पदार्थ के आणविक सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक पदार्थ मिलकर बना है । ये अणु लगातार सभी सम्भव दिशाओं में सभी वेगों से स्वैच्छिक रूप से गति करते रहते हैं । इस गति के कारण इनमें गतिज ऊर्जा होती है । अणुओं की इस अनियमित गति के कारण वस्तु की ऊर्जा को ऊष्मीय ऊर्जा(Thermal of energy) कहते हैं ।
अतः वस्तु में अणुओं की गतिज ऊर्जा ही ऊष्मीय ऊर्जा की माप है । किसी वस्तु को किसी बाह्य स्त्रोत द्वारा (अर्थात गरम करके) ऊष्मा देने पर वस्तु का ताप बढ़ता है अर्थात् वस्तु की ऊष्मीय ऊर्जा अधिक होने पर उसका ताप भी बढ़ जाता है । अणुओं में परस्पर आकर्षण बल होने के कारण उनमें स्थितिज ऊर्जा भी होती है ।
अतः किसी वस्तु में पदार्थ के अणुओं की समस्त गतिज ऊर्जा तथा स्थितिज ऊर्जा ही वस्तु की आंतरिक ऊर्जा कहलाती है ।
अर्थात्-
ऊष्मा से सम्बन्धित सिद्धान्तों के इतिहास में आग सम्बन्धी मिथिकल सिद्धान्तों से लेकर, ऊष्मा, टेरापिङुइस (Terra pinguis), फ्लोगिस्तन (phlogiston), अग्नि वायु (fire air), उषिक सिद्धान्त (caloric), ऊष्मा का सिद्धान्त, ऊष्मा का यान्त्रिक तुल्यांक ( machanical equivalent of heat), , थर्मोस-गतिकी (Thermos-dynamics), उष्मागतिकी आदि प्रमुख पड़ाव हैं।
ऊष्मा के सामान्य प्रभावों का स्पष्टीकरण करने के हेतु अग्नि-परमाणुओं का अविष्कार किया गया, जो पदार्थ के रध्रों के बीच प्रचण्ड गति से दौड़ते हुए तथा उसके अणुओं को तितर-बितर करते हुए माने गए थे। विचार था कि इसके फलस्वरूप ठोस पदार्थ द्रव में तथा द्रव वाष्प में परिवर्तित होते हैं।
विज्ञान के आरंभिक युग से लेकर वर्ममान शताब्दी के प्रारम्भ तक उष्मा की प्रकृति के संबंध में दो प्रतिद्वंद्वी परिकल्पानएँ साधारणतया चली आई हैं। एक तो है कैलोरिक थ्योरी जिसके अनुसार उष्मा को एक अति सूक्ष्म लचीला द्रव माना गया था जो पदार्थो के रध्रों में प्रवेश करके उनके अणुओं के बीच के स्थान को भर लेता है।
दूसरा है प्राचीन यूनानियों द्वारा चलाया गया सिद्धान्त जिसमें उष्मा के आधुनिक सिद्धांत का अंकुर पाया जाता है। इसके अनुसार उष्मा पदार्थ के कणों के द्रुत कम्पन के कारण होती हैं; अत: इस मत के अनुसार उष्मा का कारण गति है। इस सिद्धान्त के पोषक बहुत दिनों तक अल्पमत में रहे।
प्रेक्षण पर आधारित सिद्धान्त की रचना में प्रथम प्रयत्न लार्ड बेकन ने किया तथा वे इस परिणाम पर पहुँचे कि उष्मा गति हैं।इंग्लैण्ड में उनके अनुयायियों के मत से यह 'गति' पदार्थ के अणुओं की थी। परन्तु यूरोप के अधिकतर वैज्ञानिकों के मतानुसार यह एक अतिसूक्ष्म तथा लचीले द्रव के कणों की मानी गई जो पदार्थ के रध्रों में अन्तःप्रविष्ट होकर उसके कणों के बीच स्थित माना गया था।
ताप की अभिधारणा (Concept of Temperature)
यदि इस बर्फ में शोरा मिलाकर रख दें तो छूने पर यह हमें बर्फ से भी ज्यादा ठण्डा लगता है । इसका अर्थ है की बर्फ, शोरे व बर्फ के मिश्रण से अधिक गर्म कही जायेगी । स्पष्ट है कि कोई वस्तु एक वस्तु के सापेक्ष यदि गर्म है तो दूसरी वस्तु के सापेक्ष ठण्डी हो सकती है । गर्माहट व ठण्डक का यह गुण ही तप्तता या ताप कहलाता है ।
ताप वह भौतिक राशि है जो ऊष्मा प्रवाह की दिशा को निर्धारित करती है ।
क्र. सं. | पदार्थ के नाम | विशिष्ट ऊष्मा |
1. | पानी | 1.0 |
2. | लोहा | 0.11 |
3. | एल्युमिनियम | 0.21 |
4. | मैग्नीशियम | 0.25 |
5. | शीशा | 0.03 |
6. | कार्बन | 0.17 |
7. | ज़िंक | 0.092 |
8. | संगमर्मर | 0.21 |
9. | बर्फ | 0.50 |
10. | बालू | 0.50 |
11. | एल्कोहल | 0.60 |
12. | पीतल | 0.09 |
13. | तारपीन | 0.42 |
नियत ताप पर किसी पदार्थ के एकांक द्रव्यमान के ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में परिवर्तित होने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। इसे L द्वारा सूचित किया जाता है।
* बर्फ के लिए गलन की गुप्त ऊष्मा का मान 80 कैलोरी/ग्राम होता है।
* यदि m द्रव्यमान का ठोस गलनांक पर हो और उस स्थिति में उसे द्रव में पूर्णत बदलने के लिए Q ऊष्मा देनी पड़ी हो तो उसके गलने की
* बर्फ के गलन की गुप्त ऊष्मा = 3.34 x 10⁵J/kg या 80 cal/gm-1
इस पर भी नज़र डालें:-- 100 महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
* जल के लिए वाष्पन की गुप्त ऊष्मा का मान 5.40 कैलोरी/ग्राम है।
* गुप्त ऊष्मा का SI मात्रक जूल/kg है।
* उबलते जल की अपेक्षा भाप से जलने पर अधिक कष्ट होता है, क्योंकि जल की अपेक्षा भाप की गुप्त ऊष्मा अधिक होती है।
* 0°C पर पिघलती बर्फ में कुछ नमक-शोरा मिलाने से बर्फ का गलनांक 0°C से घटकर – 22°C तक कम हो जाता है। ऐस मिश्रण को हिम-मिश्रण कहते हैं।
* इस मिश्रण का उपयोग कुल्फी, आइसक्रीम आदि बनाने में किया जाता है।
* यदि क्वथनांक पर किसी द्रव के m द्रव्यमान को गैस में पूर्णत: बदलने के लिए Q ऊष्मा देनी पड़ती है तो इसके वाष्पन की गुप्त ऊष्मा
L=Q/M
इसकी विमा [L²T²] है।
* इसका SI मात्रक Jkg-1 है जिसे cal kg-1 या cal gm-1 में भी व्यक्त करते हैं।
* पानी के वाष्पन की गुप्त ऊष्मा 2.26 x 10⁶ Jkg-1 या 540 cal ɡm¹ होती है
ऊष्मीय प्रसार (Thermal Expansion)
ठोस, द्रव तथा गैस सभी में ऊष्मीय प्रसार होता है ।
आणविक सिद्धान्त के अनुसार, '' एक ठोस पदार्थ में अणु एक नियमित रूप में बँधें होते हैं तथा वे अपनी माध्य स्थिति के परित: कम्पन करते रहते हैं ।
जब ठोस पदार्थ को गर्म किया जाता है तो उसके अणुओं कि गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है (अर्थात् उसके अणुओं के कंपनों का आयाम बढ़ता है) तथा उनकी माध्य स्थिति इस प्रकार विस्थापित हो जाती है कि निकटवर्ती अणुओं के बीच औसत दूरी बढ़ जाती है ; अतः पदार्थ गर्म करने से फैलता है ।''
ठोसों का ऊष्मीय प्रसार (Thermal Expansion of Solids)
- रेखीय प्रसार (Linear Expansion)
- क्षेत्रीय प्रसार (Superficial Expansion)
- आयतन प्रसार (Volume Expansion)
रेखीय प्रसार (Linear Expansion)
रेखीय प्रसार गुणांक (Coefficient of Linear Expansion)
- छड़ की प्रारम्भिक लम्बाई पर - लम्बाई में वृद्धि, छड़ की प्रारम्भिक (L) के अनुक्रमानुपाती होती है, अर्थात्- ΔL ∝ L ..1
- ताप में वृद्धि पर - लम्बाई में वृद्धि, ताप-वृद्धि के अनुक्रमानुपाती होती है, अर्थात्-
ΔL ∝ Δl ..2 अतः समी (1) व (2) से ,ΔL ∝ L × Δlया ΔL = ∝ L × Δl ...3 यहाँ ∝ (एल्फा) एक नियतांक है जिसे छड़ के पदार्थ का रेखीय प्रसार गुणांक (Coefficient of Linear Expansion) कहते हैं । यह पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है, उसकी लम्बाई, आकार या आयतन पर नहीं । अतः समीकरण (3) से -∝ = ΔL / L × Δl = लम्बाई में वृद्धि / प्रारम्भिक लम्बाई × ताप में वृद्धिअब यदि L = 1 मीटर, Δt = 1˙ C हो, तो ∝ = ΔL अतः किसी पदार्थ की एकांक लम्बाई की छड़ का ताप 1˙C बढ़ाने पर उसकी लम्बाई में जो वृद्धि होती है, उसे उस पदार्थ का रेखीय प्रसार गुणांक कहते हैं ।
रेखीय प्रसार गुणांक (∝) का मान विभिन्न पदार्थों के लिए भिन्न-भिन्न होता है ।
क्षेत्रीय (या पृष्ठीय ) प्रसार (Superficial Expansion)
क्षेत्रीय प्रसार गुणांक (Coefficient of Superficial Expansion)-
क्षेत्रफल में वृद्धि -
(1) प्रारम्भिक क्षेत्रफल के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात्-
ΔA ∝ A .....1
(2) ताप में वृद्धि के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात्-
ΔA ∝ Δt ......2
समी (1) व (2) से -
ΔA ∝ A × Δt
अर्थात् क्षेत्रफल में वृद्धि
ΔA = βA × Δt .......3
यहाँ β (बीटा ) एक नियतांक है जिसे पटल के पदार्थ का क्षेत्रीय प्रसार गुणांक कहते हैं । इसका मान अन्य किसी राशि (जैसे आकार या आकृति) पर निर्भर नहीं करता, बल्कि केवल पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है ।
समीकरण 3 से
β = ΔA / A × Δt
यदि a = 1, Δt = 1˙C हो, तो β = ΔA
अतः किसी पदार्थ के पटल (lamina) के एकांक क्षेत्रफल का ताप 1˙C बढ़ाने पर उसके क्षेत्रफल में जो वृद्धि होती है उसे उस पदार्थ का क्षेत्रीय प्रसार गुणांक कहते हैं ।
क्षेत्रीय प्रसार गुणांक (β ) का मात्रक प्रति 1˙C होता है ।
आयतन प्रसार (Volume Expansion)
किसी ठोस वस्तु को गरम करने पर उसकी लंबाई, चौड़ाई व मोटाई में वृद्धि होती है अर्थात् उसके आयतन में वृद्धि हो जाती है । यह आयतन में वृद्धि वस्तु का आयतन प्रसार कहलाता है ।
आयतन प्रसार गुणांक (Coefficient of Volume Expansion)
- वस्तु के प्रारम्भिक आयतन (V) के तथा
- वस्तु के ताप में वृद्धि (Δt) के अनुक्रमानुपाती होती है । अर्थात्
𝞬 = ΔV / V × Δt .......2
यदि V = 1 तथा Δt = 1˙C हो, तो
𝞬 = ΔV .....3
ऊष्मा संरचरण का दैनिक जीवन में उपयोग
(1) एस्किमो लोग बर्फ की दोहरी दीवारों के मकान में रहते हैं – इसका कारण यह है कि बर्फ की दोहरी दीवारों के मध्य हवा की परत होती है जो ऊष्मा का कुचालक होती है, जिससे अन्दर की ऊष्मा बाहर नहीं जा पाती है, फलस्वरूप कमरे का ताप बाहर की अपेक्षा अधिक बना रहता है।
(ii) शीत ऋतु में लकड़ी एवं लोहे की कुर्सियाँ एक ही ताप पर होती हैं, परन्तु लोहे की कुर्सी छूने पर लकड़ी की अपेक्षा अधिक ठण्र्डी लगती है-शीत ऋतु में शरीर का ताप कमरे के ताप से अधिक होता है। लोहा ऊष्मा का सुचालक और लकड़ी ऊष्मा का कुचालक होता है। अतः जब हम लोहे की कुर्सी को छूते हैं, तो हमारे हाथ से ऊष्मा तापान्तर के कारण लोहे की कुर्सी में शीघ्रता से प्रवाहित होने लगती है। जबकि लकड़ी की कुर्सी में ऐसा नहीं होता। इसलिए लोहे की कुर्सी छूने पर लकड़ी की अपेक्षा अधिक ठण्डी लगती है।
(iii) धातु के प्याले में चाय पीना कठिन है, जबकि चीनी मिट्टी के प्याले में चाय पीना आसान है-धातु ऊष्मा का सुचालक होता है, इसके कारण चाय की ऊष्मा से धातु के प्याले गर्म हो जाते हैं, जिससे होठ जलने लगते हैं और चाय पीना कठिन हो जाता है। चीनी मिट्टी का ऊष्मा का कुचालक होने के कारण ऐसा नहीं होता है।
दैनिक जीवन में संवहन से संबंधित उपयोग-
(i) समुद्री हवाएँ (Sea Breeze) तथा स्थली हवाएँ (Land Breeze)-दिन के समय सूर्य की गर्मी से जल की अपेक्षा स्थल जल्दी गर्म हो जाता है, जिससे स्थल की ओर बहने लगती हैं। इन हवाओं को समुद्री हवाएँ कहते हैं। रात में स्थल, जल की अपेक्षा जल्दी ठण्डा हो जाता है। इसलिए समुद्र के जल के सम्पर्क से गर्म हवाएँ ऊपर उठती हैं तथा इनका स्थान लेने के लिए स्थल से समुद्र की ओर हवाएँ चलने लगती हैं, इन्हें स्थलीय हवाएँ कहते हैं।
(ii) रेफ्रिजरेटर से फ्रीजर पेटिका को ऊपर रखा जाता है- इसका कारण यह है कि नीचे की गरम वायु हल्की होने के कारण ऊपर उठती है तथा फ्रीजर पेटिका से टकराकर ठण्डी हो जाती है। ऊपर की ठण्डी वायु भारी होने क कारण नीचे आती है तथा रेफ्रिजरेटर में रखी वस्तुओं को ठण्डा कर देती है।
(iii) बिजली के बल्बों में निष्क्रिय गैसों का भरा जाना—बिजली के बल्बों में निर्यात् के स्थान पर निष्क्रिय गैस (जैसे आर्गन) भरी जाती हैं। इसका कारण यह है कि बल्ब में निष्क्रिय गैस भरने से तन्तु की ऊष्मा संवहन धाराओं द्वारा चारों ओर फैल जाती है, जिससे तन्तु का ताप उसके गलनांक तक नहीं बढ़ पाता है। ऐसा नहीं करने पर बल्ब का ताप तन्तु के गलनांक तक बढ़ जाएगा जिससे तन्तु पिघल जाएगी।
दैनिक जीवन में विकिरण से संबंधित उपयोग-
(I) बादलों वाली रात, स्वता आकाश वाली रात की अपेक्षा गरम होती है- स्वच्छ आकाश वाली रात में पृथ्वी द्वारा छोड़ी गयी विकिरण की उष्मा आकाश की ओर चली जाती है। बादल ऊष्मा के कुचालक होते
है अतः बादलों वाली रात में पृथ्वी द्वारा छोड़ी गयी विकिरण की ऊष्मा आकाश की ओर जाने के बजाय पृथ्वी की ओर लौट जाती है, जिससे पृथ्वी गरम बनी रहती है।
(II) रेगिस्तान दिन में बहुत गरम तथा रात में बहुत ठण्डे हो जाते हैं– रेत ऊष्मा का अच्छा अवशोषक है और हम जानते हैं कि ऊष्मा का अच्छा अवशोषक ही ऊष्मा का अच्छा उत्सर्जक होता है। अत: दिन में सूर्य की ऊष्मा को अवशोषित करके रेत गर्म हो जाती है वही रात में वह अपनी ऊष्मा को विकिरण द्वारा खोकर ठण्डी हो जाती है।
(III) पोलिश किए हुए जूते धूप से शीघ्र गरम नहीं होते क्योंकि वे अपने ऊपर गिरने वाली ऊष्मा का अधिकांश भाग परावर्तित कर देते हैं।
यहाँ ऊष्मा (Heat) टॉपिक से महत्वपूर्ण प्रश्न और उसके उत्तर दिए गए है, जो अधिकांश प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं।
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