चोल राजवंश (9वीं से 12वीं शताब्दी तक)
- चोलों के विषय में प्रथम जानकारी पाणिनी कृत अष्टाध्यायी से मिलती है।
- चोल वंश के विषय में जानकारी के अन्य स्रोत हैं - कात्यायन कृत 'वार्तिक', 'महाभारत', 'संगम साहित्य', 'पेरिप्लस ऑफ़ दी इरीथ्रियन सी' एवं टॉलमी का उल्लेख आदि।
- चोल राज्य आधुनिक कावेरी नदी घाटी, कोरोमण्डल, त्रिचनापली एवं तंजौर तक विस्तृत था।
- यह क्षेत्र उसके राजा की शक्ति के अनुसार घटता-बढ़ता रहता था।
- इस राज्य की कोई एक स्थाई राजधानी नहीं थी।
- साक्ष्यों के आधार पर माना जाता है कि, इनकी पहली राजधानी 'उत्तरी मनलूर' थी।
- कालान्तर में 'उरैयुर' तथा 'तंजावुर' चोलों की राजधानी बनी।
- चोलों का शासकीय चिह्न बाघ था।
- चोल राज्य 'किल्लि', 'बलावन', 'सोग्बिदास' तथा 'नेनई' जैसे नामों से भी प्रसिद्व है।
- भिन्न-भिन्न समयों में 'उरगपुर' (वर्तमान 'उरैयूर', 'त्रिचनापली' के पास) 'तंजोर' और 'गंगकौण्ड', 'चोलपुरम' (पुहार) को राजधानी बनाकर इस पर विविध राजाओं ने शासन किया।
- चोलमण्डल का प्राचीन इतिहास स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है।
- पल्लव वंश के राजा उस पर बहुधा आक्रमण करते रहते थे, और उसे अपने राज्य विस्तार का उपयुक्त क्षेत्र मानते थे।
- वातापी के चालुक्य राजा भी दक्षिण दिशा में विजय यात्रा करते हुए इसे आक्रान्त करते रहे।
- यही कारण है कि, नवीं सदी के मध्य भाग तक चोलमण्डल के इतिहास का विशेष महत्त्व नहीं है, और वहाँ कोई ऐसा प्रतापी राजा नहीं हुआ, जो कि अपने राज्य के उत्कर्ष में विशेष रूप से समर्थ हुआ हो।
चोल वंश के शासक
- उरवप्पहर्रे इलन जेत चेन्नी
- करिकाल
- विजयालय (850 - 875 ई.)
- आदित्य (चोल वंश) (875 - 907 ई.)
- परान्तक प्रथम (908 - 949 ई.)
- परान्तक द्वितीय (956 - 983 ई.)
- राजराज प्रथम (985 - 1014 ई.)
- राजेन्द्र प्रथम (1014 - 1044 ई.)
- राजाधिराज (1044 - 1052 ई.)
- राजेन्द्र द्वितीय (1052 - 1064 ई.)
- वीर राजेन्द्र (1064 - 1070 ई.)
- अधिराजेन्द्र (1070 ई.)
- कुलोत्तुंग प्रथम (1070 - 1120 ई.)
- विक्रम चोल (1120 - 1133 ई.)
- कुलोत्तुंग द्वितीय (1133 - 1150 ई.)
चोल साम्राज्य का अभ्युदय नौवीं शताब्दी में हुआ और दक्षिण प्राय:द्वीप का अधिकांश भाग इसके अधिकार में था। चोल शासकों ने श्रीलंका पर भी विजय प्राप्त कर ली थी और मालदीव द्वीपों पर भी इनका अधिकार था। कुछ समय तक इनका प्रभाव कलिंग और तुंगभद्र दोआब पर भी छाया था। इनके पास शक्तिशाली नौसेना थी और ये दक्षिण पूर्वी एशियामें अपना प्रभाव क़ायम करने में सफल हो सके। चोल साम्राज्य दक्षिण भारत का निःसन्देह सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था। अपनी प्रारम्भिक कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने के बाद क़रीब दो शताब्दियों तक अर्थात् बारहवीं ईस्वी के मध्य तक चोल शासकों ने न केवल एक स्थिर प्रशासन दिया, वरन् कला और साहित्य को बहुत प्रोत्साहन दिया। कुछ इतिहासकारों का मत है कि चोल काल दक्षिण भारत का 'स्वर्ण युग' था।
चोल साम्राज्य की स्थापना
चोल साम्राज्य की स्थापना विजयालय ने की, जो आरम्भ में पल्लवों का एक सामंती सरदार था। उसने 850 ई. में तंजौर को अपने अधिकार में कर लिया और पाण्ड्य राज्य पर चढ़ाई कर दी। चोल 897 तक इतने शक्तिशाली हो गए थे कि, उन्होंने पल्लव शासक को हराकर उसकी हत्या कर दी और सारे टौंड मंडल पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद पल्लव, इतिहास के पन्नों से विलीन हो गए, पर चोल शासकों को राष्ट्रकूटों के विरुद्ध भयानक संघर्ष करना पड़ा। राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय ने 949 ई. में चोल सम्राट परान्तक प्रथम को पराजित किया और चोल साम्राज्य के उत्तरी क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। इससे चोल वंश को धक्का लगा, लेकिन 965 ई. में कृष्ण तृतीय की मृत्यु और राष्ट्रकूटों के पतन के बाद वे एक बार फिर उठ खड़े हुए।
Korean밤타플 - Korean밤타플
ReplyDeleteThis is a 카지노 사이트 brand new Korean food bar featuring 라이브스코어 Korean food 카지노 brand 밤타플. 메이피로출장마사지 Korean밤타플. 최고의 온라인카지노사이트 worrione