते हैं। 
  • भूमध्य रेखा के पास अपेक्षाकृत कम लवणता पायी जाती है, जबकि आयनमंडल के क्षेत्र में लवणता सबसे अधिक है। ध्रुवीय तथा उपध्रुवीय क्षेत्र में लवणता सबसे कम होती है। 
  • गहराई बढ़ने पर महासागरीय लवणता में परिवर्तन होता है। सामान्य तौर पर जैसे-जैसे गहराई बढ़ती है, वैसे-वैसे लवणता में कमी आती है। लवणता को गर्म व ठंडी धाराएँ भी प्रभावित करती हैं। महासागरीय जल के प्रमुख संघटक निम्नलिखित हैं : 

लवणता के आधार पर विश्व के सागरों को निम्न तीन भागों में बाँटा गया है : 

1. सामान्य से कम लवणता वाले सागर : चीन सागर, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया सागर, आर्कटिक सागर, बेरिंग सागर तथा बाल्टिक सागर। 

2. सामान्य लवणता वाले सागर : कैरेवियन सागर व कैलीफोर्निया खाड़ी। 

3. सामान्य से अधिक लवणता वाले सागर : लाल सागर, फारस की खाड़ी व रूम सागर।

पृथ्वी के सबसे अधिक लवणता वाले तीन सागर इस प्रकार हैं- 

1. वॉन लेक (तुर्की) लवणता 330 प्रति हजार ग्राम, 

2. मृत सागर या डेड सी (जॉर्डन) लवणता 240 प्रति हजार ग्राम तथा 

3. ग्रेट सॉल्ट लेक (अमेरिका) - लवणता 220 प्रति हजार ग्राम।

ज्वार-भाटा (Tides)

  • समुद्र का जल-स्तर सदा एक-सा नहीं रहता। यह नियमित रूप से दिन में दो बार ऊपर उठता है तथा नीचे उतरता है। समुद्री जल स्तर के ऊपर उठने को ज्वार तथा नीचे उतरने को भाटा कहते हैं। 
  • ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का कारण चंद्रमा, सूर्य तथा पृथ्वी की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति है।
  • ज्वार-भाटा दो प्रकार के होते हैं- 1. उच्च ज्वार-भाटा एवं 2. निम्न ज्वारं भाटा। 
  • पूर्णिमा तथा अमावस्या के दिन सूर्य, पृथ्वी तथा चंद्रमा एक सीध में आ जाते हैं। ऐसी स्थिति में पृथ्वी पर चंद्रमा तथा सूर्य के सम्मिलित गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप इन दोनों दिनों में उच्चतम ज्वार का निर्माण होता है। 
  • शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी के दिन सूर्य तथा चंद्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाने वाली दिशाओं में स्थित होते हैं। सूर्य तथा चंद्रमा में गुरुत्वाकर्षण एक-दूसरे के विरुद्ध काम करते हैं। फलस्वरूप एक कम ऊँचाई वाले ज्वार का निर्माण होता है, जिसे निम्न ज्वार कहते हैं। 
  • ज्वार 12 घंटे 26 मिनट की अवधि के बाद आता है। 
  • ज्वार-भाटा के देरी से आने का कारण पृथ्वी की दैनिक गति तथा चंद्रमा द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा करना है।

विश्व की सबसे गहरी खाइयां या गर्त 

नाममहासागर (कि.मी. में)लंबाई (मीटर में)गहराई (मीटर में)निम्नतम बिंदु
1. मैरियाना गर्तपश्चिमी प्रशांत2,25011,776चैलेंजर गर्त
2. टोंगा- केरमाडेक गर्तदक्षिणी प्रशांत2,57510,850विटयाज 11 (टोंगा)
3.कुरिल कमचटका गर्तपश्चिमी प्रशांत2,25010,542-
4. फिलीपाइन गर्तपश्चिमी प्रशांत1,32510,539गालाथिया गर्त
5. ईजु-बोनिन गर्त या इजु - ओगाशावा गर्तपश्चिमी प्रशांत| 98109,780-
6. न्यू हेबरिज गर्तपश्चिमी प्रशांत3209,165उत्तरी गर्त
7. सोलोमन या न्यू ब्रिटेन गर्तदक्षिणी प्रशांत6409,140-
8. प्यूर्टो रिको गर्तपश्चिमी अटलांटिक8008,648मिलवाकी गर्त
9. चेप गर्तपश्चिमी प्रशांत5608,527-
10.जापान गर्तपश्चिमी प्रशांत1,6008,412-


महासागरीय धाराएँ 

  • महासागरों में बहने वाली धाराओं को महासागरीय धारा कहते हैं। महासागरीय धाराएँ दो प्रकार की होती हैं-ठंडी जल धाराएँ व गर्म जल धाराएँ। 
  • ठंडी जल धाराएँ वे धारायें हैं, जो उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर बहतीं हैं। गर्म जल धाराएँ, वे धाराएँ हैं, जो निम्न उष्ण कटिबंधीय अक्षांशों से उच्च शीतोष्ण व उपध्रुवीय अक्षांशों की ओर बहती हैं। 
  • जिस स्थान पर गर्म व ठंडी धारायें मिलती हैं, वहां कुहरा बनने के कारण जहाजों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है तथा उनके दुर्घटनाग्रस्त होने की काफी संभावनायें होती हैं।  न्यूफाउण्डलैंड व जापान के तट के निकट इसी प्रकार की स्थिति होती है। 
  • गर्म धाराएँ, ठंडे सागर की ओर एवं ठंडी धाराएँ, गर्म सागर की ओर प्रवाहित होती हैं। निम्न अक्षांशों में पश्चिमी व पूर्वी तटों पर क्रमशः ठंडी व गर्म जलधाराएँ बहती हैं। महासागरीय धाराएँ फेरेल के नियम का पालन करती हैं।
  • ग्रीनलैंड धारा व लेब्रेडोर धारा आर्कटिक महासागर से आने वाली ठंडी धाराएँ हैं, जो न्यूफाउंडलैंड के निकट गर्म गल्फ स्ट्रीम धारा से मिलती हैं, जिससे वहां मत्स्य उद्योग के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनती हैं। इसके विपरीत पेरू तट पर अलनीनो प्रभाव के कारण प्लैंकटन नष्ट हो जाते हैं। 

विभिन्न महासागरीय धाराएँ इस प्रकार हैं : 

1. प्रशांत महासागर की धाराएँ : ठंडी धाराएँ कमचटका या ओयाशियो या क्यूराइल धारापेरू धारा या हम्बोल्ट धारा, कैलिफोर्निया धारा । गर्म धाराएँ : उत्तर विषुवतीय जलधारा, दक्षिण विषुवतीय जलधारा, क्यूरोशियो धारा, पूर्वी आस्ट्रेलियाई धारा, अलनीनो धारा।

2. अटलांटिक महासागर की धाराएँ : ठंडी धाराएँ : फाकलैंड धारा, बेंगुएला धारा, लैब्रेडोर धारा, केनारी धारा एवं ग्रीनलैंड धारा । गर्म धाराएँ : अटाईल्स धारा, गल्फस्ट्रीम, फ्लोरिडा धारा, उत्तर विषुवतीय जलधारा, दक्षिण विषुवतीय जलधारा, उत्तरी अटलांटिक धारा। 

3. हिंद महासागर की धाराएँ : ठंडी धाराएँ : पश्चिमी आस्ट्रेलियाई धारा। गर्म धाराएँ : अगुलहास धारा, मोजांबिक धारा, मालागासी धारा, दक्षिण विषुवतीय जलधारा, द. - प. मानसूनी धारा, उ. पू. मानसूनी धारा।

अलनीनो एक जटिल तंत्र है, जिसमें महासागर तथा वायुमंडल की घटनायें सम्मिलित होती है। पाँच से दस वर्ष के अंतराल पर घटने वाली यह घटना पूर्वी प्रशांत महासागर में पेरू के तट के निकट गर्म समुद्री धारा के रूप में प्रकट होती है। इससे विश्व के विभिन्न भागों में सूखा, बाढ़, भारी वर्षा, सामान्य से अधिक गर्मी तथा सर्दी, चक्रवात आदि जैसी घटनायें होती हैं।

लानीनो अथवा लानीना : अलनीनो के विपरीत स्थिति होती है। इसमें मध्य तथा पश्चिमी प्रशांत महासागर में तापमान सामान्य से काफी नीचे गिर जाता है। इसका मुख्य कारण ग्रीष्म ऋतु में दक्षिणी प्रशांत माहासागर में उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुभार पेटी का सामान्य से बहुत अधिक प्रबल होना है। लानीनो बनने से चक्रवात बहुत आते हैं।

महासागरों में गहराई में जाने पर तापमान में कमी आती है। 370 - 730 मीटर के मध्य तापमान में गिरावट आती है, लेकिन उसके बाद अधिक गहराई में जाने पर तापमान में ज्यादा परिवर्तन नहीं होता। एशियाटिक तट के उत्तर-पश्चिम प्रशांत महासागर में सबसे अधिक तापमान परिवर्तन पाया जाता है।

सागर में लहरें उत्पन्न होती हैं। लहरों का निर्माण पवनों द्वारा सागर की सतह को ऊर्जा हस्तांतरण के कारण होता है। पवन के द्वारा सागर की सतह तरंगित होती है, जो पवन के दबाव में तरंगों में परिवर्तित हो जाती है। तरंगों के कारण ही सागर का जल आगे की ओर गति करता है।

वर्षा 

मेघ के भीतर जल कणों या हिम कणों के बनने व पृथ्वी पर बरसने की क्रिया को वर्षा कहते हैं। वर्षा तब होती है, जब मेघ के भीतर तीव्र गति से संघनन होने लगता है। वर्षा के मुख्यतः : पाँच प्रकार हैं- वर्षा, फुहार, सहिम वृष्टि, हिमपात व ओले गिरना। 

वर्षा में जल की बूदें गिरती हैं। जल की बूंद का निर्माण संघनन की क्रिया से होता है । फुहार में बूंदों का आकार अत्यंत छोटा एवं कम होता है। ज्यादा संघनन हो जाने पर हिमपात होता है। सहिम वर्षा में जल के साथ बर्फ भी गिरती है, जब वर्षा के साथ बर्फ के बड़े गोले गिरते हैं तो उसे ओलावृष्टि कहते हैं।

भौमजल 

भौमजल पृथ्वी के अंदर पाया जाता है। जल का एक प्रमुख स्रोत होता है। भौमजल वर्षा के जल से, झीलों व तालाबों के जल के आंतरिक रिसाव से या शैल निर्माण के समय जल के शैल में कैद हो जाने से प्राप्त है। 

भौमजल एवं धाराओं में बहता जल आपस में एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं । झरने, कुंए, ऊष्णोत्स, द्रोणी इत्यादि भौम जल के प्रमुख स्रोत हैं। नदियाँ • नदी पर्वतों से आती ताजे पानी की विशाल धारा है, जो किसी सुनिश्चित जलमार्ग से आती है व किसी समुद्र, झील या अन्य नदी में मिल जाती है। सभी नदियाँ जल के लिए वर्षा पर ही निर्भर होती हैं।

नदियाँ 

नदी पर्वतों से आती ताजे पानी की विशाल धारा है, जो किसी सुनिश्चित जलमार्ग से आती है व किसी समुद्र, झील या अन्य नदी में मिल जाती है। सभी नदियाँ जल के लिए वर्षा पर ही निर्भर होती हैं ।

विश्व की जलवायु 

विश्व के विभिन्न भागों में वर्षा, तापमान आदि में भिन्नता के कारण विभिन्न प्रकार की जलवायु पाई जाती हैइस भिन्नता के कारण विश्व को कई जलवायु प्रदेशों में बाँटा गया है। 

इस संबंध में जर्मनी के वैज्ञानिक डॉ. ब्लादिमिर कोपेन का 1918 में प्रस्तुत (1931 एवं 1936 में संशोधित) वर्गीकरण सबसे मान्य है। कोपेन के वर्गीकरण का आधार वनस्पतियों की विभिन्नता है।

विश्व की 10 सबसे लंबी नदियाँ 

नदीस्त्रोतमुहानालंबाई (कि.मी. में)
1. नीलविक्टोरिया झील, अफ्रीकाभूमध्य सागर6,693
2. अमेजनहिमनद - झील, पेरूअटलांटिक महासागर6,436
3. याण्टिसीक्यांगतिब्बत पठार, चीनचीन सागर6,378
4. ह्वांग-होक्युनलुन पर्वत का पूर्वी भाग, या यलो नदीचिली की खाड़ी5,463
5. ओब-इरटिसअल्टाई माउंट, रूसपश्चिमी चीन5,410
6. अमुरसिल्का तथा अरगुन नदियों का संगमओब की खाड़ी4,415
7. लेनारूसतातार जलडमरूमध्य4,399
8. कांगोलुआलावा और लुआपुलाअटलांटिक महासागर नदियों का संगम, लो.ग. कांगो4,373
9. मैकेन्जीफिनले नदी, ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडाब्युफोर्ट सागर4,241
10. मेकांगतिब्बतदक्षिण चीन सागर4,183


विश्व की प्रमुख जलसंधियां 

नामदेश/ स्थानकिनको जोड़ती है
डेनमार्क जलसंधिइंग्लैंड-फ्रांसउ. अटलांटिक- आर्कटिक महासागर
डोडॅनलीज जलसंधितुर्कीमारमरा सागर-एजियन सागर
बासफोरस जलसंधितुर्कीकालासागर - मारमरा सागर
जूआन डिफुका जलसंधिकनाडाप्रशांत महासागर
डेविस जलसंधिग्रीनलैंड- कनाडाबेफिन खाड़ी-अटलांटिक महासागर
बॉस जलसंधिआस्ट्रेलियातस्मान सागर- द. सागर
बेले द्वीप जलसंधिकनाडासेण्ट लॉरेन्स खाड़ी-अटलांटिक महा.
जिब्राल्टर जलसंधिस्पेन- मोरक्कोभूमध्यसागर- अटलांटिक महासागर
हारमुज जलसंधिओमान-ईरान-कनाडाफारस की खाड़ी-ओमान की खाड़ी
ओरण्टो जलसंधिइटली- अल्बानियाएड्रियाटिक सागर-एजियन सागर
कुक जलसंधिन्यूजीलैंड के उ. एवं द. द्वीपद. प्रशांत महासागर
बॉब-एल-मण्डव जलसंधियमन जिबूतीलाल सागर- अरब सागर
बेरिंग जलसंधिअलास्का रूसबैंरिंग सागर एवं चुकी सागर
बोनोफैसियी जलसंधिभूमध्य सागरकोर्सिका सार्डीनिया
सुगारू जलसंधिजापानजापान सागर-प्रशांत महासागर
लुजोन जलसंधिताइवान-लुजोन द्वीप (फिलीपीन्स)द. चीन- फिलीपींस सागर
नॉर्थ जलसंधिआयरलैंड, इंग्लैंडआयरिश सागर- अटलांटिक महासागर
टोकरा जलसंधिजापानपूर्वी चीन सागर- प्रशांत महासागर
यूकाटन जलसंधिमैक्सिको क्यूबामैक्सिको की खाड़ी-कैरीबियन सागर
पाक जलसंधिभारत - श्रीलंकामन्नार एवं बंगाल की खाड़ी

कोपेन ने विश्व की जलवायु को निम्न भागों में बाँटा है : 

1. विषुवत रेखीय जलवायुः इसे उष्णकटिबंधीय वर्षा वन जलवायु भी कहते हैं। यह जलवायु क्षेत्र विषुवत रेखा के दोनों ओर 10° उत्तरी तथा 10° दक्षिणी अक्षांशों तक पायी जाती है। यहाँ उच्च तापमान एवं उच्च वर्षा पायी जाती है। यहाँ इसे डोल ड्रम कहते हैं। इस जलवायु के मुख्य क्षेत्र दक्षिण अमेरिका का अमेजन बेसिन, अफ्रीका का जायरे बेसिन व गिनी का तट, ईस्टइंडीज तथा एशिया के कुछ अन्य तटीय क्षेत्र हैं। 

2. उष्णकटिबंधीय सवाना जलवायु (सूडान तुल्य) : इसे उष्ण कटिबंधीय धारा के मैदानों की जलवायु भी कहते हैं। यह जलवायु दोनों गोलार्द्धों में 50 से 15° अक्षांशों के बीच पाई जाती है। यह जलवायु दक्षिण अमेरिका तथा अफ्रीका में पाई जाती है।

3. उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु ( भारत तुल्य ) : यह जलवायु प्रदेश दोनों गोलार्द्ध में 50 से 25° अक्षांशों के बीच पाया जाता है। यहाँ अधिकांश वर्षा मानसूनी पवनों द्वारा होती है। यहाँ अधिकांश वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है और शीत ऋतु सूखी होती है। शीत ऋतु में उत्तर-पूर्व से लौटती हुई मानसूनी पवनें तमिलनाडु के तट पर वर्षा करती हैं। यह जलवायु मुख्य रूप से दक्षिणी तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया में पाई जाती है। 

4. उष्णकटिबंधीय शुष्क अथवा मरुस्थलीय जलवायु : यह जलवायु विषुवत रेखा के दोनों ओर 150 से 300 अक्षांशों के बीच महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में पाई जाती हैइसके अंतर्गत एशिया के थार, सिंध, बलूचिस्तान, अरब प्रायद्वीप, अफ्रीका का सहारा तथा ऑस्ट्रेलिया के मरुस्थलीय भाग आते हैं। विश्व का सबसे गर्म स्थान अल-अजीजिया इसी जलवायु प्रदेश में स्थित है। 

5. भूमध्य सागरीय जलवायु : यह जलवायु मुख्यतः भूमध्य सागर के तटीय भागों में पाई जाती है, जिसके कारण इसे भूमध्य सागरीय जलवायु कहते हैं। यहाँ शीत ऋतु में वर्षा होती है। यह जलवायु भूमध्यसागर के तटीय प्रदेशों, जैसे-तुर्की, सीरिया, दक्षिणी फ्रांस, दक्षिणी इटली, यूनान, पश्चिमी इजराइल, अल्जीरिया आदि में पायी जाती है। 

6. समशीतोष्ण कटिबंधीय महाद्वीपीय (स्टेपी तुल्य ) जलवायु : यह जलवायु महाद्वीपों के आंतरिक भागों में 20° से 40° अक्षांशों के बीच दोनों गोलार्द्ध में पाई जाती है। इसके अंतर्गत ऑस्ट्रेलिया का मर्रे - डार्लिंग बेसिन, दक्षिण अफ्रीका का वेल्ड प्रदेश, संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ प्रदेश, मैक्सिको तथा यूरोप आदि आते हैं।

7. पश्चिमी यूरोप तुल्य जलवायु : इस जलवायु का विस्तार 350 से 60° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों के बीच है। यह जलवायु मुख्यतः महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में पाई जाती है। 

8. समशीतोष्ण कटिबंधीय पूर्वी तटीय अथवा चीन तुल्य जलवायु : यह जलवायु दोनों गोलार्द्ध में 250 से 40° अक्षांशों के बीच महाद्वीपों के पूर्वी भागों में पाई जाती है। इसके अंतर्गत दक्षिण-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण पूर्वी ब्राजील, चीन, जापान, कोरिया, यूके, दक्षिण अफ्रीका का दक्षिणी भाग, दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया तथा डेन्यूब बेसिन सम्मिलित हैं। 

9. मध्य अक्षांशीय आंतरिक महाद्वीपीय अथवा ठंडी शीतोष्ण महाद्वीपीय जलवायुः इसके अंतर्गत उत्तर अमेरिका में ग्रेट बेसिन क्षेत्र, यूरोप एवं एशिया का तारिम बेसिन, गोबी मरुस्थल, जुंगारिया बेसिन, रूसी तुर्किस्तान व ईरान तथा दक्षिण अमेरिका व में पैटागोनिया व दक्षिणी अर्जेन्टीना के कुछ भाग आते हैं। साइबेरिया में इसी प्रकार की जलवायु पायी जाती है। 

10. सेंट लॉरेंस तुल्य जलवायु : अमेरिका में सेंट लॉरेंस नदी के बेसिन में स्थित होने के कारण इसे सेंट लॉरेंस तुल्य जलवायु के नाम से भी पुकारा जाता है। यह जलवायु महाद्वीपों के पूर्वी भागों में 450 से 65° अक्षांशों के मध्य पाई जाती है। यह जलवायु उत्तरी अमेरिका के उत्तरी-पूर्वी भाग में पाई जाती है। 

11. ध्रुवीय जलवायु : ध्रुवीय इलाकों में पाई जाने वाली यह जलवायु बहुत ठंडी होती है। यह निम्नलिखित दो प्रकार की होती है (क) टुंड्रा जलवायु एवं (ख) हिमशिखर जलवायु । टुंड्रा जलवायु, टुंड्रा क्षेत्र में एवं, जबकि हिमशिखर जलवायु, अंटार्कटिका क्षेत्र में पायी जाती है।

12. उप-आर्कटिक अथवा टैगा जलवायु : यह उत्तर अमेरिका के अलास्का व कनाडा तथा मध्य रूस तथा साइबेरिया में पायी जाती है। इस जलवायु को बोरियल जलवायु भी कहते हैं। इसमें शीत ऋतु अत्यंत ठंडी होती है।

आज के इस पोस्ट में हमने पृथ्वी के जलमंडल के बारे में जाना । जैसे- विश्व के सभी महासागर, सागर, जल क्षेत्र , प्रमुख जलसन्धियाँ, खाई या गर्त , नदियाँ इत्यादि। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पृथ्वी जलमंडल से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं।

उम्मीद करता हूँ कि यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगा

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