Tuesday, November 19, 2024

सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन (Social Religious Reform Movement)

सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन (Social Religious Reform Movement)


                                                                    सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन 

                                            (Social Religious Reform Movement)

                                                       By :-- Nurool Ain Ahmad

सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन (Social Religious Reform Movement)

  

सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन (Social Religious Reform Movement)-

    • सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन के कारण (Reasons for Social Religious Reform Movement)-


    सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन के कारण (Reasons for Social Religious Reform Movement)-

    • 1. धार्मिक आडंबर एवं सामाजिक कुरीतियां (Religious rituals and social evils)
    • 2. सामाजिक असमानता एवं महिलाओं की दयनीय स्थिति (Social inequality and pathetic condition of women)
    • 3. यूरोपीय समाज से संपर्क (Contact with European Society)
    • 3. अंग्रेजी शिक्षा (English Education)
    • 4. ईसाई मिशनरीज (Christian Missionaries)- सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्ष
    • 5. अंग्रेजी व यूरोपीय कानून (British and European Law)
    • 6. यातायात एवं संचार के साधन (Means of transportation and communication)
    • 7. मध्यम वर्ग का उदय (Rise of the middle class)
    • 8. समाचार पत्र व पुस्तकों का प्रकाशन (Publication of newspapers and books)
    • 9. इतिहास का पुनर्लेखन (Rewriting of History)
    • 10. स्वप्रेरणा (Self Motivation)
    • 11. राष्ट्रवाद का उदय (Rise of Nationalism)



    ब्रह्म समाज (Brahmo Samaj)-

    • ब्रह्म समाज (Brahmo Samaj) की स्थापना में द्धारिका नाथ टैगोर राजा राममोहन राय के प्रमुख सहयोगी थे।
    • 1839 ई. में देवेंद्र नाथ टैगोर ने तत्वबोधिनी सभा (Tatva Bodhini Sabha) की स्थापना की।
    • पत्रिका- तत्वबोधिनी (Tatva Bodhini)
    • संपादक- अक्षय कुमार दत्त (Akshay Kumar Dutt)
    • 1843 ई. में देवेंद्र नाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज संभाला।
    • चाराचंद चक्रवर्ती ब्रह्म समाज के प्रथम सचिव थे।
    • केशव चंद्र सेन ब्रह्म समाज में शामिल हुए तथा केशव चंद्र सेन को ब्रह्म समाज में आचार्य नियुक्त किया गया।
    • कालांतर में केशव चंद्र सेन ईसाई धर्म से प्रभावित हो गये थे एवं ब्रह्म समाज में कुछ रिति रिवाज या आडम्बर करना प्रारम्भ कर दिये थे।
    • 1865 ई. में केशव चंद्र सेन को ब्रह्म समाज से निकाल दिया गया तथा केशव चंद्र सेन ने भारतीय ब्रह्म समाज की स्थापना की। अर्थात् ब्रह्म समाज दो भागों में विभाजित हो गया था। जैसे-
    • 1. आदि ब्रह्म समाज
    • 2. भारतीय ब्रह्म समाज


    1. आदि ब्रह्म समाज-

    • संस्थापक- देवेंद्र नाथ टैगोर

    • धर्म- सनातन धर्म या हिन्दू धर्म से संबंधित


    2. भारतीय ब्रह्म समाज  (Bhartiya Brahmo Samaj)-

    • संस्थापक- केशव चंद्र सेन

    • धर्म- धर्म नहीं (किसी धर्म से संबंधित नहीं है अर्थात् सभी धर्मों को एक समान माना)


    केशव चंद्र सेन (Keshav Chandra Sen)-

    • 1872 ई. में केशव चंद्र सेन के प्रयासों से "Native Marriage Act" पारित हुआ जिसमें विवाह की आयु 14 वर्ष (लड़की) तथा 18 वर्ष (लड़का) तय की गई।
    • केशव चंद्र सेन ने अपनी नाबालिग बेटी की शादी कूच बिहार (Cooch Behar) के राजा के साथ कर दी थी। जिससे भारतीय ब्रह्म समाज में विभाजन हो गया था।
    • भारतीय ब्रह्म समाज से अलग होकर साधारण ब्रह्म समाज बना।


    साधारण ब्रह्म समाज-

    • भारतीय ब्रह्म समाज से अलग होकर साधारण ब्रह्म समाज बना।
    • साधारण ब्रह्म समाज (Sadharan Brahmo Samaj) के संस्थापक-
    • (I) आनन्द मोहन बोस (Anand Mohan Bose)
    • (II) सुरेन्द्र नाथ बनर्जी (Surendra Nath Banerjee)

    • (III) द्वारिका नाथ गांगुली (Dwarika Nath Ganguly)


    केशव चन्द्र सेन (Keshav Chandra Sen)-

    • समाचार पत्र- Indian Mirror (केशवचन्द्र सेन का समाचार पत्र)
    • संगठन (Organization)- केशवचन्द्र सेन के संगठन
    • (I) मैत्री सेन या संगत सभा (Maitri Sen/ Sangat Sabha)
    • (II) टेबरनिकल ऑफ न्यू डिस्पेंसन (Tabernacle of New Dispensation)
    • (III) इंडियन रिफॉर्म एसोसिएशन (Indian Reform Association)


    वेद समाज (Ved Samaj)-

    • स्थापना (Establishment)- 1864, चैन्नई या मद्रास में
    • वेद समाज को "दक्षिण भारत का ब्रह्म समाज" (Brahmo Samaj of South India) कहा जाता है।
    • वेद समाज की स्थापना केशवचन्द्र सेन के प्रयासों से हुई थी।
    • संस्थापक (Founder)- वेद समाज के संस्थापक
    • (I) श्री धरलु नायडू (Shri Dharalu Naidu)
    • (II) विश्वनाथ मुदालियर (Vishwanath Mudaliar)


    प्रार्थना समाज (Prarthana Samaj)-

    • स्थापना (Establishment)- 1867 ई., बॉम्बे (महाराष्ट्र)
    • महाराष्ट्र में केशवचन्द्र सेन के प्रयासों से प्रार्थना समाज की स्थापना हुई थी।
    • संस्थापक (Founder)- प्रार्थना समाज के संस्थापक
    • (I) आत्माराम पाण्डुरंग (Atmaram Pandurang)
    • (II) जस्टिस महादेव गोविन्द रानाडे (Justice Mahadev Govind Ranade)
    • (III) आर.जी. भण्डारकर (R.G. Bhandarkar)
    • (IV) चन्द्रावरकर (Chandravarkar)
    • प्रार्थना समाज को "दक्कन का ब्रह्म समाज" कहा जाता है।
    • प्रार्थना समाज की मुख्य शिक्षा एक ईश्वर की प्रार्थना है।


    महादेव गोविन्द रानाडे (Mahadev Govind Ranade)-

    • गोखले के राजनीतिक गुरु थे। (गांधीजी के राजनीतिक गुरु गोखले थे।)
    • महादेव गोविन्द रानाडे को "महाराष्ट्र का सुकरात" (Socrates of Maharashtra) कहा जाता है।
    • महादेव गोविन्द रानाडे बॉम्बे हाइ कोर्ट में न्यायाधीश थे।
    • संगठन (Organization)- महादेव गोविन्द रानाडे के संगठन
    • (I) विधवा विवाह संघ (Widow Marriage Association)- 1867 ई.
    • (II) पूना सार्वजनिक सभा (Poona Sarvajanik Sabha)- 1871 ई.
    • (III) दक्कन एजुकेशन सोसायटी (Deccan Education Society)- 1884 ई.
    • (IV) नेशनल सोशल कॉन्फ्रेंस (National Social Conference)- 1887 ई.
    • दक्कन एजुकेशन सोसायटी ने पूणे में फर्ग्यूसन कॉलेज (Ferguson College, Pune) की स्थापना की।
    • पुस्तक (Book)- एक आस्तिक की धर्म में आस्था (A Believer's Faith in Religion)
    • दक्कन एजुकेशन सोसायटी बाद में फर्ग्यूसन कॉलेज कहलाई।
    • तिलक (Tilak), गोखले (Gokhale) एवं गोपाल गणेश आगरकर (Gopal Ganesh Agarkar) तीनों फर्ग्यूसन कॉलेज के सहसंस्थापक थे।
    • उद्देश्य (Objective)- महादेव गोविन्द रानाडे के उद्देश्य
    • (I) जाति व्यवस्था का विरोध (Opposition to Caste System)
    • (II) बाल विवाह का विरोध (Opposition to Child Marriage)
    • (III) स्त्री शिक्षा का समर्थन (Support to Women's Education)
    • (IV) विधवा विवाह का समर्थन (Support to Widow Marriage)
    • महादेव गोविन्द रानाडे की पत्नी रमाबाई रानाडे ने पूना सेवा सदन की स्थापना की थी


    थियोसोफिकल सोसायटी (Theosophical Society)-

    • स्थापना- 1875 ई., न्यूयॉर्क में
    • संस्थापक-
    • (I) मैडम H.P. ब्लावत्सकी (Madam H.P. Blavatsky)
    • (II) कर्नल H.S. अल्कॉट (Colonel H.S. Alcott)
    • 1882 ई. में अडयार (मद्रास) को अपना मुख्यालय बनाया।
    • हिन्दू (Hinduism), बौद्ध (Buddhism) व पारसी धर्म (Zoroastrian Region) या संस्कृति में विश्वास रखते हैं।
    • एनी बिसेन्ट (Annie Besant) 1893 ई. में थियोसोफिकल सोसायटी के सदस्य के रूप में भारत आयी थी।
    • 1907 ई. में एनी बिसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष बनी थी।
    • एनी बिसेन्ट भी कर्मफल सिद्धांत, पुनर्जन्म एवं देवी-देवताओं में विश्वास करती थी।
    • 1898 ई. में एनी बिसेन्ट ने बनारस (Banaras) में हिन्दू कॉलेज (Hindu College) की स्थापना की।
    • यह कॉलेज 1916 ई. में मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) बन गया था।
    • BHU Full Form = Banaras Hindu University
    • BHU का पूरा नाम = बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय
    • एनी बिसेन्ट ने एक भारतीय 'जिद्दू कृष्णमूर्ति' (Jiddu Krishna Murti) को गोद लिया तथा उसे अवतार घोषित कर दिया था।


    एनी बिसेन्ट के समाचार पत्र (Newspapers of Annie Besant)-

    • (I) कॉमन वील (Commonweal)

    • (II) न्यू इंडिया (New India)


    हेनरी विवियन डेरोजियो (Henry Vivian Derozio)-

    • हेनरी विवियन डेरोजियो कलकत्ता के हिन्दू कॉलेज में प्रोफेसर था।
    • हेनरी विवियन डरोजियो ने स्वतंत्र चिन्तन (Rational Thinking) एवं तर्क शक्ति (Reasoning Power) को बढ़ावा दिया था।
    • हेनरी विवियन डरोजियो ने "यंग बंगाल आंदोलन" (Young Bengal Movement) चलाया था।
    • 1831 ई. में 22 वर्ष की आयु में हैजा (Cholera) से हेनरी विवियन डेरोजियो की मृत्यु हो गयी थी।
    • सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने हेनरी विवियन डेरोजियो के अनुयायी को "सभ्यता के अग्रदूत" (Forerunner of Civilization) तथा "हमारी जाति का पिता" (Father of our Race) कहा है।
    • हेनरी विवियन डेरोजियो के अनुयायियों को डेरोजियनस कहा जाता है।


    हेनरी विवियन डेरोजियो के संगठन (Organization of Henry Vivian Derozio)-

    • (I) सोसायटी फोर एक्वीजिशन ऑफ जनरल नॉलेज (Society for Acquisition of General Knowledge)
    • (II) एकेडेमिक एसोसिएशन (Academic Association)
    • (III) डिबेटिंग क्लब (Debating Club)
    • (IV) एंग्लो इंडियन हिन्दू एसोसिएशन (Anglo Indian Hindu Association)
    • (V) बंग हित सभा (Bang Hit Sabha)


    हेनरी विवियन डेरोजियो के समाचार पत्र (Newspapers of Henry Vivian Derozio)-

    • (I) ईस्ट इंडिया (East India)
    • (II) इंडिया गजट (India Gazette)
    • (III) कलकत्ता साहित्य गजट (Calcutta Sahitya Gazette)


    ज्योतिबा फूले (Jyotiba Phule)-

    • संगठन (Organization)- सत्य शोधक समाज (Satya Shodhak Samaj)
    • समाचार पत्र (Newspaper)- गुलामगिरी (Gulamgiri)
    • ज्योतिबा फूले ने अपनी पत्नी सावित्री बाई फूले के साथ मिलकर दलित बच्चों के लिए स्कूल खोले थे।
    • ज्योतिबा फूले ने शिवाजी (Shivaji) की जावनी लिखी थी।
    • ज्योतिबा फूले ने अस्पृश्यता, सामाजिक भेदभाव, वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था का विरोध किया एवं अपना जीवन शोषित वर्ग के उत्थान के लिए लगाया।
    • ज्योतिबा फूले का जन्म पूना के माली परिवार में हुआ था।


    गोपाल हरि देशमुख (Gopal Hari Deshmukh)-

    • संगठन (Organization)- परमहंस मंडली (Paramhans)
    • समाचार पत्र (Newspaper)- लोकहितवादी (Lokhitwadi)
    • लोकहितवादी पत्रिका के कारण गोपाल हरि देखमुख को लोकहितवादी काका (Lokhitwadi Kaka) कहा जाता था।
    • परमहंस मंडली भी समाज कल्याण का कार्य करता था।


    पण्डिता रमाबाई (Pandita Ramabai)-

    • संस्था- शारदा सदन (बॉम्बे)

    • शारदा सदन संस्था महिलाओं के लिए कार्य करती थी।


    अलीगढ़ आंदोलन  (Aligarh Movement)-

    • अलीगढ़ आंदोलन सर सैय्यद अहमद खान (Sir Syed Ahmed Khan) ने चलाया था।
    • सर सैय्यद अहमद खान ने मुसलमानों में आधुनिकीकरण (Modernization) लाने का प्रयास किया इसलिए अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया व अंग्रेजी सरकार के साथ सहयोग किया था।
    • 1857 की क्रांति में सर सैय्यद अहमद खान ने अंग्रेजों का साथ दिया था।
    • सर सैय्यद अहमद खान की पुस्तक- "असबाब-ए-बगावत-ए-हिन्द"
    • असबाब-ए-बगावत-ए-हिन्द ऊर्दु भाषा में लिखी गई पुस्तक है।
    • असबाब-ए-बगावत-ए-हिन्द भारतीय भाषा में 1857 क्रांति पर लिखी गई पहली पुस्तक है।
    • सर सैय्यद अहमद खान ने कुरान की वैज्ञानिक व्याख्या की। (Scientific Interpretation of Quran)
    • सर सैय्यद अहमद खान ने "पीर मुरीद प्रथा" (Pir-Murid System) का विरोध किया।
    • सर सैय्यद अहमद खान ने बाइबिल पर टीका (Commentary on Bible) लिखी थी।


    सर सैय्यद अहमद खान के संगठन (Organization)-

    • (I) मुहम्मडन लिटरेरी एसोसिएशन (Muhammadan Literary Association)- 1863 ई.
    • (II) साइंटिफिक सोसायटी (Scientific Society)- 1864 ई.
    • (III) मोहम्मडन एंग्लो-ओरियन्टल कॉलेज (Mohammedan Anglo-Oriental College)- 1875 ई.
    • मोहम्मडन एंग्लो-ओरियन्टल कॉलेज ही 1920 ई. में अलीगढ़ मुस्लिम विश्विविद्यालय (Aligarh Muslim University) बना था।
    • 1888 ई. में सर सैय्यद अहमद खान ने बनारस के राजा शिवप्रसाद के साथ मिलकर "राजभक्त एसोसिएशन" (Rajbhakt Association) नामक पार्टी बनाई।
    • राजभक्त एसोसिएशन क्रांगेस की विरोधी संस्था थी।


    सर सैय्यद अहमद खान के समाचार पत्र (Newspaper)-

    • (I) तहजीब उल अखलाक (Tehzeeb-ul-Akhlaq)
    • (II) राजभक्त मुसलमान (Rajbhakt Musalman)
    • सर सैय्यद अहमद खान प्रारम्भ में हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे तथा हिन्दू व मुस्लमानों को एक सुन्दर दुल्हन की दो आँखे बताते थे लेकिन बाद में कहा कि हिन्दू व मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र है।
    • सर सैय्यद अहमद खान ने द्विराष्ट्र का सिद्धांत दिया।
    • थियोडोर बेक (Theodore), मॉरीसन (Morrison) एवं आर्चबोल्ड (Archbold) अलीगढ़ कॉलेज के प्रिसिंपल थे। इन्होंने अलीगढ़ आंदोलन को अंग्रेजों के पक्ष में झुकाया था।


    W.W. हंटर (W.W. Hunter)-

    • W.W. हंटर की पुस्तक- इंडियन मुसलमान


    देवबंद आंदोलन (Deoband Movement)-

    • 1867 ई. में उत्तर प्रदेश के देववंद से देवबंद आंदोलन की शुरुआत हुई थी।
    • 1857 ई. की क्रांति में शामिल लोगों ने देवबंद आंदोलन शुरू किया था।
    • इन्होंने आधुनिकीकरण (Modernization) का विरोध किया था।
    • संस्थापक-
    • (I) रशीद अहमद गंगोही (Rashid Ahmed Gangohi)
    • (II) मुहम्मद कासिम ननोत्वी (Muhammad Qasim Nanotvi)
    • उद्देश्य (Objective)-
    • (I) इस्लाम के मूल स्वरूप को स्थापित कराना। (Establishing Islam in its original form)
    • (II) अच्छे धार्मिक शिक्षक तैयार करना। (To prepare good religious teachers)
    • देवबंद आंदोलन, अलीगढ़ आंदोलन का विरोध करता था।
    • देवबंद आंदोलन कांग्रेस का समर्थन करता है।
    • महमूद उल हसन ने देवबंद आंदोलन को राजनीतिक संस्था बनाया।
    • देवबंद को दार उल उलूम देवबंद (Dar-ul-Uloom Deoband) कहा जाता है।


    शिबली नुमानी (Shibli Numani)-

    • शिबली नुमानी पहले अलीगढ़ आंदोलन से जुड़े हुए थे लेकिन बाद में देवबंद आंदोलन से जुड़ गये थे।


    वहाबी आंदोलन (Wahhabi Movement)-

    • वहाबी आंदोलन अरब में अब्दुल वहाब द्वारा शुरू किया गया था।
    • वहाबी आंदोलन भारत में सैय्यद अहमद बरेलवी ने लोकप्रिय किया था।
    • उद्देश्य (Objective)- दार-उल-हर्ब (Dar-ul-Harb) को दार-उल-इस्लाम (Dar-ul-Islam) में बदलना।
    • दार उल-हर्ब (Dar-ul-Harb) = घर गैर-मुसलमान (House of Non Muslim)
    • वहाबी आंदोलन प्रारम्भ में पंजाब के सिखों के खिलाफ था।
    • पंजाब के अंग्रेजी  या ब्रिटिश साम्राज्य में विलय के बाद वहाबी आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ हो गया था।
    • वहाबी आंदोलन हिंसक (Violent) एवं साम्प्रदायिक (Communal) आंदोलन था।
    • कालांतर में पूर्वी भारत में वहाबी आंदोलन का मुख्य केंद्र पटना था।
    • वहाबी आंदोलन में पूर्वी भारत (पटना) के मुख्य नेता-
    • (I) हाजी करामात अली (Haji Karamat Ali)
    • (II) शरीयत-उल्ला खाँ (Shariat-Ullah Khan)


    अहमदिया आंदोलन (Ahmadiyya Movement) या कादियानी आंदोलन (Qadiani Movement)-

    • 1889 ई. में अहमदिया या कादियानी आंदोलन गुलाम अहमद ने कादिया (पंजाब) से शुरू किया था।
    • गुलाम अहमद ने स्वयं को पैगम्बर तथा भगवान श्री कृष्ण का अवतार घोषित किया था।
    • गुलाम अहमद की पुस्तक- बहरीन-ए-अहमदिया (Bahrain-e-Ahmadiya)
    • इस समुदाय या सम्प्रदाय के लोग मिर्जा गुलाम अहमद को नवी या पैगम्बर मानते हैं।
    • यह सम्प्रदाय मोहम्मद साहब को अंतिम पैगम्बर नहीं मानता है इसलिए इस्लाम के अन्य सम्प्रदाय इन्हें काफीर कहते हैं।


    रहनुमा-ए-माज्दा-ए-सभा (Rahnuma-e-Majda-e-Sabha)-

    • रहनुमा-ए-माज्दा-ए-सभा का संबंध पारसी धर्म से है।
    • संस्थापक-
    • (I) फरदीन जी नौरोजी (Fardeen Ji Naoroji)
    • (II) दादा भाई नौरोजी (Dadabhai Naoroji)
    • (III) बहराम जी मालाबारी (Bahram Ji Malabari)
    • (IV) एस.एस. बंगाली (S.S. Bengali)
    • समाचार पत्र (Newspaper)- रास्त या राफ्त गोफ्तार (Rast/Raft Goftar)- दादा भाई नौरोजी का समाचार पत्र
    • इन्होंने महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment) का प्रयास किया।


    महिला उत्थान (Women Empowerment)-

    • (I) विधवा पुनर्विवाह (Widow Remarriage)
    • (II) बालिका शिक्षा (Girl Education)
    • (III) बाल विवाह (Child Marriage)
    • (IV) सम्मति आयु अधिनियम (Age of Consent Act)


          (I) विधवा पुनर्विवाह (Widow Remarriage)-

          • 1850 ई. में विष्णु शास्त्री पंडित ने महाराष्ट्र में विधवा पुनर्विवाह समाज की स्थापना की।
          • 1852 ई. में करसोन दास मलजी ने गुजराती भाषा में "सत्य प्रकाश" (Satya Prakash) नामक पत्रिका निकाली जो विधवा-विवाह का समर्थन करती थी।
          • 1878 ई. में वीर शैलिंगम ने "राजमुन्द्री सोशल रिफॉर्म" (Rajahmundry Social Reform) नामक संगठन की स्थापना की जो विधवा-विवाह को बढ़ावा देता था।
          • 1899 ई. में डी.के कर्वे (D.K. Karve) ने विधवा आश्रम (Widow Ashram) की स्थापना की।


          (II) बालिका शिक्षा (Girl Education)-

          • 1819 ई. में ईसाई मिशनरियों ने कलकत्ता में "तरुण स्त्री सभी" (Tarun Stree Sabha) की स्थापना की।
          • 1849 ई. में जे.ई.डी. बेथून (J.E.D. Bethune) ने कलकत्ता में पहले बालिका विद्यालय की स्थापना की थी।
          • ईश्वर चन्द्र विद्यासागर 35 से अधिक बालिका विद्यालयों से जुड़े हुये थे।
          • 1906 ई. में डी.के. कर्वे (D.K. Karve) ने बॉम्बे में महिला कॉलेज की स्थापना की थी।
          • 1916 ई. में डी.के. कर्वे (D.K. Karve) ने बॉम्बे में भारत के प्रथम महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।
          • डी.के. कर्वे (D.K. Karve) को महिला उत्थान के लिए भारत रत्न पुरस्कार दिया गया था।
          • केशवचन्द्र सेन, फातिमा शेख, रुकैया सखावत हुसैन, ज्योतिबा फूले और सावित्री बाई फूले ने भी बालिका शिक्षा के प्रयास किये थे।


          (III) बाल विवाह (Child Marriage)-

          • 1929 ई. में बाल विवाह रोकने के लिए हरविलास शारदा के प्रयासों से "शारदा अधिनियम, 1929" (Sharda Act, 1929) बना।

          • शारदा अधिनियम, 1929 में विवाह की न्यूनतम आयु लड़की के लिए 14 वर्ष व लड़के के लिए 18 वर्ष तय की गई।


          (IV) सम्मति आयु अधिनियम (Age of Consent Act)-

          • 1860 ई. में ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयासों से सम्मति आयु अधिनियम पारित हुआ।
          • सम्मति आयु अधिनियम, 1860 में विवाह की न्यूनतम आयु लड़की के लिए 10 वर्ष तय की गई।
          • 1891 ई. में बहरामजी मालाबरी के प्रयासों से सम्मति आयु अधिनियम, 1891 (Age of Consent Act 1891) पारित हुआ।
          • सम्मति आयु अधिनियम, 1891 में विवाह की न्यूनतम आयु लड़की के लिए 12 वर्ष तय की गई।


          धर्म सुधार आंदोलन की प्रकृति (Nature of Religious Reform Movement)-

          • (I) धर्म सुधार आंदोलन आधुनिकतावादी (Modernist) था।
          • (II) धर्म सुधार आंदोलन पुनरुत्थानवादी (Revivalists) था।
          • (III) धर्म सुधार आंदोलन रुढिवादी (Orthodox) था।
          • (IV) धर्म सुधार आंदोलन के दौरान अनेक संगठनों की स्थापना की गई इस प्रकार धर्म सुधार आंदोलन संगठनात्मक (Organizational) था।
          • (V) वहाबी आंदोलन के अतिरिक्त धर्म सुधार आंदोलन अहिंसात्मक प्रकृति (Non-Violent Nature) का था।
          • (VI) धर्म सुधार आंदोलन की प्रकृति मध्यम वर्गीय (Middle Class Nature) थी। 


          धर्म सुधार आंदोलन के प्रभाव (Effects of Religious Reform Movement)-

          • (I) धर्म सुधार आंदोलन के सकारात्मक प्रभाव (Positive Effects of Religious Reform Movement)
          • (II) धर्म सुधार आंदोलन के नकारात्मक प्रभाव (Negative Effects of Religious Reform Movement)


          (I) धर्म सुधार आंदोलन के सकारात्मक प्रभाव (Positive Effects of Religious Reform Movement)-

          • (A) हमारा धर्म आडम्बरों (Ostentation) से मुक्त हुआ तथा सामाजिक कुरीतियाँ (Social Evils) दूर हुई।
          • (B) महिलाओं से संबंधित सामाजिक कुरीतियाँ दूर हुई जिससे महिला सशक्तीकरण (Women Empowerment) को बढ़ावा मिला।
          • (C) सामाजिक भेदभाव (Social Discrimination) कम होने से सामाजिक एकता (Social Unity) बढ़ी जिससे राष्ट्रीय एकता (National Unity) को मजबूती मिली।
          • (D) समाज सुधारकों द्वारा अनेक स्कूल व कॉलेज की स्थापना की गई इससे शिक्षा का प्रचार प्रसार हुआ तथा आधुनिकता आई।
          • (E) समाज सुधारकों ने अनेक पुस्तकें लिखी एवं समाचार पत्र निकाले जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression) को बल मिला।
          • (F) धर्म सुधार आंदोलन में प्राचीन भारतीय इतिहास का गुणगान किया गया जिससे भारतीयों का आत्मविश्वास (Confidence) बढ़ा जो राष्ट्रीय आंदोलन में काम आया।
          • (G) धर्म सुधार आंदोलन में हमने अन्याय (Injustice) व अत्याचार (Atrocities) खिलाफ संघर्ष किया। कालांतर में यही प्रवृति अंग्रेजों के खिलाफ जारी रही।


          (II) धर्म सुधार आंदोलन के नकारात्मक प्रभाव (Negative Effects of Religious Reform Movement)-

          • (A) थियोयोफिकल सोसायटी (Theosophical Society) व अहमदिया आंदोलन (Ahmadiyya Movement) के अतिरिक्त सभी सुधारकों ने अपने अपने धर्म की बात की तथा अपने धर्म को महान बताकर उसका गौरवगान किया। इससे दूसरे धर्म की अप्रत्यक्ष आलोचना (Criticism) हुई।
          • (B) आर्य समाज (Arya Samaj) के शुद्धि आंदोलन व वहाबी आंदोलन के दार-उल-इस्लाम के नारे से साम्प्रदायिकता (Communalism) को बढ़ावा मिला।
          • (C) कुछ समाज सुधारक यथास्थितिवादी थे तथा उन्होंने सामाजिक कुरीतियों को सांस्कृतिक मूल्य बताकर उनका संरक्षण किया जिससे आंदोलन पश्चगामी हो गया।


          धर्म सुधार आंदोलन की सीमाएं (Limitations of Religious Reform Movement)-

          • (I) भारतीय समाज यथास्थितिवादी (Status Quoist) था तथा परिवर्तनों को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता था।
          • (II) भारतीय समाज में शिक्षा का अभाव था तथा आधुनिक मूल्यों (Modern Values) से परिचित नहीं थे।
          • (III) समाज सुधार आंदोलन को अंग्रेजी सरकार (British Government) का सहयोग नहीं मिला।
          • (IV) भारत एक बड़ा देश है तथा विभिन्न भाषा के लोग यहाँ रहते हैं अतः यातायात (Transportation) व संचार (Communication) के साधनों में कमी व भाषा की दिक्कतों (Language Barriers) के कारण धर्म सुधार आंदोलन अधिक सफल नहीं हो पाया।


          अन्य महत्वपूर्ण तथ्य (Other Important Facts)-

          • ऋग्वेद समाज में महिलाएं-
          • ब्रह्मवादिनी- विधुषी महिला लेकिन विवाह नहीं करती थी। (अविवाहित विधुषी महिला)
          • सधौवधु- विधुषी महिला लेकिन विवाह करती थी। (आदर्श पत्नी व आदर्श माता)



          19वीं सदी के अन्य सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन | Other Social & Religious Reform Movements Of 19th Century

          • सन 1887 में पंडित दीन दयालू शर्मा द्वारा भारत धर्म महामंडल (Bharat Dharma Mahamandala in Hindi) की शुरुआत की गई थी, ताकि रूढ़िवादी शिक्षित हिंदुओं को एक साथ लाया जा सके और सनातन धर्म के संरक्षण के लिए मिलकर काम किया जा सके।
          • धारा सभा (Dhara Sabha in Hindi) नामक एक अन्य हिंदू रूढ़िवादी समाज की स्थापना 1839 में राधाकांत देब ने की थी। समाज ने पश्चिमी शिक्षा को बढ़ावा दिया और सती प्रथा के उन्मूलन की वकालत की।
          • राधास्वामी आंदोलन (Radhaswami Movement in Hindi) की शुरुआत 1861 में आगरा के तुलसी राम ने की थी। इस आंदोलन के अनुयायी एक सर्वोच्च व्यक्ति, गुरु की सर्वोच्चता, सरल सामाजिक जीवन और पवित्र लोगों की संगति में विश्वास करते थे।
          • वेद समाज (Veda Samaj in Hindi) का गठन केशव चंद्र सेन और के. श्रीधरलु नायडू ने 1864 में किया था। कलकत्ता से ब्रह्म समाज आंदोलन (Brahmo Samaj Movement in Hindi) का अध्ययन करने के बाद, के.श्रीधरलु नायडू ने आंदोलन का नाम बदलकर दक्षिण भारत का ब्रह्म समाज कर दिया।
          • 1892 में, मद्रास हिंदू सोशल रिफॉर्म्स एसोसिएशन (Madras Hindu Social Reforms Association in Hindi) की स्थापना वेरेसलिंगम पंतुलु ने की थी। यह एक सामाजिक शुद्धता आंदोलन था और इसने उस समय दक्षिण भारत में प्रचलित देवदासी व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।
          • 1860 के दशक में, सत्य महिमा धर्म (Satya Mahima Dharma in Hindi) की स्थापना मुकुंद दास (महिमा गोसाईं) ने गोविंदा बाबा और भीम भोई के साथ मिलकर केवल एक ईश्वर (अलख परम ब्रह्मा) के अस्तित्व का प्रचार करने के लिए की थी, जो निराकार थे।
          • परमहंस मंडली (Paramahansa Mandali in Hindi) की स्थापना बाल शास्त्री जम्भेकर और दादोबा पांडरुंग ने 1849 में की थी। इस आंदोलन के सात सिद्धांत थे: केवल भगवान की पूजा की जानी चाहिए; आध्यात्मिक धर्म एक है; वास्तविक धर्म प्रेम और नैतिक आचरण पर आधारित है; प्रत्येक व्यक्ति को विचार करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए; हमारे कार्य और भाषण तर्क के अनुरूप होना चाहिए; मानव जाति एक जाति है; और सभी को सही तरह का ज्ञान दिया जाना चाहिए।
          • 1888 में, श्री नारायण गुरु द्वारा अरविपुरम आंदोलन (Aravipuram movement in Hindi) नामक एक आंदोलन शुरू किया गया था। इस आंदोलन ने एझावा समुदाय (निम्न जाति) पर लगाए गए धार्मिक और सामाजिक प्रतिबंधों की अवहेलना की।
          • बाबा दयाल दास ने 1840 के दशक में निरंकारी आंदोलन (Nirankari movement in Hindi) शुरू किया था। इस आंदोलन ने निराकार भगवान (निरंकार) की पूजा पर जोर दिया और मूर्तिपूजा और उससे जुड़े कर्मकांडों को खारिज कर दिया।
          • 1873 में, ठाकुर सिंह संधवालिया और ज्ञानी ज्ञान सिंह ने अमृतसर की सिंह सभा (Singh Sabha) की स्थापना की। यह 19वीं शताब्दी का एक सिख धार्मिक सुधार आंदोलन था। उनका उद्देश्य सिख धर्म की शुद्धता को बहाल करना और सिखों के शैक्षिक कार्यक्रमों में अंग्रेजों को शामिल करना था।

          हमें उम्मीद है कि सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन (Social and Religious Reform Movement in Hindi)  पर आधारित यह लेख विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के उम्मीदवारों के लिए मददगार साबित होगा।


               

                  Hiiii  Frndzzzzz…

                                    कैसे हैं आप सब ?????

               आपसे गुज़ारिश करता हूँ कि यह पोस्ट पसंद आने पर Like, Comments और Share ज़रूर करें ताकि यह महत्वपूर्ण Data दूसरो तक पहुंच सके और मैं इससे और ज़्यादा   Knowledgeable Data आप तक पहुंचा सकू जैसा आप इस Blogger के ज़रिए चाहते हैं ।

          No comments:

          Post a Comment

          भौगोलिक शब्दावली -2 (Geographical terminology -2)

                                                                   भौगोलिक शब्दावली -2                             (Geographical terminology -2)      ...